पौ धाम आश्रम में सदियों से चल रही है पंगत परम्परा खीचराम व खुरमाराम प्रसाद की देशभर में पूछ, मिटते हैं असाध्य रोगसाढ़े 300 साल पूर्व बाबाजी सुखराम दास महाराज ने की स्थापना- हर आने वाला श्रद्धालु व यात्री पाता है प्रसादी
– बाजरे का खीचडा व सोगरा प्रसाद कहलाता है Òखुरमाराम Ó
नागौर जिले में एक आश्रम ऐसा भी जहां 350 साल से चल रहा है भण्डारा
अणदाराम विश्नोई कुचेरा. नागौर जिले में एक ऐसा आश्रम है ,जहां साढ़े तीन सौ साल से निरन्तर भण्डारा चल रहा है। यहां आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु व यात्री भण्डारे में प्रसादी अवश्य पाता है चाहे वह किसी भी वक्त आश्रम में पहुंचे। खुरमाराम नाम से पहचाने रखने वाली यह प्रसादी संत व भक्त बड़े चाव से जिमते हैं। खास बात यह है कि भण्डारे में बनने वाली सभी वस्तुओं के नाम के साथ ÒरामÓ शब्द जुड़ा रहता है। इसके पीछे धारणा है कि खाते समय भी भगवान का नाम उच्चारित होता रहे । यह भण्डारा कुचेरा कस्बे के निकट दादूपंथ के वरिष्ठ आश्रम पौ धाम में करीब 350 साल से संचालित है।
लगती है पंगत प्रसादी पौ धाम आश्रम के महंत रामनिवास दास महाराज बताते हैं कि यहां पंगत प्रसादी व आगन्तुकों को भोजन कराने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। भण्डारे में बाजरे का खीचड़ा,कढ़ी व बाजरे का सोगरा बनता है, जिसे खुरमाराम कहते हैं। खुरमाराम प्रसादी लोग आशीर्वाद के रूप में अपने साथ भी ले जाते हैं।
हर दिन एक क्विंटल से अधिक बाजरा की खपत पौ धाम के भण्डारी संत भगवान दास महाराज बताते है कि पौ धाम में खीचराम व खुरमाराम प्रसाद बनाने में प्रतिदिन करीब एक क्विंटल बाजरा व करीब दस किलो मोठ लगता है। जबकि कढ़ी बनाने में 10 से 12 किलो बेसन उपयोग होता है। खीचड़ा बनाने के लिए बाजरा कूटने की मशीनें लगी हुई है।
3 से 5 क्विंटल ईंधन की खपत महंत ने बताया कि भोजन पौष्टिक व स्वास्थ्य वर्धक बने इसके लिए ईंधन के रूप में सूखी लकड़ी का उपयोग किया जाता है। सूखी लकड़ी आसपास के गांवों से आश्रम पहुंचाई जाती है। संत भगवानदास बताते हैं कि रोजाना 3 से 5 क्विंटल सूखे ईंधन की खपत होती है। भण्डारे के लिए करीब 500 क्विंटल बाजरा हर समय स्टॉक में रखा रहता है। अनाज दाल व चूरमा पीसने तथा बाटी- रोटी बनाने का काम मशीन से होता है। आश्रम में चातुर्मास व बड़े आयोजनों के दौरान बाजरे का खीचड़ा, कढ़ी व खुरमाराम के साथ मिठाई , पकवान, सब्जी पुड़ी व रोटी भी बनाई जाती है।
झोली भिक्षा से हुई शुरुआत महंत रामनिवास दास महाराज ने बताया कि जोधपुर दरबार की सेना को बाबा सुखराम दास महाराज ने एक झारी से पानी पिलाया था, साथ ही झोली में भिक्षा मांगकर लाए थे। उसी खुरमाराम प्रसाद से पूरी सेना को भोजन कराया, तभी से यहां आगन्तुकों, संन्तो व श्रद्धालुओं को भोजन कराने की परम्परा चल पड़ी। पंगत परम्परा में शाम के समय खीचड़ी और कढ़ी तथा सुबह के समय बाजरे का सोगरा व कढ़ी का प्रसाद मिलता है। किसानों व भामाशाहों का मिलता सहयोग
भण्डारा के लिए आस-पास के गांवों के किसानों, ग्रामीणों, भक्तों व भामाशाहों की ओर से अनाज भेंट किया जाता है। खुरमा का प्रसाद आकेली बी, सिंधलास व बच्छवारी गांवों से भिक्षा की झोली में आनेवाली रोटियों से बनाया जाता है। उत्सव आदि पर भक्तों की ओर से आश्रम में रसोई देने की परम्परा भी है ।
IMAGE CREDIT: patrika एक झारी से जोधपुर दरबार की पूरी सेना को पानी पिलाने से नाम पड़ा पौ धाम दादूपंथी आश्रम पौ धाम के संस्थापक सुखराम दास महाराज काफी सिद्धपुरुष थे। उन्होंने करीब साढ़े 300 साल पूर्व यहां से गुजर रही जोधपुर दरबार की पूरी सेना को एक ही झारी (तुम्बी) से पानी पिलाया था। उसी कारण आश्रम का नाम पौ धाम पड़ा। महाराज ने यहां पंगत लगाकर सेना को भोजन करवाया था। तब से यहां लगातार पंगत परम्परा चल रही है