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साइबर अपराध के साठ मामले, चालान एक का भी नहीं

locationनागौरPublished: Nov 16, 2021 09:53:52 pm

Submitted by:

Sandeep Pandey

संदीप पाण्डेय
नागौर. साइबर अपराधियों पर पुलिस की पकड़ ढीली है। दस फीसदी मामलों तक में भी पुलिस बदमाशों तक पहुंच पा रही है। अधिकांश वारदात अनसुलझी रह जाती ह और लगा दी जाती है एफआर। कई मामले झूठे भी पाए जाते हैं तो चौगुने मामले तो थानों तक पहुंच ही नहीं पाते। नागौर जिले की असल हकीकत यही है।

नागौर पुलिस की साइबर सेल पूरी तरह फेल

एक जनवरी से 15 नवंबर तक की हकीकत-मामला दर्ज कर बस लगाई जा रही है एफआर

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, आरोपी लापता

-वर्ष 2019 और 2020 में सिर्फ तीन वारदातों का खुलासा

-एक्सक्लूसिव

साइबर अपराध की जांच सीआई लेबल तक का अधिकारी कर सकता है जबकि नागौर जिले के अधिकांश थाने सब इंस्पेक्टर चला रहे हैं।सूत्र बताते हैं कि नागौर जिले साइबर क्राइम के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। कोरोना लॉक डाउन में ऑनलाइन शॉपिंग के नाम पर झूठे मैसेज और कॉल्स से भी लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। बैंक खातों में सेंध लगाई गई तो कहीं एटीएम-वैबसाइट ही नहीं बैंक सर्वर को हैक कर चपत लगाने के अपराध बढ़ रहे हैं। सिम बंद करने की बात कहकर मोबाइल कंपनी के प्रतिनिधि या एकाउण्ट डिटेल की बात पर बैंककर्मी बनकर खाते संबंधी जानकारी लेकर लाखों की चपत लगाई गई। इंटरनेट के माध्यम से पैसों के लेन-देन से जुड़े अपराध हो रहे हैं
दस महीने में 60 मामले

सूत्रों का कहना है कि नागौर जिले में इस साल जनवरी से 15 नवंबर तक विभिन्न थानों में साइबर क्राइम के 60 मामले दर्ज हुए। इनमें एक का भी चालान पेश नहीं हो पाया। पंद्रह मामलों में एफआर लगाई गई, इसमें अपराध करने वालों के बारे में असमंजस बना रहा या फिर वे झूठे निकले। 45 मामले अभी पेण्डिंग चल रहे हैं। यानी साल बीतने को है, इस साल में दर्ज साइबर अपराध के मामलों में पुलिस एक भी चालान पेश नहीं कर पाई है।
43 मामलों में तीन चालान

वर्ष 2019 में साइबर क्राइम के 25 मामले दर्ज हुए थे जबकि वर्ष 2020 में केवल 18 मामले थानों तक पहुंचे। इस तरह इन दो सालों में कुल 43 मामले साइबर अपराध के दर्ज हुए। पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद वर्ष 2019 के 25 मामलों में से दो में ही चालान पेश हो पाया तो 21 में एफआर लग गई जबकि दो अभी भी पेण्डिंग चल रहे हैं। वर्ष 2020 में नागौर जिले में 18 में से सिर्फ एक मामले में चालान पेश हुआ जबकि 18 में एफआर लगी और एक अभी भी पेण्डिंग हैं। एफआर लगने का मतलब साफ रहा कि मामले तकनीकी पेंच में सुलझ ही नहीं पाए।
साठ फीसदी तो थाने तक ही नहीं पहुंचते

साइबर क्राइम से जुड़े अधिकारियों से बातचीत में सामने आया कि साठ फीसदी लोग तो साइबर धोखाधड़ी का शिकार होने के बाद भी थाने तक नहीं पहुंचते। नागौर में ही एटीएम में पैसे जमा कराने वाले एक शख्स इसी तरह साइबर क्राइम की वारदात में 45 हजार रुपए गंवा चुका। थाने में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई, इस पर उसका कहना था कि बाजार में बेइज्जती होगी और पैसा तो वापस आने से रहा। अधिकारी बताते हैं कि धोखाधड़ी होने के बाद पुलिस मामलों में फंसने के चक्कर में पीडि़त थानों तक पहुंचने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते।
मीठी-मीठे संदेश में भोले फंसते हैं

ऐप डाउन लोड करने, ओटीपी बताने या फिर मोबाइल पर आने वाले किसी गलत मैसेज पर लिंक करते ही साइबर क्राइम का शिकार हो जाते हैं। नागौर जिले में मोबाइल की गतिविधियों के साथ साइबर क्राइम के चल रहे नए तौर-तरीकों से भी पब्लिक अनजान है। इसलिए वो जल्द से जल्द इन जालसाजों के चक्कर में आ जाते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग के नाम पर झूठे मैसेज और कॉल्स आते हैं जिनसे चोर उनके बैंक डीटेल्स और बाकी दूसरी निजी जानकारी लेने की कोशिश करते हैं और कई बार सफल भी हो जाते हैं। ये जालसाज कभी किसी वेबसाइट के कर्मचारी बनकर और कभी डिलीवरी सर्विसेज का हिस्सा बनकर संपर्क करते हैं और लोग आम तौर पर इनके झांसे में आ जाते हैं। अपने लाखों का नुकसान कर बैठते हैं।
90 करोड़ का फ्रॉड

सूत्र बताते हैं कि साइबर अपराध पकडऩे के लिए 155260 टोल नंबर पर तुरंत सूचना देने का चहुंओर पुलिस अभियान चलाए हुए हैं। कुछ महीनों में ही साइबर क्राइम के जरिए प्रदेशभर में 90 करोड़ का फ्रॉड हुआ, इसमें सूचना मिलने पर छह करोड़ वापस आ गया।
इनका कहना

साइबर क्राइम की घटनाएं बढ़ रही है। ज्यादातर लोग इसकी रिपोर्ट लिखाने से ही बचते हैं जबकि लोगों को सावचेत होकर डिजिटल बैंकिग अथवा नेट संबंधी मैसेज को डील करना चाहिए। साइबर क्राइम से जुड़े मामले यहां साइबर सेल देख रही है।-अभिजीत सिंह, एसपी नागौर०००००००००००००००००००००००००००००००
साइबर क्राइम के लिए तुरंत सूचना देने में लोगों को आगे आना चाहिए। ऐप डाउनलोड करने के साथ ओटीपी नंबर बताने अथवा लिंक पर क्लिक करने पर सावधानी बरतकर लोग साइबर क्राइम पर अंकुश ला सकते हैं। आरबीआई की गाइडलाइन के मुताबिक ओटीपी नंबर, ऐप डाउनलोड और ***** पर क्लिक नहीं करने की स्थिति में बैंक से निकली रकम 45 दिन में बैंक द्वारा दिए जाने का प्रावधान है।
पूनम चौधरी, इंस्पेक्टर, साइबर थाना, जयपुर

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