यहां पर स्थापित हैं पातालेश्वर महादेव
बंशीवाला मंदिर में ही नीचे की ओर तहखानानुमा कक्ष है। जहां पर भगवान पातालेश्वर विराजमान हैं। बताते हैं कि यह स्वंयभू शिवलिंग है। इसे मुगलकाल में क्षति पहुंचाने का प्रयास किया गया, लेकिन पूरा शिवलिंग ही पानी के अंदर समा गया था। इसकी महिमा देखकर मुगल यहां से लौट गए थे। मंदिर की स्थापना काल से यहां पर पाराशर परिवार पीढ़ी दर-पीढ़ी मंदिर का अर्चन कराने का काम करते चले आ रहे हैं। वर्तमान में पुजारी का दायित्व संभाल रहे नारायण दीक्षांत पाराशर ने बताया कि मंदिर में लगभग पूरे वर्ष कार्यक्रम होते रहते हैं। जन्माष्टमी से लेकर गोपाष्टमी, रामनवमी, अन्नकूट, रंगदारी उत्सव के साथ ही ऊबछठ पर केवल महिलाओं का मेला लगता है। कार्यक्रमों की यह शृंखला भी लंबे समय से जारी है। पुजारी के अनुसार यहां पर गायें शिवलिंग को स्वत: दुग्धपान कराती। यह देखकर लोगों ने कौतुहलवश इस जगह पर आए तो यहां पर उनको शिवलिंग मिला। बताते हैं कि इसे पातालेश्वर मंदिर में शिवलिंग रूप में महादेव को स्थापित करने के पश्चात यहां पर बंशीवाला स्थापित हुए। तब से इसका लगातार अर्चन होता चला आ रहा है। वर्तमान में इसे बंशीवाला के साथ ही नगरसेठ भी पुकारा जाता है।
गोपीनाथ भगवान ने कहा यहीं रहने दो मेरी मूर्ति
-शहर के प्राचीन मंदिरों में शामिल गोपीनाथ मंदिर बना आस्था का केन्द्र
बंशीवाला के बगल में प्राचीन गोपीनाथ मंदिर भी है। यह भी काफी पुराना बताया जाता है। मंदिर के पुजारी कमल पाराशर बताते हैं कि यह हजारों वर्ष पुराने मंदिर में से एक है। हालांकि मंदिर के मुख्य गेट पर संवत का अंकन है, लेकिन इसे पुजारी विश्वसनीय नहीं मानते हैं। बताते हैं कि मुगलकाल के दौरान गोपीनाथ की मूर्ति का भंजन करने के लिए मुगलकाल में मीर खां पठान सैनिकों सहित आया, लेकिन वह मूर्ति को क्षति नहीं पहुंचा सका। इस दौरान मूर्ति की एक उंगली में हल्की सी खराश आई। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं कर पाया तो चला गया। बाद में मंदिर में खराश आई मूर्ति की जगह नागौर के एक बनिया परिवार ने यह कहकर बदलने का प्रयास किया कि मूर्ति खराशयुक्त मंदिर में नहीं रहनी चाहिए। उसने नई मूर्ति को स्थापित करने के लिए रख दिया। इसके बाद उसी दिन उसे स्वप्न आया, और भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जिस प्रकार घर में बालक को चोट लगने पर नहीं निकाला जाता है। उसी तरह से उनकी जो मूर्ति पहले से रखी हुई है। उसे वहीं रहने दिया जाना चाहिए। इसके बगल में नई मूर्ति जरूर लगा सकते हो। इस स्वप्न को देखते हुए उसकी नींद खुल गई, और पुरानी मूर्ति को वहां से हटाने का विचार त्याग दिया।इसके बाद नई लाई गई मूर्ति भी पहले से स्थापित मूर्ति के बगल में स्थापित करा दी गई। पुजारी पाराशर बताते हैं कि मंदिर में आज भी वही पुरानी मूर्ति लगी हुई है। इस मूर्ति को लगातार देखने से प्रतीत होता है कि मानो भगवान खुद बात कर रहे हों। पुजारी पाराशर बताते हैं कि पहले यहा पर नाथ सम्प्रदाय के साधुओं का डेरा लगता था। दिनभर भजन, कीर्तन एवं तपस्या आदि चलती रहती थी। आज भी प्रत्येक शनिवार को यहां पर जागरण का आयोजन किया जाता है। यही नहीं, मंदिर की महिमा की वजह से ही नागौर ही नहीं, बल्कि आसपास के अन्य जिलों के साथ दूरदराज क्षेत्रों से भी श्रद्धालू दर्शन के लिए यहां पर आते रहते हैं।
गोपीनाथ मंदिर में प्रवेश करने के लिए दो गेट है। पूर्व में वैकल्पिक रास्ते के तौर पर बना गेट वर्तमान में मुख्य गेट बन गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही भगवान गणेश की मूर्ति मिलती है। इसके बाद भगवान के चौबीस अवतारों की विभिन्न मुद्राओं में लगी बड़ी फोटो के साथ ही इसकी स्थापत्य शैली से ही इसकी प्राचीनता का एहसास होने लगता है। मंदिर में जन्माष्टमी से लेकर रामनवमी आदि विविध पर्व के आयोजन भी वर्ष पर्यन्त होते रहते हैं।