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संस्कार युक्त शिक्षा सार्थक है : आचार्य महाश्रमण

locationनागौरPublished: Jan 21, 2022 06:43:54 pm

Submitted by:

Suresh Vyas

आचार्य महाश्रमण ने किया जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय का अवलोकन

लाडनूं. जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय में अवलोकन करते आचार्य महाश्रमण

लाडनूं. जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय में अवलोकन करते आचार्य महाश्रमण

लाडनूं.़ जैन विश्वभारती संस्थान के अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण एक लम्बे अन्तराल के बाद कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के निवेदन पर संस्थान में पधारे। सर्वप्रथम एनसीसी की छात्राओं ने गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया।
इसके पश्चात् अनुशास्ता का आगमन जैन विश्वभारती संस्थान के महिला उच्च शिक्षा केन्द्र, आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में हुआ। इस महाविद्यालय के स्मार्ट क्लासरूम, मेडिकल रूम, रोजगार परामर्श केन्द्र, प्रार्थना प्रशाल, प्रेक्षाध्यान-कक्ष, प्राचार्य-कक्ष एवं कार्यालय आदि का अवलोकन करने के साथ-साथ, जोधपुर के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो. केएन व्यास के लाईव व्याख्यान का अवलोकन भी किया। संस्थान के शिक्षा विभाग में बी.एड., एम.एड के साथ-साथ बी.ए.-बी.एड. एवं बी.एस.सी.-बी.एड़. का पाठ्यक्रम के संचालन की जानकारी भी उन्होंने रूचि पूर्वक ली। इसके बाद आईसीटी कक्ष में छात्राध्यापिकाओं को एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की छात्राओं को सम्बोधित करते हुए अनुशास्ता ने कहा कि यूं तो शिक्षा महत्वपूर्ण है किन्तु संस्कारयुक्त शिक्षा अत्यधिक फलदायी है। शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का होना अत्यावश्यक है। यहां पर छात्राध्यापिकाओं द्वारा अनुपयोगी सामग्री के उपयोगी सामग्री के रूप में परिवर्तित किये जाने वाले सृजनात्मक कार्यों को देखकर आचार्यश्री ने अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की। संस्थान की शारीरिक व्यायामशाला (जिम) का भी उन्होंने अवलोकन किया। इसके बाद आचार्य का पदार्पण प्रशासनिक खण्ड में हुआ। जहां उन्होंने संस्थापन शाखा, उपकुलसचिव कार्यालय, कुलसचिव कार्यालय, वित्ताधिकारी कार्यालय, सहायक कुलसचिव कार्यालय पर दृष्टिपात करते हुए कुलपति कक्ष में पधारे। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ एवं कुलाधिपति सावित्री जिन्दल ने नयी शिक्षा नीति-2020 पर आधारित जैन विश्वभारती संस्थान की निर्मित की गयी योजना का दस्तावेज भेंट किया। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि संस्थान के क्रियाकलापों एवं गतिविधियों में प्रामाणिकता सदैव बनी रहे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अनुपालना होती रहनी चाहिए। संस्थान में स्थापित इलेक्ट्रोनिक मीडिया प्रोडक्शन सेन्टर में आचार्यप्रवर के वक्तव्य को रिकार्ड किया गया और सेन्टर में उपलब्ध नवीनतम तकनीकों से उन्हें अवगत कराया गया। उन्होंने बताया कि संस्थान के कर्मचारी सेवाभाव एवं निष्ठा से कार्य करते रहें, इससे संस्थान निरन्तर विकास की ओर अग्रसर होगा। इसके बाद दूरस्थ शिक्षा निदेशालय का गुरूदेव ने अवलोकन किया जिसमें प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रवेश सम्बन्धी, पाठ्यसामग्री सम्बन्धी, सत्रीय कार्य सम्बन्धी एवं परीक्षा सम्बन्धी कार्यों की जानकारी दी। आचार्य प्रवर ने कहा कि यूं तो आत्मोत्थ ज्ञान सर्वोत्कृष्ट है, इस ज्ञान की जितनी सम्भव हो, आराधना होनी चाहिए; किन्तु ऐन्द्रिय ज्ञान भी जरूरी है। यूं तो प्राध्यापक बनना कोई आसान नहीं है। बड़े परिश्रम के पश्चात् प्राध्यापक बनते हैं, फिर भी प्राध्यापकों को प्रतिदिन की कक्षा में पूर्ण स्वाध्याय के साथ जाना चाहिये ताकि विद्यार्थियों को व्यवस्थित ज्ञान दिया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि मेरे प्रतिनिधि के रूप में आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमण संस्थान से निकटता के साथ जुड़े हुए हैं। आचार्य ने संस्थान में कार्यरत समणियों की उपयोगिता का भी उल्लेख किया तथा कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की कार्यशैली से प्रभावित होकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया। इस अवसर पर जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मचन्द लूंकड़, रमेश बोहरा एवं वर्तमान अध्यक्ष मनोज लूनिया, मंत्री प्रमोद बैद, संयुक्त मंत्री जीवनमल मालू, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष शान्तिलाल बरमेचा, संयोजक भागचन्द बरडिय़ा, कोषाध्यक्ष प्रकाश बैद आदि उपस्थित थे।

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