Nagaur.जयमल जैन पौषधशाला में श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में प्रवचन में साध्वी बिंदुप्रभा ने कहा कि न्यायपूर्वक आजीविका करना गृहस्थ का प्रथम धर्म है
नागौर•Aug 03, 2021 / 09:14 pm•
Sharad Shukla
Shravikas listening to the discourse at Jaimal Jain Poushdashala.
नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में प्रवचन में साध्वी बिंदुप्रभा ने कहा कि मन की भूमिका जब सदभावों से मैत्री, प्रमोद, करुणा एवं मध्यस्थ भावनाओं से धर्म के योग्य बन जाती है तो उसमें व्रत, त्याग, नियम आदि के बीज बड़ी सरलता व शीघ्रता से अंकुरित हो सकते हैं। जीवन में व्यवस्था, उत्तरदायित्व एवं आनन्द होना चाहिए। न्यायपूर्वक आजीविका करना गृहस्थ का प्रथम धर्म है। गृहस्थ जीवन के लिए अर्थ और काम आवश्यक है परन्तु दोनों पर न्याय और नीति का नियंत्रण रहना चाहिए। नहीं तो, आज के इस अर्थ प्रधान युग में लोग मानते हैं कि अर्थ के बिना सब व्यर्थ है। धर्म से अनुबंधित अर्थ और काम जीवन विकास में सहायक बनते हैं। साध्वी ने कहा कि धन के बिना यदि धर्म नहीं टिक सकता तो, धर्म के बिना धन भी नहीं टिक सकता। नीतिपूर्वक अर्जित धन ही मनुष्य के आध्यात्मिक विकास में सहायक हो सकता है। बेईमानी से दूसरों का हक मारकर रिश्वत या चोर – बाजारी से, दूसरों को धोखा देकर या उनकी मजबूरी का अनुचित लाभ उठाकर धन कमाना पाप है। अधर्म का मूल है। ऐसा धन बाद में दारुण दुख देकर चला जाता है। अनीति का धन अपने साथ अनेक विपत्तियां लाता है। इसलिए अन्याय, अनीति से दूर रहना चाहिए। जीवन में सुख धन से नहीं, मन से मिलता है। मन में समता, नीति है तो निर्भयता रहेगी। निर्भयता शांति दिलाती है जिससे जीवन सुखी हो जाता है।
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के विजेता पुरस्कृत
प्रवचन में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर मुदित पींचा, धनराज सुराणा, दीक्षा चौरडिय़ा एवं कंचनदेवी मोदी ने दिए। प्रवचन की प्रभावना एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के विजेताओं को ज्ञानचंद, ओमप्रकाश, पन्नालाल माली की ओर से की गई। अतिथियों के भोजन का लाभ मालचंद, प्रीतम ललवानी ने लिया। दोपहर में महाचमत्कारिक जयमल जाप का अनुष्ठान किया गया। इस मौके पर बिरजादेवी ललवानी, सरोजदेवी पींचा, संतोषदेवी चौरडिय़ा, रेखा सुराणा आदि श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थीं। मंच का संचालन संजय पींचा ने किया।