20 वें अध्ययन के सार को समझाते हुए डॉ. समणी ने कहा कि व्यक्ति अगर विषय वासना के चक्र में फंसा हुआ हो तो वह चाहे कितना भी धन क्यों न कमाए, चाहे कितना भी बड़ा परिवार क्यों न हो फिर भी वह अनाथ कहलाता है। जब साधक अपनी आत्मा को पहचान कर धर्म मार्ग पर चलना शुरू करता है, तो वह अनाथ से सनाथ हो जाता है। जैसे कालकूट विष आत्मघात करता है, उल्टा पकड़ा हुआ शास्त्र स्वयं का ही घात कराता है, ठीक उसी प्रकार विषय विकार से युक्त जीवन विनाशकारी होता है।
इस अवसर पर संजय पींचा ने बताया कि प्रवचन की प्रभावना के लाभार्थी शोभादेवी, किशोरचंद पारख परिवार, चंचलकंवर, हस्तिमल बागमार परिवार व साधर्मिक बहन रहे तथा दर्शन प्रतिमा के लाभार्थी मदनदेवी, सज्जनराज, विजयराज ललवानी परिवार रहा। इस दौरान अमिचंद सुराणा के तेले तप की तपस्या का सम्मान तीजादेवी नाहटा ने आयंबिल के पंचोले की बोली से किया। तपस्यार्थियों के सम्मान के लाभार्थी रतनी देवी, मोतीमल, कंवलमल, जयप्रकाश ललवानी परिवार रहे तथा समणी वृंद के दर्शनों के लिए इरोड़ से हस्तिमल बागमार एवं राजेशकुमार बागमार पहुचें।
पंकज ललवानी ने बताया कि प्रवचन में पूछे गए तीन प्रश्नों के उत्तर मेघराज चौरडिय़ा, सुशीलादेवी नाहटा, जागृति चौरडिय़ा ने दिए। उत्तर देने वालों को शांतिलाल डूंगरवाल परिवार बैंगलोर की आरे से पांच-पांच ग्राम के चाँदी के सिक्कों से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर नरपतचंद ललवानी, राजेंद्र ललवानी, ज्ञानचंद माली, नरेश गूरा आदि मौजूद रहे।