विरासत को बचाने की जद्दोजहद
लाडनूं से पांच बार विधायक रहे हरजीराम बुरडक़ के बेटे जगनाथ बुरडक़ अपने पिता की विरासत बचाने मैदान में है, हालांकि वे कांगे्रस के बजाय राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) से उम्मीदवार है। डीडवाना से दो बार विधायक रहे गहलोत गुट के रूपाराम डूडी के बेटे चेतन डूडी कांगे्रस से मैदान में है। उधर, जायल में विरासत को बचाने की जंग काफी भारी है। यहां पूर्व मंत्री मंजू मेघवाल व मौजूदा विधायक डॉ. मंजू बाघमार के सामने अनिल बारूपाल ने रालोपा के टिकट से ताल ठोकी है। वे चार बार विधायक रहे अपने दादा मोहनराम बारुपाल की विरासत को आगे बढाने के लिए मैदान में उतरे हैं।
पिता रहे विधायक अब खुद मैदान में
तीन बार कांग्रेस व दो बार भाजपा से विधानसभा में पहुंचे नागौर विधायक रहे हबीबुर्रहमान एक बार फिर पाला बदलकर कांग्रेस के टिकट से अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने की कोशिश में है। इनके पिता मोहम्मद उस्मान भी दो बार विधायक रहे थे। खींवसर विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल इस बार अपनी पार्टी रालोपा के बैनर तले चुनाव मैदान में है। वे 2008 में भाजपा व 2013 में निर्दलीय विधायक चुने गए। बेनीवाल के पिता रामदेव भी विधायक रहे थे। उधर, 1980 में नागौर से विधायक रहे महाराम चौधरी की विरासत को संभालने उनके पुत्र सवाई सिंह चौधरी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में खींवसर से मैदान में है।
बेटों के कंधों पर विरासत का भार
डेगाना से विजयपाल मिर्धा मैदान में है। उनके पिता कांग्रेस नेता रिछपाल सिंह चार बार विधायक रह चुके हैं। इस बार कांग्रेस से रिछपाल सिंह को टिकट नहीं मिला और अब उनकी राजनीतिक विरासत बचाने की जिम्मेदारी उनके बेटे विजयपाल के कंधों पर है। नावां से 2008 में विधायक रहे महेन्द्र चौधरी के पिता हनुमान सिंह चौधरी 1962 में विधायक रहे थे। 2013 के चुनाव में हार का सामना कर चुके चौधरी एक बार फिर पिता की विरासत को आगे बढ़ाने इसी सीट से कांग्रेस से उम्मीदवार है। नावां से मौजूदा विधायक विजयसिंह फिर मैदान में है। उनके पिता रामेश्वर लाल चौधरी भी इसी सीट से चार बार विधायक रहे थे।