सोमवार को जैन विश्वभारती में आस्था का सैलाब उमड़ा। परिसर में उल्लास और उत्साह का वातावरण था। आचार्य महाश्रमण के श्रीमुख से महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुमुक्षु समता ने मुमुक्षु बहनों तथा 81 वर्षीया श्राविका सूरजबाई का परिचय दिया। समणी ज्योतिप्रज्ञा ने श्रेणी आरोहण करने वाली समणीवृंद का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान के बजरंग जैन ने मुमु़क्षुओं के आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थियों के परिजनों द्वारा पूज्यचरणों में आज्ञा पत्र अर्पित किया गया। तदुपरान्त मुमुक्षु सुरभि, मुमुक्षु चेतना, समणी रुचिप्रज्ञा, समणी प्रशांतप्रज्ञा, समणी मनस्वीप्रज्ञा, समणी शरदप्रज्ञा तथा 81 वर्षीया वयोवृद्ध श्राविका सूरजबाई ने अपनी आंतरिक प्रसन्नता को अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने तेरापंथ धर्मसंघ के दीक्षा प्रणाली सहित व्यवस्थाओं के संदर्भ में लोगों को उत्प्रेरित किया। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि गुरु शिष्य को शिक्षण और ज्ञान प्रदान करने वाले होते हैं। योग्य गुरु की सन्निधि का प्राप्त होना भी सौभाग्य की बात होती है।
– आचार्य महाश्रमण ने नवदीक्षित साध्वियों का किया नामकरण
आचार्य प्रवर ने साध्वीप्रमुखा का अभिवादन करते हुए आर्षवाणी का उच्चारण कर दीक्षार्थियों को साध्वी दीक्षा प्रदान की। आर्षवाणी द्वारा अतीत की आलोयणा कराने के बाद आचार्य की अनुज्ञा से साध्वीप्रमुखा ने सभी दीक्षार्थियों का केशलोच कर रजोहरण प्रदान किया। आचार्य महाश्रमण ने नवदीक्षित साध्वियों का नामकरण किया। जिसमें समणी रुचिप्रज्ञा को साध्वी रुचिरप्रभा, समणी प्रशांतप्रज्ञा को साध्वी परिधिप्रभा, समणी मनस्वीप्रज्ञा को साध्वी महकप्रभा, साध्वी शरदप्रज्ञा को साध्वी सिद्धांतप्रभा, ज्ञाविका सूरजबाई को साध्वी सुधर्मप्रभा, मुमुक्षु चेतना को साध्वी चिरागप्रभा और मुमुक्षु सुरभि को साध्वी सुशीलप्रभा नाम दिया। आचार्य ने नामकरण के पश्चात नवदीक्षित साध्वियों को संयम और अनुशासन का ओज आहार प्रदान करते हुए उन्हें संयम पथ पर दृढ़ता और जागरूकता के साथ आगे बढऩे की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।