सूत्रों का कहना है कि घूस काण्ड के बाद जिला परिषद के जिम्मेदारों ने खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है। यहां तक कि वे दफ्तर से जुड़े किसी कार्य के लिए सरपंच अथवा संबंधित कार्मिक का भी फोन तक नहीं उठा रहे हैं। बुधवार को हुए घूसकाण्ड के बाद गुरुवार को कोई काम यहां नहीं हुआ। न कोई फाइल चली न किसी कागज पर हस्ताक्षर हुए। मनरेगा से जुड़ी कई फाइल जांच के तहत पहले ही अधिकारियों ने कब्जे में ले ली है। इस बीच एसीबी और पुलिस से जुड़ी जानकारियों में कई और लोग भी सामने आने लगे हैं जो सुरेश के साथ दो अन्य कर्मचारियों का जिक्र कर रहे हैं, हालांकि लिखित रूप से अभी किसी ने कुछ नहीं दिया है।
परिषद से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मनरेगा से जुड़े प्रस्तावों को हरी झण्डी देने-दिलवाने का काम भीतरी-बाहरी लोगों के गठजोड़ से हो रहा था। सुरेश के साथ दो कर्मचारी सरकारी तौर पर इसे पास करवाने के ‘काम’ करते थे तो बाहरी वीरेंद्र सांगवा, पूनाराम समेत कई अन्य दलाल सक्रिय थे। बताया जाता है कि जिले के कई सरपंच सीधे तौर पर भी सुरेश से ‘डील’ करते थे , जबकि कुछ का उच्च अधिकारियों से सीधा ‘संवाद’ था।
तार ऊपर तक सूत्रों का कहना है कि परिषद के एक कार्मिक और दलाल से पकडऩे का मतलब यह नहीं कि केवल ये ही दोनों दोषी हैं। असल में ‘टॉप टू बॉटम’ इसका हिस्सा तय होता है। बताया जाता है कि नरेगा के तहत टांका निर्माण और ग्रेवल सडक़ बिछाना मूल काम होता है। ग्राम पंचायत से जुड़े विकास कार्य की स्वीकृति का ‘खेल’ अनोखे तरीके से होता है। कहीं-कहीं ग्राम पंचायत के लिपिक/ग्राम सेवक से होता हुआ परिषद के ‘आला’ अधिकारियों तक पहुंचता है। कहीं-कहीं बीच की कड़ी के ‘जिम्मेदार’ इस खेल से खुद को अलग कर लेते हैं, जबकि कई मामलों में पूरी चेन बेखौफ चलती है।
करीब नौ साल से कार्यरत है सुरेश कुमार सूत्र बताते हैं कि सुरेश करीब नौ साल से नागौर जिला परिषद के सीईओ कार्यालय में कार्यरत है। वर्ष 2013 में यहां उसकी कनिष्ठ सहायक पर पोस्टिंग हुई थी। उसके बाद से यहीं कार्यरत था। बीच में वो नरेगा स्वीकृत शाखा से हट गया था, संभवतया गत अक्टूर-नवंबर में फिर से उसे यहां लगाया गया था। मूलत: गंगानगर निवासी सुरेश कुमार यहां अकेला ही रहता था।
एक्सईएन समेत कई रडार पर सूत्रों का कहना है कि सुरेश कुमार के साथ परिषद के एक्सईएन रमजान अली समेत कुछ अफसर-कार्मिक रडार पर हैं, हालांकि अभी एसीबी में मामला पंजीबद्ध होने के बाद शुरू होने वाली जांच के बाद ही कुछ तय होगा। कुछ संदिग्ध कर्मचारी-अधिकारी मोबाइल तक नहीं उठा रहे। करीब आधा दर्जन परिषद कार्मिकों पर गाज गिर सकती है, हालांकि यह सबकुछ रिपोर्ट व जांच के बाद ही हो सकेगा। गौरतलब है कि बुधवार को एसीबी की पाली टीम ने 94 हजार की घूस लेते कनिष्ठ लिपिक सुरेश कुमार और दलाल वीरेंद्र सांगवा को दबोच लिया था, जबकि अन्य दलाल पूनाराम भाग छूटा था।
इनका कहना दोषी कर्मचारी हो या अधिकारी, निष्पक्ष जांच के साथ कार्रवाई की जाए। सुरेश कुमार हो या अन्य कोई, परिषद कार्यालय के बाहर ही बोर्ड पर दर्ज है कि किसी कर्मचारी/अधिकारी के पैसे मांगने पर सीधी शिकायत दर्ज कराएं, इसके बाद भी ऐसा काम करने से पूरा विभाग बदनाम होता है। अब तक काम से संबंधित शिकायतें जरूर आईं, लेकिन लेन-देन को लेकर किसी ने शिकायत नहीं दी। आवश्यक हुआ तो कर्मचारी-अधिकारियों की जिम्मेदारी भी बदली जाएगी।
-हीरालाल मीणा, सीईओ जिला परिषद, नागौर