बैठे ठाले कैसे खाए और कहां से लाए मजदूरों ने बताया कि बिना मजदूरी बैठे रहना मुश्किल हो रहा है। बैठे ठाले राशन सामग्री के लिए पैसे भी कहां से लाए। काम शुरू होने पर इस अवधि की मजदूरी मिलेगी या नहीं इसमें भी संशय बना हुआ है। अभी जुगाड़ से काम चल रहा है, लेकिन लॉक डाउन की स्थिति में बिना मेहनत-मजदूरी के ठाले बैठे रहना और खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है।
अलग-अलग ठेकेदारों ने पहुंचाया था भवन निर्माण के लिए ये मजदूर अलग-अलग ठेकेदारों के जरिए यहां तक पहुंचे थे। इनमें से कोई सरिया बनाने में है तो कोई टाइल्स लगाने वाला। किसी के जिम्मे प्लास्टर का काम है तो कोई निर्माण करने वाला। मुख्य ठेकेदार एक ही है, लेकिन इनके बीच मेहनताना बांटने वाले ठेकेदार अलग-अलग है। अब काम बंद हो जाने से ये सभी मजदूर अटक गए हैं।
रूआंसे हो गए कि दिन कैसे कटेंगे बरौली (बिहार) के मोहम्मद नूर आलम, प्रदीपकुमार, गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) के गोलू, बिरंजयकुमार, सतना (मध्यप्रदेश) के चमनलाल व भागलपुर (बिहार) के सरवनकुमार ने रूआंसे होते हुए बताया कि यहां डेढ़ से पौने दो सौ मजदूर है, जो अधिकतर उत्तरप्रदेश व बिहार से है। राशन-पानी के हिसाब से अभी दो-तीन दिन तक तो काम चल जाएगा, लेकिन आगे दिन कैसे कटेंगे यह सोच कर ही रोना आ रहा है। उधर, ठेकेदार के मुनीम लालसोट निवासी रमेशकुमार ने बताया कि लॉक डाउन से पहले कुछ सामग्री लाकर दी थी। स्थिति के अनुसार आगे भी प्रयास किया जाएगा। बरवा गांव निवासी दुकानदार शेरसिंह ने बताया कि मजदूरों की मांग पर अभी तक वे राशन का सामान लाकर दे रहे हैं, लेकिन यहां से शहर में जाना मुश्किल हो रहा है।
प्रवासियों को लाने की अनुमति मांगी लॉक डाउन की स्थिति में जिले के कई लोग भी अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। इनमें से कई लोग रोज कामकर खाने वाले हैं मजदूर पेशा भी है। काम बंद हो जाने के बाद वे फंस चुके हैं तथा वतन लौटना चाहते हैं, लेकिन यहां तक आना मुश्किल हो रहा है। इनकी मदद के लिए मूंडियार के पूर्व सरपंच दिनेश फिरडौदा ने जिला कलक्टर को पत्र भेजा है। इसमें बताया कि उनकी पंचायत क्षेत्र के लोग अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। उनको नियमानुसार यहां लाना चाहते हैं इसके लिए अनुमति प्रदान की जाएं।