पिछले कुछ वर्षों से समाज व राजनीति में जातीय ध्रुवीकरण अपने चरम पर है। संघ भी इन हालातों पर हर वक्त नजर बनाए रखता है और समय-समय पर संघ की ओर से समाज की एकता से जुड़े बयान भी जारी किए जाते रहे हैं। जोधपुर प्रांत के वार्षिक प्रवास के तहत संघ प्रमुख भागवत पांच दिन के नागौर दौरे पर हैंं। पिछले दो दिन में संघ की वर्ष भर की गतिविधियों व कार्यों की समीक्षा के दौरान जातीय ध्रुवीकरण और आरक्षण के मुद्दे भी सामने आए हैं। जिन्हें लेकर लेकर मंडल कार्यवाहों के अभ्यास वर्ग में समाज को संगठित करने पर जोर दिया गया है। शनिवार को जहां गांवों तक पहुंचकर देश को समृद्ध व शक्तिशाली बनाने की बात कही गई, वहीं रविवार को स्वस्पर्शी, सर्वव्यापी एवं सामाजिक समरसता युक्त कार्य करने पर जोर दिया गया। संघ द्वारा इन बातों पर दिया जा रहा बल संघ की चिंता को जाहिर कर रहा है।
जातीय ध्रुवीकरण को कम करने और इससे हिंदूओं को बचाने के लिए आरक्षण को लेेकर संघ का नरम रुख रहा है। आरक्षण के अलावा ध्रुवीकरण का दूसरा बड़ा कारण जातिगत भेद, जातिगत धारणा और जातिगत राजनीति है। संघ इन सबसे ऊपर उठकर समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के प्रयास में हैं। भागवत ने रविवार को कहा कि जिस प्रकार नियमित सांस लेना अनिवार्य है उतना ही संघ कार्य की अनिवार्यता लगे, तभी निरंतर काम करना ध्येय बनता है।
भागवत ने शनिवार को शाखाओं को सर्वस्पर्शी बनाते हुए सम्पूर्ण समाज को संगठित करने का लक्ष्य मंडल कार्यवाहों के सामने रखा, जबकि रविवार को अपने व्यहवार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चर्चा करते हुए भागवत ने कहा कि अपने विचार को संतुलित व मर्यादित ढंग से रखना एक कार्यकर्ता के लिए बहुत जरूरी है। जिस प्रकार कोण की रेखाएं दूर जाते-जाते अत्यधिक दूरी पर हो जाती है, उसी प्रकार छोटी-छोटी बातें ठीक प्रकार से व्यक्त न होने से आगे जाते-जाते और अधिक विकृत रूप से प्रस्तुत की जाने लगती है। उन्होंने कहा कि अपने यहां अनुशासन में कठोरता हम सबके के पारिवारिक व आत्मीय भाव के कारण ही है।
जातीय ध्रुवीकरण रोकने के पीछे संघ के कई मकसद नजर आ रहे हैं। हालांकि संघ खुले तौर पर यह कहता है कि राष्ट्र निर्माण के लिए एकता आवश्यक है, वहीं दूसरी तरफ इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। यह सर्व विदित है कि जब तक जातीय ध्रुवीकरण रहेगा, भाजपा को इसका नुकसान होगा। इसका परिणाम राजस्थान के उपचुनावों में देखने को मिला था। संघ के दबदबे वाले अजमेर के लोकसभा उपचुनाव में जिस तरह से जाट जाति के सबसे अधिक वोट होने के बावजूूूद भाजपा के रामस्वरूप लांबा की हार हुई, उससे यह साफ हो गया कि राजस्थान में जातीय ध्रुवीकरण अपने चरम पर है। इसी प्रकार कुछ महीने पहले एससी-एसटी के आंदोलन ने भी जातीय ध्रुवीकरण को जबरदस्त हवा दी। ये परिस्थितियां वर्तमान में राज्य व केंद्र सरकार के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। इससे यह भी साफ हो गया है कि हिंदुत्व व मोदी फेक्टर पर जातीय ध्रुवीकरण भारी पड़ रहा है। संघ की इन हालातों पर नजर है और इसी के चलते संघ का फोकस ध्रुवीकरण रोकने पर है।
जोधपुर प्रांत के वार्षिक प्रवास के लिए नागौर को चुनने के पीछे भी कई कारण सामने आ रहे हैं। यह तो जग जाहिर है कि नागौर से निकली हवा पूरे प्रदेश को प्रभावित करती है। दूसरा ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली ताकतें राजस्थान में अपना फोकस नागौर पर सबसे अधिक रख रही हैं। चाहे दलितों की बात करने वाले गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी हो या राजपूतों के गुस्से की वजह बनने वाला आनंदपाल का एनकाउण्टर हो। इन सबके अलावा डांगावास हत्याकांड अब भी लोगों के जहन में है। इन तमाम कारणों के चलते संघ ने नागौर को चुना। संघ भी यह चाहता है कि नागौर जैसे जिले में अधिक से अधिक जुड़ाव संघ से हो।