बिजली मिल नहीं रही और बिल ‘टाइम’ पर पहुंचता है। शिकायत के निराकरण में दो-दो दिन लग रहे हैं। यानी उपभोक्ताओं के अधिकार का हनन होता रहे, कोई ‘जिम्मेदार/जवाबदेह’ नहीं। गुरुवार को बारिश आई, संजय कॉलोनी, बालवा रोड हाउसिंग बोर्ड, रीको, सलेऊ, भदवासी समेत कई इलाके शाम सात बजे ‘अंधेरे की चपेट’ में आ गए। फॉल्ट ढूंढने में ही चौदह घंटे लग गए। जनता की पीड़ा को समझा जा सकता है। लोग शिकायत के लिए फोन/मोबाइल करते रहे, पर इक्का/दुक्का के अलावा किसी के उठे ही नहीं। जसनगर के बारह गांव में दो दिन से बिजली ठप है। यहां बताते चलें कि कई बार कहा गया है कि बिजली जैसी मूलभूत सुविधा की शिकायत के लिए अधिकारी/कर्मचारी का फोन नहीं उठाना ‘गंभीर’ लापरवाही की श्रेणी में आता है। आखिर क्यों नहीं उठाए जाते फरियादियों के फोन? कंट्रोल रूम क्यों केवल नाम का ही है? बिजली गुल हो जाने की शिकायत को डिस्कॉम अफसर बहुत ‘सामान्य’ समझते हैं। हाल ही फॉल्ट निकालने का काम सरकारी कर्मचारियों के बजाय निजी हाथों में दे दिया गया है। आलम यह है कि उन्हें फाल्ट मिलता ही नहीं, बाद में सरकारी कर्मचारियों की ‘आवभगत’ होती है।
खामियों का हिसाब लगाया जाए तो एक लंबी ‘फेहरिस्त’ है जो डिस्कॉम की ‘बखिया’ उधेडऩे के लिए काफी हैं। अघोषित कटौती से गांव ही नहीं कस्बे/शहर परेशान है। जब/तब बिजली काटी जा रही है। जेईएन/एईएन को शिकायत करें तो कोई सुनवाई नहीं। आखिर यह छलावा क्यों? जिले के ‘हाकिम’ कई बार कह चुके हैं कि बिजली कटौती की पूर्व सूचना उपभोक्ताओं को एसएमएस के जरिए पूर्व में भेजी जाए ताकि वह अपना ‘शिड्यूल’ उसी हिसाब से तय कर ले। इसे जिलेभर में लागू करने को कहा गया था, लेकिन अभी केवल दो/तीन जगह ही व्यवस्था कारगर हो पाई है। तार झूल रहे हैं, ट्रांसफार्मर सड़क से कम ऊंचाई पर हैं तो हाईटेंशन लाइन लोगों की जान सांसत में ला रही है पर डिस्कॉम की ‘बला से’। दूरदराज गांवों में कोई बड़ा फाल्ट होता है तो चार/पांच दिन तक बिजली का ‘आगमन’ नहीं होता। उस पर ‘कोढ़ में खाज’ वाली कहावत बिजली चोरों ने चरितार्थ कर दी। एक-दो कार्रवाई कर खुद की ‘पीठ थपथपाने’ का काम करने वाले अफसर अनगनित बिजली चोरों से ‘आंखें बचा’ रहे हैं। व्यवस्था सुधारने की जरूरत है। सख्ती की जरूरत है। अफसर और कार्मिकों से जवाब मांगने की ‘पहल’ होनी चाहिए। गुहार सुनने में बरती जा रही ‘कोताही’ बंद होनी चाहिए। दर्ज शिकायत और उनके हल होने का ब्योरा रोजाना लिया जाए। बेवजह घरों को रोशन होने का अधिकार तो मत ‘छीनिए’। रोकिए लापरवाही को। बिजली है अनमोल रतन…के डिस्कॉम के ‘कथन’ को बरकरार बने रहने दीजिए। बिजली बचाने का ‘जतन’ उपभोक्ता जरूर करेगा पर उसके हक की बिजली छीनकर परेशान तो मत कीजिए। व्यवस्था सुधारिए, इसकी जिम्मेदारी नौकरशाहों की है तो सरकार का जिम्मा संभालने वालों की भी।