पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अनुसार भामाशाह पशुपालन योजना वर्ष 2016-017 में शुरू हुई। इस दौरान पशुपालन विभाग की ओर से जोर-शोर से दावे किए गए। इससे काफी संख्या में पालक भी जुड़े। बाद में इनके दावों की हवा निकल गई। विभागीय जानकारी के अनुसार इसमें पहले साल ही नागौर में 1998 एवं दूसरे साल वर्ष 2017-018 में कुल 310 पशुओं का बीमा हुआ। पालकों को कुल बीमा राशि भी तकरीबन 16 लाख ही मिल पाई। इस तरह से प्रदेश में पहले साल पंद्रह हजार और दूसरे साल भी साढ़े सोलह हजार पशुओं के बीमा का लक्ष्य रखा गया था। लक्ष्य शतप्रतिशत तो कोई जिला नहीं प्राप्त कर पाया। पहले के लक्ष्य को ही पूरा कराने की कवायद में लगे अधिकारियों को प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद झटका लगा। सरकार बदली तो योजनाओं को लेकर समीक्षा की घोषणाओं के बाद भी इस योजना को लेकर अब तक कोई दिशा-निर्देश भी नहीं आए।
बीमा नहीं तो, ऋण भी देने से बैंकों का इंकार
पशुपालन विभाग के बीमा योजना से हाथ खड़े कर लिए जाने के बाद अन्य बीमा कंपनियों ने भी पशुओं का बीमा करने से पल्ला झाडऩे लगी है। लिया। वर्तमान में पशुओं का बीमा करने के लिए कोई भी कंपनी तैयार नहीं हैं। पशुओं का बीमा नहीं होने के कारण ग्रामीण एवं राष्ट्रीयकृत स्तर तक के बैंकों ने भी पशुओं के लिए ऋण स्वीकृत करने से साफ इंकार कर दिया। पालकों का कहना है कि बैंक साफ कहते हें कि वह पशुओं की बीमा पालिसी होने की स्थिति में ही उनको ऋण दिया जा सकता है। अब ऐसे हालात में पशु पालकों को निजी स्तर पर मंहगी प्रीमियम दरों पर पशुओं का बीमा कराना पड़ रहा, तभी ऋण मिलता है। यह नहीं करने की स्थिति में उन्हें बैंकों से बैरंग लौटा दिया जाने लगा है।
सरकार पशुपालन को कर रही हतोत्साहित
भीवांराम, जगदीश, सुमेर आदि पालकों से बातचीत हुई तो सरकार को जमकर कोसा। इनका कहना है कि एक तरफ तो सरकार कहती है कि पशुपालन को प्रोत्साहित करना है, दूसरी तरफ सुविधाएं ही नहीं देती है। विभिन्न योजनाओं में लोगों को मुफ्त का राशन, साइकिलें एवं कम्प्यूटर तो मिल रहे, लेकिन हमको योजना का लाभ तक नहीं दिया जा रहा। स्पष्ट है कि सरकार केवल कहती है कि पशुपालन व दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन हकीकतन सरकार को तो पशु एवं इनके पालकों की कोई परवाह ही नहीं है।
इनका कहना है…
राज्य सरकार की ओर से भामाशाह पशु बीमा योजना के नवीनीकरण करने या फिर योजना को इसी स्थिति में जारी रखे जाने के संदर्भ में कोई दिशा-निर्देश नहीं मिलने के कारण पशुओं का बीमा नहीं किया जा रहा है। उच्चाधिकारियों से दिशा-निर्देश मिलने पर ही पालकों से इसके तहत योजना का लाभ दिया जा सकता है।
डॉ. जगदीश बरबड़, संयुक्त निदेशक, कार्यालय संयुक्त निदेशक पशुपालन नागौर