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तकनीक से शिक्षा को दूर तक फैलाने में मिलती है मदद

locationनागौरPublished: Feb 10, 2018 06:12:05 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

लाडनूं. जैन विश्वभारती संस्थान में आईसीटी इंटीग्रेशन इन एज्यूकेशन एंड लर्निंग विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू हुई।

Ladnun News

लाडनूं. जैन विश्वभारती में आयोजित कार्यशाला में मंचस्थ अतिथि।

लाडनूं. एनसीईआरटी नई दिल्ली एवं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आईसीटी इंटीग्रेशन इन एज्यूकेशन एंड लर्निंग विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू हुई। कार्यशाला के शुभारम्भ सत्र के मुख्य वक्ता एनसीईआरटी नई दिल्ली के ई-लर्निंग कॉर्डिनेटर मो. मयूर अली ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में दो सबसे बड़ी चुनौतियां सबको शिक्षा और अच्छी शिक्षा है। इन चुनौतियों का मुकाबला हम आईसीटी के माध्यम से कर सकते हैं। देश भर में 26 करोड़ विद्यार्थी स्कूली शिक्षा में हैं। उन सबको क्वालिटी एज्युकेशन देने के लिए तकनीक का सहारा आवश्यक है। मूक्स ओनलाईन कोर्सेज के माध्यम से हम बड़ी तादाद में लोगों को शिक्षित बना सकते हैं। इसमें सीटों का सामित होना, स्थान कम होना या दूर होना आदि की समस्या नहीं आती। इसी प्रकार टीवी चैनलों के माध्यम से ग्रामीण सुदूर क्षेत्र तक शिक्षा की पहंच बनी है। शिक्षा को दूर.दूर तक फैलाने में तकनीक से पूरी मदद मिलती है। अनेक अच्छे अध्यापकों का एक क्षेत्र विशेष तक सीमित रहने की समस्या का हल भी इस आईसीटी तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है और उनके अध्यापन को दूसरों तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। अध्यक्षता करते हुए कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के गांधी एकेडेमिक सेंटर के निदेशक प्रो.आरएस यादव ने कहा कि आईसीटी द्वारा हम इस भूमंडलीकरण के युग में ज्ञान के क्षेत्र में पूरे जगत से जुड़ सकते हैं। दुनिया भर की शोध का लाभ हम यहां उठा सकते हैं। लाडनूं में होने वाली शोध को पूरे विश्व में फैलाया जा सकता है। पहले ज्ञान के स्रोत कम थे, लेकिन आज तो आईसीटी के माध्यम से उच्च श्रेणी की शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें भौगोलिक स्थितियां, छात्रों की संख्या, संसाधनों का अभाव, पहुंच का अभाव आदि चुनौतियों का हल हमें खोजना होगा। आज मोबाईल एप्स, डिजीटल लाईब्रेरी आदि विभिन्न साधन तो हैं लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी, संसाधन आदि का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाना आवश्यक है। यादव ने कहा कि तकनीक को शिक्षा का अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करना होगा। अंग्रजी व हिन्दी भाषा के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी सामग्री के अनुवाद की व्यवस्था होनी चाहिए। तेजी से बदलती तकनीक के दौर में यह भी जरूरी है कि समस्त व्यवस्थाएं, सॉफ्टवेयर आदि का निरन्तर अपग्रेडेशन किया जाता रहे। वे कहीं भी आउटडेटेड नहीं होने पाएं। नए-पुराने जितने भी अध्यापक हैं उनकी भी शत.प्रतिशत ट्रेनिंग होकर उन्हें नई तकनीक में सहायक बनाना होगा।
इंफोरमेशन टेक्नालोजी है एक क्रांति
जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने कहा कि कम्युनिकेशन का दौर एक क्रांति है। हमें आईसीटी को एडोप्ट करना चाहिए। यह भविष्य के लिए मददगार है। लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हर चीज के साईड इफेक्ट भी होते हैं। इसलिए इन्फोरमेशन टेक्नोलोजी को साधन ही बनाए रखें।इसे साध्य के रूप में परिवर्तित नहीं होने दें। जो परिवर्तन आता है उसका उपयोग समाज की बेहतरी के लिए होना चाहिए। महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिहार के प्रो. आशुतोष प्रधान ने कहा कि चाहे आज मूक्स का युग हो लेकिन कक्षाओं में उपस्थिति का अपना महत्व है। तकनीक का प्रयोग केवल शिक्षा को अधिक गुणवता पूर्ण बनाने के लिए होना चाहिये। डा.बी.प्रधान ने कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के विभागध्यक्ष प्रो.बीएल जैन ने अतिथियों का स्वागत किया। उप कुलसचिव डा.प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रोण् रेखा तिवाड़ी, डा.गोविन्द सारस्वत, डा. गिरीराज भोजक आदि ने अतिथियों को शॉल, पुस्तकें व स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया।

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