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बीमार बच्चों पर आफत बनी सरकारी शिक्षकों की आदत

locationनागौरPublished: Nov 22, 2021 11:10:52 pm

Submitted by:

Sandeep Pandey

संदीप पाण्डेय
नागौर. सरकारी स्कूलों के बच्चों की ‘सेहत संभालने की जिम्मेदारी शिक्षकों को रास नहीं आई। आखिरी दिन बीतने के बाद भी जिलेभर के एक-तिहाई स्कूलों में हेल्थ स्क्रीनिंग का काम हो पाया है। करीब चार लाख बच्चों की ‘तीमारदार बनने वाली सरकार की यह रफ्तार देखकर ही तबीयत बिगडऩे लगी है। पंचायत स्तर लगने वाले शिविर में चिन्हित बच्चे नहीं पहुंच पा रहे। यानी मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना से जुडऩे वाले राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की स्थिति बदतर है।

school

medical camp

– जिलेभर के एक तिहाई स्कूलों में ही हो पाई हेल्थ स्क्रीनिंग

-कई ब्लॉक में बीस फीसदी स्कूलों में भी नहीं हुआ काम, शिक्षकों की अनदेखी से चार लाख बच्चों पर आफत

-करीब आठ हजार बच्चे चिन्हित, काम में उदासीनता बरतने वाले शिक्षकों पर होगी कार्रवाई
एक्सक्लूसिव

हालांकि बच्चों की स्क्रीनिंग नहीं करने वाले शिक्षकों के खिलाफ अब कड़ी कार्रवाई का ऐलान किया जा रहा है। बच्चों को बीमारी से मुक्त कराने की सरकारी कोशिश को धक्का लगा है।
सूत्रों के अनुसार जिले के 2993 सरकारी स्कूलों में से अभी केवल 1059 स्कूल के शिक्षकों ने हेल्थ स्क्रीनिंग पूरी की है। इनमें करीब 8148 बच्चे चिन्हित हो पाए हैं। इसके लिए 21 नवंबर अंतिम दिन था। हाल ऐसा रहा तो कई महीनों तक जिले के उन बच्चों का पता नहीं लग पाएगा जो बड़ी बीमारी से पीडि़त हैं और सरकार की इस पहल में मुफ्त उपचार करा सकेंगे। इसके पीछे के कारणों की जांच होगी। हालांकि बताया जाता है कि शिक्षक ही बच्चों की स्क्रीनिंग नहीं कर रहे। हर स्कूल में दो शिक्षक इसके लिए तय किए गए थे। इन्हें इसका प्रशिक्षण भी मिल चुका है। बावजूद इसके अधिकांश इस काम से पल्ला झाड़ रहे हैं। असल में स्कूल में हेल्थ स्क्रीनिंग के दौरान चयनित बच्चों को बाद में ग्राम पंचायत पर लगने वाले शिविर में ले जाना है ताकि सरकारी अथवा निजी अस्पताल में इनका मुफ्त उपचार हो। घर से रवानगी तक का किराया भी सरकार वहन करने को तैयार है, इसके बाद भी शिक्षकों की अनदेखी सरकार के बच्चों के सेहत सुधारने की बड़ी योजना पर ‘रोड़ाÓ अटका रहे हैं।
बताते हैं कि जिले में करीब पांच सौ ग्राम पंचायतों में हर हफ्ते दो बार इस तरह के शिविर लग रहे हैं जिनमें चिन्हित बच्चों की जांच कर हाई सेंटर अथवा संबंधित अस्पताल में आगे उपचार के लिए भेजा जाना है। अब अधिकांश स्कूलों में हेल्थ स्क्रीनिंग हुई नहीं तो वे इन शिविरों में कैसे पहुंचते। ऐसे में कई शिविर बिना बच्चों के समाप्त हो गए। ऐसा भी है कि आगे वहां शिविर लगेंगे या नहीं, इस पर संशय है सो अलग।कहीं तो एक चौथाई भी नहींसूत्रों के अनुसार जिले के चौदह ब्लॉक में कई तो ऐसे हैं जहां एक चौथाई स्कूलों में भी स्क्रीनिंग नहीं हुई है।
मकराना में 254 में से 58, डेगाना में 207 में से 40, मेड़ता सिटी में 215 में से 45, जायल में 232 में से 51 तो नावां में 162 में से 29 स्कूलों में ही हेल्थ स्क्रीनिंग हो पाई है। नागौर ब्लॉक में 317 में से 194, लाडनूं में 166 में से 60, मूण्डवा में 166 में से 72, कुचामन में 223 में से 85, रियांबड़ी में 193 में से 88, परबतसर में 232 में से 95, मौलासर में 156 में से 45, खींवसर में 292 में से 118 और डीडवाना में 188 में से केवल 81 स्कूलों में अब तक हेल्थ स्क्रीनिंग हो पाई है।
आठ हजार से अधिक ‘बीमार

सूत्र बताते हैं कि अब तक हुई हेल्थ स्क्रीनिंग में जिलेभर में 8148 स्कूली बच्चे चिन्हित हुए हैं। इनमें कई तो बड़ी बीमारी से ग्रसित हैं। दूरदराज गांव में स्क्रीनिंग के दौरान इन बीमारियों का पता चला तो यह भी सामने आया कि आर्थिक कारण या फिर जागरुकता की कमी के चलते इनके पेरेंट्स बच्चों का उपचार ही नहीं करा रहे थे। नागौर ब्लॉक में सर्वाधिक 1695, रियांबड़ी में 1066, कुचामन में 947 तो लाडनूं में 657 बच्चे चिन्हित हुए हैं। डेगाना में 288, मेड़तासिटी में 147, मूण्डवा में 551, नावां में 223, जायल में 291, परबतसर में 742, मौलासर में 298, खींवसर में 275, डीडवाना 426 बच्चे बड़ी बीमारी से ग्रसित पाए गए। इनमें कई बच्चे तो बड़ी बीमारियों से ग्रसित पाए गए।बच्चों को क्यों सभालेंसूत्रों का कहना है कि हर स्कूल में इसके लिए दो-दो टीचर नियुक्त किए गए। उन्हें प्रशिक्षित भी किया पर नतीजा वही ढाक के तीन पात। शिक्षकों ने इसे गंभीरता से ही नहीं लिया जबकि राज्य सरकार ने पूरी जिम्मेदारी लेते हुए बच्चों के मुफ्त उपचार का जिम्मा उठाया। स्कूलों में चिन्हित बच्चों को फिर ग्राम पंचायत पर लगने वाले शिविर में ले जाया जाएगा जहां चिकित्सक उनकी जांच कर परामर्श के साथ दवा तो देंगे ही जरुरत पडऩे पर उन्हें बड़े अस्पताल में भी रेफर किया जाएगा। संबंधित रोग का डॉक्टर नहीं होने पर एसएमएस अस्पताल समेत अन्य बड़े चिकित्सा संस्थानों के चिकित्सक टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऑनलाइन उपचार दे सकेंगे।
हर पंचायत पर दो शिक्षक और एक प्रिंसिपल को वहां के स्कूलों में बच्चों की स्क्रीनिंग की जिम्मेदारी होगी। लापरवाही पूरी बरत रहे टीचरसूत्रों ने बताया कि इतने बड़े काम का जिम्मा भी गंभीरता से नहीं लिया गया। सेहत को लेकर स्कूली बच्चों की स्क्रीनिंग करने में ही शिक्षक फिसड्डी साबित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर इसके लिए सभी उच्च अधिकारियों को भी सख्त निर्देश जारी किए जा चुके हैं। बावजूद इसके नागौर जिले में मेड़तासिटी, जायल, मकराना, डेगाना समेत कई ब्लॉक तो हेल्थ स्क्रीनिंग में पूरी तरह फिसड्डी रहे।
इनका कहना

तय समय में स्क्रीनिंग करने में शिक्षक विफल साबित हुए। उन्हें नोटिस दिए जाएंगे, लापरवाही बरतने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई की जाएगी

-बस्तीराम सांगवा, अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक नागौर

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