जनप्रतिनिधि भी संतुष्ट नहीं
शहर के अलग-अलग वार्डों में गंदा पानी नालियों से बाहर सडक़ों पर फैल रहा है तो बड़े नाले कचरे व प्लास्टिक से अटे पड़े हैं। शहर में लाखों रुपए की लागत से बने आधी-अधूरी सुविधाओं वाले सामुदायिक शौचालयों को आज भी लोकार्पण का इंतजार है। कहीं पानी नहीं है तो कहीं लाइट का अभाव। कई वार्डों में तो सामुदायिक शौचालयों को लोगों ने स्टोर रूम बना रखा है। नगर परिषद ने सफाई कर्मचारियों को पहचान पत्र देने की बात तो याद रखी लेकिन इनसे सफाई करवाना भूल गए। शहर की कई कॉलोनियों में सफाई लम्बे समय से नहीं हुई तो कहीं सफाई के बाद कचरा नहीं उठा। पार्षदों को भी ये शिकायत है कि कचरा उठाने के लिए टेम्पो नहीं आता।
नहीं मिला शौचालयों का भुगतान
नगर परिषद ने वेस्ट पीकर्स व कर्मचारियों को पहचान पत्र देने के साथ पम्पलेट से भी प्रचार प्रसार पर मोटी राशि खर्च की है, लेकिन सफाई व्यवस्था बेपटरी है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में दिल्ली से आई टीमों ने नगर पालिका व नगर परिषद कार्यालयों में पहुंचकर दस्तावेजों की जांच की थी। अधिकारियों व कर्मचारियों ने टीम को कागजी रिपोर्ट से अवगत करवा दिया लेकिन इस बार सर्वेक्षण को लेकर कोई टीम परिषद नहीं आएगी बल्कि लोगों से सीधे संवाद करेगी। ऐसे में संभव है नगर परिषद की पोल चौड़े आ जाए। शहर को ओडीएफ घोषित किया जा चुका हैं लेकिन आज भी कई ऐसे वार्ड हैं जहां शौचालय के अभाव में खुले में शौच जाना लोगों की मजबूरी है।