पंद्रह फीसदी युवाओं में लक्षण नेशनल इंस्टी्टयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमान्स) बेंगलुरु के कुछ समय पहले हुए एक सर्वे में युवाओं को लेकर अजीबोगरीब खुलासा हुआ। पंद्रह प्रतिशत युवाओं में एक या उससे अधिक मानसिक रोग के लक्षण पाए गए। बीस में से एक युवा मानसिक रोग से ग्रसित है, मतलब इसे इलाज की अत्यंत आवश्यकता है। अवसाद की बीमारी कॉमन मिली। इसके अलावा मनोचिकित्सकों से बातचीत में यह भी सामने आया कि अधिकांश रोगियों को समय रहते उपचार मिले तो इस पर तुरंत काबू पाया जा सकता है।
फौजी से भी अधिक तनाव स्कूल अथवा कॉलेज गोइंग स्टूडेंट में तनाव की वजह पढ़ाई ही नहीं घर का माहौल भी हो सकता है। पति-पत्नी के बीच मनमुटाव/कलेश किसी भी बच्चे में सीमा पर तैनात जवान से भी अधिक तनाव को जन्म देता है। ऐसी परवरिश में बच्चों का एकाकी होने से वह मानसिक रोग का शिकार हो जाता है। संयुक्त परिवार में इसकी संभावना न के बराबर होती है।
जागरुकता की कमी जागरुकता की कमी व्यापक है। किसी भी स्टूडेंटस के बारे में पेरेंट्स व टीचर को सबसे पहले मानसिक बीमारी का पता लगता है। कॉलेज/ऑफिस अथवा घर में भी परिजन व सहयोगी इन लक्षणों को तुरंत पहचानते हैं, बावजूद इसके सुधार की पहल करने में देर करते हैं। अमूमन परिजन तुरंत उपचार के सही दिशा में कदम नहीं उठाते। उस पर मनोचिकित्सक के पास जाने में ‘शर्मिंदगीÓ महसूस करते हैं। उस पर जानकार लोग किसी मंदिर/भोपा की शरण लेने की सलाह दे देते हैं। उपचार के तमाम कार्यक्रम/चिकित्सक/अस्पताल के बारे में भी जानकारी का अभाव होता है।
पीटीएम मूल भाव से अलग-थलग स्कूली बच्चों के लिए पीटीएम (पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग) महत्वपूर्ण होती है। इसमें शिक्षक/अभिभावक बच्चों के बदलते व्यवहार/लक्षण पर चर्चा/विमर्श कर समय रहते उस पर कार्रवाई कर सकते हैं। बावजूद इसके पीटीएम में केवल मार्कशीट व नंबर पर चर्चा हो जाती है। बच्चे के बारे में न घर वाले बताते हैं न स्कूल वाले। ऐसे स्टूडेंट पर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है। डे टू डे परफोरमेंस के बारे में बच्चों से संवाद हो।
इसे नजरअंदाज न करें चिड़चिड़ा व्यवहार, बड़बड़ाना, गाली-गलौच, चिंतित, स्वयं की सफाई पर ध्यान नहीं देना। उग्र होना अथवा तनाव को ठीक करने के लिए नशाखोरी की शरण। स्मार्ट फोन का अधिक इस्तेमाल।सुधार के लिए काफी कुछबच्चा हो या बड़ा, उसको मोटिवेट करें। इलाज के साथ उसकी इच्छा का भी ध्यान रखें। परिजन अवेयर रहकर रोल मॉडल बनें। सामाजिक गतिविधियों के जरिए उत्साह बढ़ाएं। मेंटल हेल्थ को गंभीरता से लें।
इनका कहना है… लोगों में जागरुकता की कमी है। मानसिक बीमारियों का प्रारंभ से ही उपचार लिया जाना चाहिए। अंधविश्वास भी है तो मनोचिकित्सक के पास जाने से अब भी हिचकिचाहट काफी है। लोग अवेयर होंगे तब ही बढ़ते मानसिक रोग पर लगाम लगेगी।
डॉ. शंकरलाल दायमा, मनोचिकित्सक