scriptयह है राजस्थान का ‘पशुपतिनाथ‘ मंदिर, शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केन्द्र | 'Pashupatinath' temple of Rajasthan | Patrika News
नागौर

यह है राजस्थान का ‘पशुपतिनाथ‘ मंदिर, शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केन्द्र

मंदिर में स्थापित मूर्ति अष्टधातु से निर्मित है, जिसमें पारा भी शामिल है, मूर्ति का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है

नागौरMar 04, 2019 / 01:53 pm

neha soni

Pashupatinath temple
नागौर।
नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर बना निकटवर्ती ग्राम मांझवास का शिव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। विभिन्न विशेषताओं के कारण देशभर के श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनार्थ पहुंचते हैं। शिवरात्रि और श्रावण में यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बड़ी तादाद में रहती है। शहर से 16 किलोमीटर दूर इस मंदिर की करीब साढ़े तीन दशक पहले 1982 में योगी गणेशनाथ ने नींव रखी थी तथा करीब 15 वर्ष बाद मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। मंदिर में प्रतिदिन चार बार आरती होती है। विभिन्न समय होने वाली इन आरतियों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
12 ज्योर्तिलिंग दर्शन के बाद स्थापना
मंदिर में स्थापित मूर्ति अष्टधातु से निर्मित है, जिसमें पारा भी शामिल है। मूर्ति का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है। योगी गणेशनाथ के शिष्य तथा वर्तमान में मंदिर के महंत रघुनाथ ने बताया कि 1998 में मूर्ति स्थापना से पहले इस मूर्ति को 12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए घुमाया गया था। जिसमें 45 दिन लगे थे। महंत ने बताया कि उसके बाद यहां 121 कुण्डीय यज्ञ किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। महंत का दावा है कि इस शैली का भारत में यह प्रथम मंदिर है। हालांकि इस मंदिर के निर्माण के बाद इस तरह के मंदिर अन्य भी बने हैं।
जानिए, पशुपतिनाथ के बारे में
पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से पहले यह मंदिर राष्ट्रीय देवता, भगवान पशुपतिनाथ का मुख्य निवास माना जाता था। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में सूचीबद्ध है। पशुपतिनाथ में आस्था रखने वालों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। 15वीं शताब्दी के राजा प्रताप मल्ल से शुरू हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो