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खाद्य पदार्थों के नाम पर बेचा जा रहा ‘जहर’, बिक्री रोकने के सरकारी बंदोबस्त बने कागजी

locationनागौरPublished: Aug 12, 2019 11:14:21 am

Submitted by:

shyam choudhary

‘Poison’ being sold in the name of food items in Nagaur, खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा लिए जाने वाले 40 प्रतिशत नमूने होते हैं फेल, खाद्य पदार्थों के उपयोग के तीन महीने बाद आती है लेबोरेट्री से रिपोर्ट, मिलावटखोर सामान्य जुर्माना देकर हो जाते हैं बरी

Food adulteration

Food adulteration

‘Poison’ being sold in the name of food items in Nagaur नागौर. बाजार में खाद्य पदार्थों में मिलावट food adulteration कर ‘जहर’ ‘Poison’ बेचा जा रहा है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से मनुष्य विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहा है, बावजूद इसके सरकार मिलावटियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बजाय औपचारिक कार्रवाई करवाकर इतिश्री कर रही है।
सरकार के स्तर पर किए जा रहे प्रयास कागजी साबित हो रहे हैं, जिनकी बदौलत न तो मिलावटी खाद्य पदार्थों पर रोक लग पा रही है और न ही नियंत्रण Food adulteration control लग रहा है। बाजारों में खाद्य पदार्थों के नाम पर बिक रहे ‘जहर’ की रोकथाम के लिए राज्य सरकार के स्तर पर किए जा रहे प्रयासों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 35 लाख से अधिक जनसंख्या तथा 17 हजार 718 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले नागौर जिले की जिम्मेदारी मात्र एक अधिकारी के भरोसे है, जो खाद्य पदार्थों की जांच कर नमूने लेने का काम करते हैं।
सरकारी प्रक्रिया की दूसरी खामी यह भी है कि दूध, मावा, तेल, दाल, घी सहित अन्य खाद्य पदार्थों के नमूने लेने के बाद जांच के लिए जोधपुर की लेब में भेजे जाते हैं, लेकिन रिपोर्ट आने में इतनी देरी होती है कि तब तक उन खाद्य पदार्थों का उपयोग कर लिया जाता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो होली, दीपावली सहित अन्य त्योहारों पर मिठाइयों व मावा के नमूनों की जांच तीन से चार माह बाद मिलती है।
सामान्य जुर्माना देकर छूट जाते हैं मिलावटखोर
खाद्य पदार्थों के नमूनों की जांच में यदि निम्न गुणवत्ता या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की रिपोर्ट मिल भी जाए तो मिलावटखोर के खिलाफ कार्रवाई होना मुश्किल होता है। सामान्य तौर पर चिकित्सा विभाग के अधिकारी ऐसे प्रकरणों को एडीएम के समक्ष पेश करते हैं, जहां अधिकतम 50 हजार तक का जुर्माना लगाया जाता है। मिलावटियों के खिलाफ सख्त एवं कठोर कार्रवाई का प्रावधान नहीं होने से उनके हौसले बुलंद हैं। अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं, जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। सामन्यात: दैनिक उपभोग वाले खाद्य पदार्थ जैसे दूध, छाछ, शहद, मसाले, घी, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, मावा, आटा आदि में मिलावट की जाती है।
यह है नमूनों की स्थिति
खाद्य सुरक्षा अधिकारी राजेश जांगीड़ के अनुसार इस वर्ष जनवरी से अब तक कुल 93 सैम्पल लिएग गए, जिनमें से 85 की लेबोरेट्री से जांच रिपोर्ट प्राप्त हुई है। इसमें 33 नमूने निम्न गुणवत्ता (स्वास्थ्य के लिए हानिकारक) के पाए गए हैं। इनमें से 15 प्रकरण न्यायालय में पेश कर दिए हैं, जिन पर निर्णय आना है।
इसी प्रकार गत वर्ष 130 नमूने लिए गए, जिनमें से 44 निम्न गुणवत्ता के पाए गए। मिलावटियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों ने सभी प्रकरण न्यायालय में पेश कर दिए।
खाद्य पदार्थों की मिलावट बढ़ा रही है गंभीर बीमारियां
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार खाद्य अपमिश्रित आहार का उपयोग करने से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और शारीरिक विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है। खाद्य अपमिश्रण से आखों की रोशनी जाना, हृदय सम्बन्धित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों हो सकती हैं।
नियमित जांच करते हैं
चिकित्सा विभाग के खाद्य सुरक्षा अधिकारी खाद्य पदार्थों में मिलावट की नियमित जांच करते हैं। कई बार मैं खुद भी साथ गया हूं। जिला बड़ा है और अधिकारी एक है, इसलिए थोड़ी परेशानी रहती है। जांच में जो भी नमूने सब स्टैण्डर्ड के पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सक्षम न्यायालय में प्रकरण पेश किए जाते हैं।
– डॉ. सुकुमार कश्यप, सीएमएचओ, नागौर

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