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सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को भूला चिकित्सा विभाग

locationनागौरPublished: Feb 16, 2020 09:19:02 pm

Submitted by:

Sharad Shukla

Nagaur patrika. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं रोगियों को दिए जाने में निजी अस्पताल प्रावधानों को तार-तार कर दिया है। अस्पतालों में न तो निजी तौर पर इलाज कराने वाले रोगियों को उनके खर्चे की सटीक एवं संभावित जानकारी दी जाती है, और न ही इलाज में होने वाले परिणामों के बारे में उनके साथ इस पर आंकलन किया जाता है। स्थिति यह है कि रोगियों को इलाज के बाद भारी-भरकम बिल थमा दिए जाने के बाद ही खर्चे की जानकारी मिल पाती है. Nagaur patrika

The Supreme Court forgot the guidelines of the Medical Department

The Supreme Court forgot the guidelines of the Medical Department

नागौर. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं रोगियों को दिए जाने में निजी अस्पताल प्रावधानों को तार-तार कर दिया है। अस्पतालों में न तो निजी तौर पर इलाज कराने वाले रोगियों को उनके खर्चे की सटीक एवं संभावित जानकारी दी जाती है, और न ही इलाज में होने वाले परिणामों के बारे में उनके साथ इस पर आंकलन किया जाता है। स्थिति यह है कि रोगियों को इलाज के बाद भारी-भरकम बिल थमा दिए जाने के बाद ही खर्चे की जानकारी मिल पाती है। इससे न केवल रोगियों के घर से भारी-भरकम राशि का व्यय हो जाता है, बल्कि कई बार काफी खर्च के बाद भी परिणाम नकारात्मक मिलता है। ऐसे में बड़े कापोरेट स्तर के अस्पताल की ओर से कह दिया जाता है कि इलाज करना केवल उनके हाथ में है परिणाम देना नहीं। ऐसे में रोगी के परिजन खुद को ठगा हुआ महसूूस तो करते हैं, मगर डॉक्टर्स लॉबी के सामने उनकी एक नहीं चल पाती। हालात इतने खराब होने के बाद भी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वह इस संबंध में कुछ नहीं कर सकते हैं। उनके पास कार्रवाई का अधिकार ही नहीं है, जबकि प्रावधानों में स्पष्ट है कि चिकित्सकीय मापदण्ड की अवहेलना करने वाला कार्रवाई के दायरे में खुद-ब-खुद आ जाता है। इस संबंध में की गई पड़ताल में सामने आया है कि यह स्थिति अकेले नागौर की नहीं, बल्कि जयपुर, कोटा एवं जोधपुर तथा बीकानेर सरीखे बड़े जिलों की भी है। इससे रोगियों के परिजनों के साथ हर दिन गुजर रहे हालातों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है।

प्रावधानों की आड़ में पैथालिाजिकल रिपोर्ट में रोगी से खिलवाड़
धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक भी अब अपना धर्म भूलने लगे हैं। अब पैसा दो, इलाज लो के तर्ज पर शुरू हुई निजी अस्पतालों की कार्यशैली ने हालात बिगाड़ कर रख दिए हैं। चिकित्सकीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले निजी अस्पतालों में प्रावधानों की अवहेलना स्पष्ट तौर पर नजर आने लगी है। निजी अस्पतालों को स्पष्ट दिशा-निर्देश है कि वह अपने यहां होने वाले प्रत्येक इलाज या गतिविधियों की दर को डिस्प्ले बोर्ड पर अंकित करेंगे। इसमें उनके यहां पर होने वाली प्रत्येक इलाज या जांच का पूरा ब्योरा दर्ज रहेगा। इसका डिस्प्ले भी ऐसे स्थान पर किए जाने का प्रावधान है, जहां से यह सभी को नजर आना चाहिए। इसके लिए अस्पतालों की पड़ताल की गई, लेकिन यह डिस्प्ले बोर्ड कहीं नजर नहीं आया। कुछ निजी चिकित्सकों के यहां उनके देखे जाने की शुल्क दर की स्लिप जरूर लगी मिली, लेकिन दिखाने के बाद उनके यहां कराई जाने वाली अलग-अलग जांचों की दर का डिस्प्ले बोर्ड किसी जगह नहीं मिला। यह स्थिति कभी भी देखी जा सकती है।

जिला अस्पताल में चिकित्सा कर्मियों के खाली पदों ने बिगाड़ी रोगियों की हालत
अस्पतालों में नहीं मिले खर्च डिस्प्ले बोर्ड
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग एवं डब्ल्यूएचओ के मापदण्ड के तहत विभिन्न अस्पतालों की छानबीन की गई, लेकिन कही भी इसकी पालना होती नहीं नजर आई। विडम्बनापूर्ण स्थिति यह है कि प्रदेश की राजधानी से सरकार चलाने वाले जिम्मेदार केवल मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना की थोथेबाजी करने में जहां नजर आते हैं, वहीं उनकी ही नाक के नीचे खुलेआम प्रावधानों को तार-तार किए जाने के बाद कार्रवाई करने की अपेक्षा चुप्पी साध ली जाती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संबंध में दिशा-निर्देश दे रखे हैं। इसके बाद भी चिकित्सा विभाग इन निर्देशों को भूल गया।

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इसको भूल गया चिकित्सा विभाग
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, सरकारी और निजी क्षेत्र में दोनों अस्पताल बुनियादी आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं और घायल व्यक्तियों को आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने का अधिकार है। भुगतान/ अग्रिम मांग के बिना मरीज की देखभाल शुरू की जाए और भुगतान क्षमता के अनुसार रोगी को बुनियादी देखभाल प्रदान की जाए। प्रत्येक रोगी का अधिकार है कि किसी भी संभावित खतरनाक परीक्षण या उपचार से पहले सूचित सहमति मांगी जानी चाहिए। प्रत्येक रोगी या उसकी देखभाल करने वालों की पसंद के उपयुक्त अन्य चिकित्सक से दूसरी राय लेने का अधिकार है। अस्पताल प्रबंधन रोगी के देखभाल करने वालों को बिना किसी अतिरिक्त लागत या देरी के इस तरह की राय मांगने के लिए सभी आवश्यक रिकॉर्ड और जानकारी प्रदान कराएगा।

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इनका कहना है…
निजी सेक्टर से जुड़े अस्पतालों के संदर्भ में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पास सीमित अधिकार हैं। प्रावधानों के तहत कई बार उच्चाधिकारियों के दिशा-निर्देश पर कार्रवाई की जाती है।
डॉ. सुकुमार कश्यप, सीएमएचओ नागौर

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