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धर्ममय जीवन ही साधक को अनाथ से सनाथ बनाता है

locationनागौरPublished: Nov 19, 2018 08:25:30 pm

Submitted by:

shyam choudhary

चार्तुमास के दौरान बताए धर्म मार्ग के महत्व

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नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चातुर्मास के दौरान प्रवचन सभा को सम्बोधित करते हुए डॉ. समणी सुयशनिधि ने कहा कि व्यक्ति अभय तभी हो सकता है, जब वह दूसरों को अभय देगा। दानों में श्रेष्ठ अभयदान बताया गया है। उन्होने कहा कि प्रत्येक धर्म कथा साधक को अपनी साधना में और अधिक सुदृढ़ बनाता है। 19वें अध्ययन में मृगापुत्र द्वारा नरक एवं नरक दु:खों का वर्णन अपने माता पिता से दीक्षा के लिए आज्ञा प्राप्त करने के प्रसंग से यह शिक्षा प्राप्त होती है कि दु:ख देने से दुखों की ही प्राप्ति होती हैं । इसलिए संयम मार्ग को सर्वश्रेष्ठ कहा गया।

20 वें अध्ययन के सार को समझाते हुए डॉ. समणी ने कहा कि व्यक्ति अगर विषय वासना के चक्र में फंसा हुआ हो तो वह चाहे कितना भी धन क्यों न कमाए, चाहे कितना भी बड़ा परिवार क्यों न हो फिर भी वह अनाथ कहलाता है। जब साधक अपनी आत्मा को पहचान कर धर्म मार्ग पर चलना शुरू करता है, तो वह अनाथ से सनाथ हो जाता है। जैसे कालकूट विष आत्मघात करता है, उल्टा पकड़ा हुआ शास्त्र स्वयं का ही घात कराता है, ठीक उसी प्रकार विषय विकार से युक्त जीवन विनाशकारी होता है।

इस अवसर पर संजय पींचा ने बताया कि प्रवचन की प्रभावना के लाभार्थी शोभादेवी, किशोरचंद पारख परिवार, चंचलकंवर, हस्तिमल बागमार परिवार व साधर्मिक बहन रहे तथा दर्शन प्रतिमा के लाभार्थी मदनदेवी, सज्जनराज, विजयराज ललवानी परिवार रहा। इस दौरान अमिचंद सुराणा के तेले तप की तपस्या का सम्मान तीजादेवी नाहटा ने आयंबिल के पंचोले की बोली से किया। तपस्यार्थियों के सम्मान के लाभार्थी रतनी देवी, मोतीमल, कंवलमल, जयप्रकाश ललवानी परिवार रहे तथा समणी वृंद के दर्शनों के लिए इरोड़ से हस्तिमल बागमार एवं राजेशकुमार बागमार पहुचें।

पंकज ललवानी ने बताया कि प्रवचन में पूछे गए तीन प्रश्नों के उत्तर मेघराज चौरडिय़ा, सुशीलादेवी नाहटा, जागृति चौरडिय़ा ने दिए। उत्तर देने वालों को शांतिलाल डूंगरवाल परिवार बैंगलोर की आरे से पांच-पांच ग्राम के चाँदी के सिक्कों से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर नरपतचंद ललवानी, राजेंद्र ललवानी, ज्ञानचंद माली, नरेश गूरा आदि मौजूद रहे।

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