scriptरेगिस्तान में थाई एप्पल खिलाने के सपने पर दीमकों ने फेरा पानी | Termites dream of feeding Thai Apple in the desert | Patrika News

रेगिस्तान में थाई एप्पल खिलाने के सपने पर दीमकों ने फेरा पानी

locationनागौरPublished: Nov 30, 2018 06:35:33 pm

Submitted by:

Anuj Chhangani

कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में पौध चट कर गए दीमक

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रेगिस्तान में थाई एप्पल खिलाने के सपने पर दीमकों ने फेरा पानी

नागौर. बेर के आकार में नजर आने वाले थाई एप्पल के पौधों को खारी मिट्टी रास नहीं आई। खारी मिट्टी व मीठे पानी के अभाव में इसकी ज्यादातर पौध को दीमकों ने चट कर लिया। कृषि अनुसंधान केन्द्र की ओर से थाई एप्पल लगाए जाने का उद्देश्य था कि इसे यहां की मिट्टी के अनुकूल बनाया, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों पर मीठे पानी की अनुपलब्धता ने पानी फेर दिया कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र की ओर छह से सात माह पूर्व थाई एप्पल के पौधों को यहां पर लगाया गया था। इसे अनुसंधान केन्द्र में लगाए जाने के बाद इसकी पौध पर स्थानीय वातावरण के प्रभावों का अध्ययन करने में लगे कृषि वैज्ञानिकों को असफलता मिली। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हालांकि प्रारंभिक चरण में इसकी पौध की जड़ मिट्टी में मजबूती से जम चुकी थी, लेकिन जलीय उपलब्धता का अभाव होने की वजह से यह विकसित नहीं हो पाई।

फिर भी नहीं मिली सफलता
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार नागौर क्षेत्र की मिट्टी बलूई दोमट होने के कारण केवल पानी वाले एवं कठोर किस्म के माने जाने वाले पौधों के लिए ही मुफीद सिद्ध होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए थाई एप्पल की पौध एवं आंवला की पौध को यहां की मिट्टी के अनुकूल बनाए जाने के लिए नवीन तकनीकियों का सहारा भी लिया गया था। इसके लिए वैज्ञानिकों ने बडिंग कटिंग पद्धति का प्रयोग किया। इसमें पौध के निचले मुख्य हिस्से में टी के आकार का ढांचा बनाए जाने के बाद उन्नत किस्म की पौध का प्रवर्धन किया गया। थाई एप्पल आकार के बेर एवं आंवला की उन्नत किस्म की पौध तैयार करने के लिए इसी तकनीकी का सहारा लिया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पौधे हालांकि कुछ हद तक विकसित हो चुके थे, लेकिन खारी मिट्टी व खारा नहीं मिलने के कारण लगभग सूखने की स्थिति में पहुंचने के बाद यह दीमक के शिकार हो गए।

…तो फिर किसानों को मिलता इसका लाभ
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि वातावरण पौधों के अनुकूल सिद्ध होने पर लंबाई चार से पांच फिट तक पहुंच जाती है, नहीं तो फिर इसकी ऊंचाई केवल ढाई से तीन फीट तक रहती है। इसके बाद भी इसकी गुणवत्ता बनी रहती है। लंबाई कम होने की स्थिति में भी फल आने की प्रक्रिया बाधित नहीं होती है। कृषि वैज्ञानिक रोहिताश्व बाजिया ने कहा कि जलीय अनुपलब्धता के साथ ही खारा पानी व खारी मिट्टी की वजह से पौधे दीमक का शिकार हो गए। अब स्थिति अनुकूल होने पर फिर से इस पर निकट भविष्य में अनुसंधान किया जाएगा।

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