scriptनागौर में फंसे यूपी-बिहार के डेढ़ सौ मजदूर, परिवार की याद में रोने को मजबूर | One and a half hundred workers of UP-Bihar trapped in Nagaur | Patrika News

नागौर में फंसे यूपी-बिहार के डेढ़ सौ मजदूर, परिवार की याद में रोने को मजबूर

locationनागौरPublished: Mar 28, 2020 12:47:20 pm

Submitted by:

Jitesh kumar Rawal

काम बंद हो गया अब मेहनताना मिलेगा या नहीं इसकी भी चिंता, केंद्रीय विद्यालय भवन निर्माण लगे थे मजदूर

नागौर में फंसे यूपी-बिहार के डेढ़ सौ मजदूर, परिवार की याद में रोने को मजबूर

नागौर. निर्माणाधीन केंद्रीय विद्यालय के बाहर खड़े मजदूर।

जीतेश रावल

नागौर. रोजी-रोटी कमाने के लिए घर से सैकड़ों मील दूर आ गए, लेकिन अब काम ही छूट गया। लॉक डाउन से पहले कुछ दिनों का राशन-पानी ले आए थे, लेकिन यह रीत जाने के बाद क्या होगा यह सोच-सोचकर ही रोना आ रहा है। लॉक डाउन की स्थिति के बाद शहर में बिहार व उत्तरप्रदेश के लगभग डेढ़ सौ मजदूर फंस गए हैं। लॉक डाउन के समय से काम रूका पड़ा है और बिना काम मेहनताना मिलेगा या नहीं इसे लेकर वे चिंतित है। शहर में केंद्रीय विद्यालय भवन निर्माण में लगे मजदूरों ने जब अपनी व्यथा सुनाई तो उनके आंसू निकल आए। वे बताते हैं कि निर्माणाधीन भवन में उनके रहने का इंतजाम तो है, लेकिन खाने-पीने की व्यवस्था मुश्किल हो रही है। आटा-दाल भी लाए तो कहां से। शहर में जाने पर सौ जगह पूछताछ होती है। मजदूर बताते हैं कि परिवार की याद में वे यहां रोने को मजबूर है, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। उधर, राजस्थान हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में भवनों की मरम्मत में जुटे चालीस-पचास मजदूरों की स्थिति भी ऐसी ही है। इन दिनों काम बंद है और वे लोग लॉक डाउन में फंसे पड़े हैं।
बैठे ठाले कैसे खाए और कहां से लाए

मजदूरों ने बताया कि बिना मजदूरी बैठे रहना मुश्किल हो रहा है। बैठे ठाले राशन सामग्री के लिए पैसे भी कहां से लाए। काम शुरू होने पर इस अवधि की मजदूरी मिलेगी या नहीं इसमें भी संशय बना हुआ है। अभी जुगाड़ से काम चल रहा है, लेकिन लॉक डाउन की स्थिति में बिना मेहनत-मजदूरी के ठाले बैठे रहना और खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है।
अलग-अलग ठेकेदारों ने पहुंचाया था

भवन निर्माण के लिए ये मजदूर अलग-अलग ठेकेदारों के जरिए यहां तक पहुंचे थे। इनमें से कोई सरिया बनाने में है तो कोई टाइल्स लगाने वाला। किसी के जिम्मे प्लास्टर का काम है तो कोई निर्माण करने वाला। मुख्य ठेकेदार एक ही है, लेकिन इनके बीच मेहनताना बांटने वाले ठेकेदार अलग-अलग है। अब काम बंद हो जाने से ये सभी मजदूर अटक गए हैं।
रूआंसे हो गए कि दिन कैसे कटेंगे

बरौली (बिहार) के मोहम्मद नूर आलम, प्रदीपकुमार, गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) के गोलू, बिरंजयकुमार, सतना (मध्यप्रदेश) के चमनलाल व भागलपुर (बिहार) के सरवनकुमार ने रूआंसे होते हुए बताया कि यहां डेढ़ से पौने दो सौ मजदूर है, जो अधिकतर उत्तरप्रदेश व बिहार से है। राशन-पानी के हिसाब से अभी दो-तीन दिन तक तो काम चल जाएगा, लेकिन आगे दिन कैसे कटेंगे यह सोच कर ही रोना आ रहा है। उधर, ठेकेदार के मुनीम लालसोट निवासी रमेशकुमार ने बताया कि लॉक डाउन से पहले कुछ सामग्री लाकर दी थी। स्थिति के अनुसार आगे भी प्रयास किया जाएगा। बरवा गांव निवासी दुकानदार शेरसिंह ने बताया कि मजदूरों की मांग पर अभी तक वे राशन का सामान लाकर दे रहे हैं, लेकिन यहां से शहर में जाना मुश्किल हो रहा है।
प्रवासियों को लाने की अनुमति मांगी

लॉक डाउन की स्थिति में जिले के कई लोग भी अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। इनमें से कई लोग रोज कामकर खाने वाले हैं मजदूर पेशा भी है। काम बंद हो जाने के बाद वे फंस चुके हैं तथा वतन लौटना चाहते हैं, लेकिन यहां तक आना मुश्किल हो रहा है। इनकी मदद के लिए मूंडियार के पूर्व सरपंच दिनेश फिरडौदा ने जिला कलक्टर को पत्र भेजा है। इसमें बताया कि उनकी पंचायत क्षेत्र के लोग अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। उनको नियमानुसार यहां लाना चाहते हैं इसके लिए अनुमति प्रदान की जाएं।
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