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सरकारी डाक पर मोबाइल एप का रंग फीका, स्मार्ट-फोन एंगेज

locationनागौरPublished: Feb 23, 2020 10:03:02 pm

Submitted by:

Sandeep Pandey

संदीप पाण्डेय
नागौर. मोबाइल एप से डाक विभाग की अपनी दशा सुधारने की कोशिश रंग नहीं ला पा रही। न तो अधिकांश डाकियों को अब तक स्मार्टफोन मिल पाए और जिन्हें मिले भी वे अभी उसमें ‘पारंगत नहीं हुए।

नागौर के मुख्य डाकघर में बंधे पड़े पोस्टकार्ड-लिफाफे।

नागौर. मोबाइल एप से डाक विभाग की अपनी दशा सुधारने की कोशिश रंग नहीं ला पा रही। न तो अधिकांश डाकियों को अब तक स्मार्टफोन मिल पाए और जिन्हें मिले भी वे अभी उसमें ‘पारंगत नहीं हुए।

संदीप पाण्डेय

नागौर. मोबाइल एप से डाक विभाग की अपनी दशा सुधारने की कोशिश रंग नहीं ला पा रही। न तो अधिकांश डाकियों को अब तक स्मार्टफोन मिल पाए और जिन्हें मिले भी वे अभी उसमें ‘पारंगत नहीं हुए। जोर-शोर से शुरू की गई इस योजना सिरे से इसलिए भी नहीं चढ़ पा रही कि अन्य विभागों के सरकारी दस्तावेज को इधर-उधर करने का काम भी ‘प्राइवेट ढंग से किया जा रहा है। नागौर शहर को ही ले लें तो नौ में से मात्र तीन डाकियों को ही स्मार्टफोन से ‘अपडेट किया गया है। जिले में अभी एक चौथाई डाकिए भी इससे पूरी तरह नहीं जुड़ पाए हैं। बहरहाल परिवहन विभाग की ओर से लाइसेंस/आरसी घर पहुंचाने का जिम्मा लेकर डाक विभाग ‘अभिभूत है। बावजूद इसके डाक पहुंचाने की आधुनिकता/ रफ्तार में सरकारी सिस्टम फिसड्डी साबित हो रहा है। न लिफाफे बिक रहे हैं, न ‘मजमून लिखा जा रहा है।
डाक-पेटी बारह तो डाकिए नौ

अभी शहर में डाक-पेटी बारह तो डाकियों की संख्या मात्र नौ है। विस्तार होते शहर में पिछले बीस साल से डाकियों की संख्या नहीं बढ़ पाई। नौ में से भी केवल तीन ही परमानेंट हैं, शेष छह बस ‘व्यवस्थार्थ हैं। मजे की बात केवल परमानेंट को ही मोबाइल-एप से जोड़ा गया है। सूत्रों से पता चला कि अभी शहर में ही सौलह डाकिए होने चाहिएं। ऐसा नहीं है कि काम कम है पर स्टाफ की कमी पर कुछ नहीं हो रहा। पूरे जिले में यही हाल है।
छह रुपए रोजाना साइकिल एलाउंस

कुछ समय पहले डाकियों का साइकिल एलाउंस नब्बे से बढ़ाकर 180 कर दिया। यानी करीब छह रुपए रोजाना। इसके साथ वर्दी के लिए पहले कपड़ा विभाग देता था, अब सालाना पांच हजार रुपए वर्दी के पेटे दिए जा रहे हैं। बातचीत में एक डाकिए ने बिना नाम छापने की शर्त पर बताया कि एप के लिए स्मार्ट फोन नहीं मिला, काम बढ़ेगा इसके लिए सुविधा भी बढऩी चाहिए।
पोस्टकार्ड-लिफाफे दो रोजाना तो अंतर्देशीय तीन दिन में एक

नागौर मुख्य डाकघर की पड़ताल में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यहां से पूरे महीने में बिकने वाले पोस्टकार्ड-लिफाफे की संख्या औसतन साठ-पैंसठ है। जबकि अंतर्देशीय तो पूरे महीने में आठ-दस भी नहीं बिक पाते। बताते हैं कि पोस्टकार्ड मिशन/ज्ञापन/शोक संदेश में काम आ रहे हैं तो लिफाफे में कम्प्यूटर से लिखी सामग्री पोस्ट होती है। अंतर्देशीय पत्र दोनों ही लिहाज से अनफिट है।
इसलिए प्राइवेट से पीछे

असल में कूरियर हो अथवा निजी सिस्टम, किसी भी डाक/पार्सल को भेजने में द्रुत गति के प्राइवेट साधन का इस्तेमाल होता है। इनका कनेक्टिंग सिस्टम भी मजबूत है तो साधन भी। दूसरी तरफ इसका सरकारी सिस्टम आज भी बाबा आदम के जमाने का है। संबंधित सेंटर से डाक आएंगी, इसकी स्क्रूटनी होगी फिर बस अथवा ट्रेन से इसे भेजा जाएगा। जहां पहुंचेगी वहां डाकिए को दी जाएगी, उसके बाद वितरित होगा। ऐसे में नागौर के पास के गांव में पहुंचने में ही डाक को दो-तीन दिन लग जाते हैं। इसमें सुधार की जरुरत है, इसके लिए प्लानिंग का अभाव है। इसके अलावा सस्ती/योजनाबद्ध/सरल तरीके के लिहाज से भी प्राइवेट सिस्टम भारी है। हालांकि पोस्टकार्ड हो या कोई डाक, संबंधित व्यक्ति तक पहुंचने में डाक विभाग को करीब छह रुपए भुगतने पड़ते हैं।मोबाइल एप की प्लानिंग तो अच्छी पर काम-काज सुस्तमोबाइल एप से समय की बचत होगी और डाक डिलिवरी के बाद वास्तविक ऑनलाइन वितरण की मॉनिटरिंग भी हो सकेगी। यही सोचकर यह योजना पूरे देश में लागू हुई। इसके लिए डाकियों को एण्ड्रोयड बेस्ड स्मार्ट फोन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, पर इसकी गति भी बहुत धीमी है। यह सही है कि एप से डाक डिलिवरी में तेजी तथा पारदर्शिता आएगी। विभाग का डाटा त्वरित गति से अपडेट होगा। डाकिए भी एंट्री के संकट से बचेंगे। यही नहीं जीपीएस सिस्टम पर आधारित होने के चलते इससे यह भी पता चल सकेगा कि डाकिए ने वास्तव में किस स्थान पर डाक का वितरण किया है। इसके बाद भी मोबाइल एप पर अभी सही ढंग से काम शुरू नहीं हुआ है। अपने सिस्टम को सुधारने के लिए एप की कवायद आधी-अधूरी ही है।
उपभोक्ता तक हर सुविधा

मोबाइल एप जैसे सिस्टम ने क्रांति ला दी। अब डाक हो या पैसे निकालने-जमा करने की बात, इस एप के जरिए हो रही है। डाक-विभाग अपने लोगों के विश्वास पर पूरा खरा उतरता है। उपभोक्ता तक हर सुविधा समय पर पहुंचाने के लिए कटिबद्ध हैं।
महेशचंद मीणा, अधीक्षक डाक विभाग, नागौर

एप की स्कीम शानदारयह सही है कि पिछले बीस साल में एरिया बढ़ा है। डाकिए कम होने के साथ डाक/पार्सल भेजने/पहुंचने के सिस्टम को थोड़ा और सुधारा जाना चाहिए। डाकिए बढ़ाए जाएं, वैसे मोबाइल एप की स्कीम शानदार है।
मांगीलाल विश्नोई, मण्डल सचिव, नेशनल एसोसिएशन पोस्टल एम्प्लाइज

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