अनावश्यक डराता है। बारहवीं के साइंस फेकल्टी के विद्यार्थियों में आटर्स/कॉमर्स की तुलना में स्ट्रेस काफी ज्यादा होता है। अधिकांश बच्चे एग्जाम के दौरान ही एक-दो महीने पढ़ाई करते हैं।
सरकारी स्कूल के बच्चे हों या शिक्षक, ट्यूशन करने-कराने के मामले में पीछे नहीं हैं। बारहवी व दसवी के दस विद्यार्थियों से बात हुई तो उसमें से छह ने स्वीकारा कि वे ट्यूशन पढऩे जाते हैं। उनमें से चार ने यह जरूर कहा कि घर वालों के कहने से उनको ट्यूशन पर जाना पड़ता है। एक अभिभावक राधेश्याम ने कहा कि सरकारी स्कूल में तो पढ़ाई का सबको पता है, ट्यूशन से ही नंबर अच्छे आएंगे। एक विद्यार्थी ने यह जरूर कहा कि स्कूल के दो-तीन शिक्षक भी खूब ट्यूशन लेते हैं। हालांकि सरकारी स्कूल के छात्रों का टयूशन का आंकड़ा चालीस फीसदी के आसपास बताया जाता है। निजी स्कूलों के विद्यार्थी का ट्यूशन/कोचिंग का औसत साठ फीसदी से अधिक है। हालांकि इसके लिए स्कूल वालों के दबाव की बात से वो इनकार करते हैं।
घर हो या स्कूल, पढऩे में बालिकाएं ज्यादा गंभीर होती हैं। इसकी एक वजह यह भी कि उनकी आजादी पर अंकुश रहता है तो ग्रुपिंग से भी वो अलग रहती हैं। इसके अतिरिक्त लड़कों की तुलना में उनका बेवजह घूमना-फिरना नहीं होता। घर में रहकर वे पढ़ाई करती हैं तो ट्यूशन भी लड़कों की तुलना में लड़कियां कम करती हैं। रिजल्ट में हमेशा लड़कियां आगे रहती हैं।
अत्यधिक तनाव, परिणाम खराब आने पर या फिर सफल नहीं हो पाने के डर से आत्महत्या की संख्या बढ़ रही है। पूरे राजस्थान में तीन साल में 618 युवाओं ने आत्महत्या की। इनमें दसवी-बारहवीं के ही नहीं ग्रेजुएट समेत अनेक परीक्षा से जुड़े अभ्यर्थी हैं। यह बात भी सामने आई कि आत्महत्या करने में फीमेल की संख्या काफी कम है।
पढ़ाई के लिए बच्चों को अनावश्यक तनाव देना गलत है। घर वाले हों या पढ़ाने वाले, बच्चों को सहजता से समझाएं। बढिय़ा नंबर लाने का दबाव न बनाएं। ऐेसी अपेक्षा न करें जिससे बच्चे को तनाव हो, उसकी हिम्मत बढ़ाएं।
-डॉ. शंकरलाल दायमा, मनोचिकित्सक
बच्चों में एग्जाम को लेकर हो वाला डर कम हो रहा है। प्री-बोर्ड एग्जाम के जरिए बच्चों की शंका दूर कर एक अच्छा माहौल दिया जा रहा है। संख्या से अधिक गुणवत्ता पर ध्यान देने से डर/फोबिया दूर होगा।
………………. पढ़ाई के सरकारी सिस्टम में बदलाव की आवश्यकता है। स्वत: पास होने की नीति को बदलना चाहिए। विभाग के अधिकारी सघन निरीक्षण करें और सुधार के लिए तुरंत कार्रवाई/एक्शन हो।
-शंकरलाल शर्मा, प्राचार्य, सेठ किशनलाल कांकरिया राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय