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एग्जाम में अव्वल रहने की रेस में स्ट्रेस

locationनागौरPublished: Feb 15, 2020 12:22:32 pm

Submitted by:

Sandeep Pandey

संदीप पाण्डेय
नागौर. तकरीबन पंद्रह फीसदी विद्यार्थी ही स्कूल का होमवर्क पूरा करते हैं तो सालाना रेगुलर पढ़ाई करने वालों की संख्या बीस फीसदी से अधिक नहीं है। यह तो रही सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले दसवी व बारहवी कक्षा के छात्र-छात्राओं की बात।

बोर्ड परीक्षा

मॉडल स्कूल के बच्चे अपनी बातें बताते

संदीप पाण्डेय

नागौर. तकरीबन पंद्रह फीसदी विद्यार्थी ही स्कूल का होमवर्क पूरा करते हैं तो सालाना रेगुलर पढ़ाई करने वालों की संख्या बीस फीसदी से अधिक नहीं है। यह तो रही सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले दसवी व बारहवी कक्षा के छात्र-छात्राओं की बात। पड़ताल बताती है कि निजी स्कूल में भी होमवर्क का प्रतिशत भले ही 75 के पार हो पर इसमें भी अधिकतम ट्यूशन/कोचिंग सेंटर का सहारा लेकर ही गृहकार्य पूरा कर रहे हैं। शेष 25 फीसदी पर इसके लिए आवश्यक दबाव बनाना पड़ता है। निजी स्कूलों के विद्यार्थी अपनी नियमित पढ़ाई ट्यूशन-कोचिंग के जरिए पूरा करते हैं, इनका आंकड़ा अस्सी फीसदी के आसपास है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड हो या सीबीएसई बोर्ड, इनकी दसवी-बारहवी की परीक्षाएं चंद दिन बाद शुरू होने वाली है। इनकी पढ़ाई के तमाम पहलू जानने के लिए कुछ सरकारी-निजी स्कूलों के शिक्षक और विद्यार्थियों से बातचीत में कई रोचक जानकारी सामने आई। एग्जाम का ‘डर/तनाव दो-चार को छोड़कर सबमें मिला तो बहुतों ने यह भी स्वीकारा कि रेगुलर पढ़ाई वो तब ही करते हैं जब घरवाले ‘फोर्सÓ डालते हैं। प्राइवेट स्कूल के विद्यार्थियों ने कॅरियर को लेकर ज्यादा सजग होकर भी तनाव के अधिकता की बात स्वीकारी। अव्वल रहने की रेस में स्ट्रेस चहुंओर दिखा। वो भी घरवालों की आकांक्षा/अपेक्षा के अलावा अनावश्यक दबाव की वजह से।
दसवी के बच्चों में ज्यादा ‘स्ट्रेस
शिक्षकों व मनोचिकित्सकों से हुई बातचीत में सामने आया कि बारहवीं की अपेक्षा दसवी के विद्यार्थियों में तनाव अधिक होता है। बोर्ड परीक्षा का पहला अनुभव होने के साथ-साथ अगले साल सब्जेक्ट के चयन, अच्छे नबंर लाने का दबाव, मन:स्थिति में कमजोर होने का डर इनमें अधिक स्ट्रेस लाता है। बार-बार बोर्ड के एग्जाम का ‘हौव्वा भी उन्हें
अनावश्यक डराता है। बारहवीं के साइंस फेकल्टी के विद्यार्थियों में आटर्स/कॉमर्स की तुलना में स्ट्रेस काफी ज्यादा होता है। अधिकांश बच्चे एग्जाम के दौरान ही एक-दो महीने पढ़ाई करते हैं।
ट्यूशन में सरकारी भी नहीं पीछे
सरकारी स्कूल के बच्चे हों या शिक्षक, ट्यूशन करने-कराने के मामले में पीछे नहीं हैं। बारहवी व दसवी के दस विद्यार्थियों से बात हुई तो उसमें से छह ने स्वीकारा कि वे ट्यूशन पढऩे जाते हैं। उनमें से चार ने यह जरूर कहा कि घर वालों के कहने से उनको ट्यूशन पर जाना पड़ता है। एक अभिभावक राधेश्याम ने कहा कि सरकारी स्कूल में तो पढ़ाई का सबको पता है, ट्यूशन से ही नंबर अच्छे आएंगे। एक विद्यार्थी ने यह जरूर कहा कि स्कूल के दो-तीन शिक्षक भी खूब ट्यूशन लेते हैं। हालांकि सरकारी स्कूल के छात्रों का टयूशन का आंकड़ा चालीस फीसदी के आसपास बताया जाता है। निजी स्कूलों के विद्यार्थी का ट्यूशन/कोचिंग का औसत साठ फीसदी से अधिक है। हालांकि इसके लिए स्कूल वालों के दबाव की बात से वो इनकार करते हैं।
स्टडी में लड़कियां ज्यादा गंभीर
घर हो या स्कूल, पढऩे में बालिकाएं ज्यादा गंभीर होती हैं। इसकी एक वजह यह भी कि उनकी आजादी पर अंकुश रहता है तो ग्रुपिंग से भी वो अलग रहती हैं। इसके अतिरिक्त लड़कों की तुलना में उनका बेवजह घूमना-फिरना नहीं होता। घर में रहकर वे पढ़ाई करती हैं तो ट्यूशन भी लड़कों की तुलना में लड़कियां कम करती हैं। रिजल्ट में हमेशा लड़कियां आगे रहती हैं।
तीन साल में 618 आत्महत्या
अत्यधिक तनाव, परिणाम खराब आने पर या फिर सफल नहीं हो पाने के डर से आत्महत्या की संख्या बढ़ रही है। पूरे राजस्थान में तीन साल में 618 युवाओं ने आत्महत्या की। इनमें दसवी-बारहवीं के ही नहीं ग्रेजुएट समेत अनेक परीक्षा से जुड़े अभ्यर्थी हैं। यह बात भी सामने आई कि आत्महत्या करने में फीमेल की संख्या काफी कम है।
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माहौल अच्छा दें
पढ़ाई के लिए बच्चों को अनावश्यक तनाव देना गलत है। घर वाले हों या पढ़ाने वाले, बच्चों को सहजता से समझाएं। बढिय़ा नंबर लाने का दबाव न बनाएं। ऐेसी अपेक्षा न करें जिससे बच्चे को तनाव हो, उसकी हिम्मत बढ़ाएं।
-डॉ. शंकरलाल दायमा, मनोचिकित्सक
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बच्चों में एग्जाम को लेकर हो वाला डर कम हो रहा है। प्री-बोर्ड एग्जाम के जरिए बच्चों की शंका दूर कर एक अच्छा माहौल दिया जा रहा है। संख्या से अधिक गुणवत्ता पर ध्यान देने से डर/फोबिया दूर होगा।
-मनीष पारीक, प्रिंसिपल स्वामी विवेकानंद गर्वनमेंट मॉडल स्कूल, नागौर
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पढ़ाई के सरकारी सिस्टम में बदलाव की आवश्यकता है। स्वत: पास होने की नीति को बदलना चाहिए। विभाग के अधिकारी सघन निरीक्षण करें और सुधार के लिए तुरंत कार्रवाई/एक्शन हो।
-शंकरलाल शर्मा, प्राचार्य, सेठ किशनलाल कांकरिया राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय
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