सूत्रों का कहना है कि पूरे नागौर जिले की हालत सीएलजी के लिहाज से लचर है। सदस्यों के चयन में कहीं राजनीति तो कहीं पुलिस की मेहरबानी हावी रहती है। यही वजह है कि सीएलजी का राजनीतिकरण कम इससे फायदा उठाने की परम्परा हावी हो गई है। अव्वल तो पूरे साल में सीएलजी की मीटिंग ही न के बराबर हुई। और तो और जो पहले भी होती रही उनमें भी पूरे लोग शामिल नहीं होते। वर्तमान में थाना अथवा जिला स्तर पर गठित सीएलजी के कई सदस्यों के दलाली समेत कई संदिग्ध गतिविधियों की शिकायतें पुलिस अथवा उच्च अधिकारियों को भी मिलीं पर वे ताक पर रख दी गईं। कार्रवाई करने का जब-जब भी कहा गया तो पुनर्गठन की बात कहकर टाल दिया गया।
सूत्र बताते हैं कि सीएलजी में उन्हीं का चयन होता है जो बैठक में पुलिस के खिलाफ नहीं बोले। अपराध पर अंकुश लगाने के लिए बने सीएलजी ग्रुप के सदस्यों के चयन पुलिस बिना उसकी योग्यता जाने औपचारिकता निभाते हुए मर्जी से चयन करती है। पिछली बार चयनित कई सदस्य या तो किसी पुलिसकर्मी के खास होने की वजह से चुने गए या फिर सरपंच समेत कई बड़े राजनीतिक पदों की कृपा से। कुल मिलाकर सीएलजी सदस्यों का चयन भी औपचारिकता बन गई है। हर महीने होने वाली सीएलजी बैठक का बाकायदा रजिस्टर भी होता है, जिसमें सदस्यों की ओर से दिए जाने वाले सुझाव लिखे जाते हैं। अगली बैठक में पिछली बैठक की समीक्षा भी की जाती है। हकीकत में इनका समाधान होता ही नहीं है। चुने जाने वाले कई सदस्य भी पुलिस के साथ में रहने से अपने काम बनाने में लग जाते हैं। नियमानुसार किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता या पदाधिकारी को सदस्य नहीं बनाया जा सकता पर जिले में इसे धता बताया गया है।
जिला स्तर पर सीएलजी सदस्यों और पुलिस अधिकारियों की बैठक पिछले हफ्ते ही नागौर में हुई। एसपी कार्यालय के कॉन्फ्रेंस हाल में सीएलजी की मीटिंग एसपी श्वेता धनखड़ की अध्यक्षता में हुई। करीब एक दर्जन थाना प्रभारी, कुछ सीओ के साथ हर थाने का एक-एक सीएलजी मेम्बर शामिल हुआ। इसके बाद भी जब सदस्यों को बोलने का मौका मिला तो पुलिस की समस्या बताकर चुप हो गए। अपराध बढऩे अथवा वारदात नहीं खोल पाने या फिर पुलिस की खामियों के बारे में कोई कुछ नहीं बोला।
-राजेश मीना, एएसपी, नागौर।