शहीद का दर्जा...लम्बा इंतजार सूत्र बताते हैं कि इसके बाद शुरू हुई शहीद के दर्जे की कवायद। हेमेन्द्र के शहीद को लेकर जिला सैनिक कल्याण केन्द्र से पहला खत लिखा तो कुछ समय इसका जवाब ही नहीं मिला। तबीयत बिगडऩे को बैटल कैजुअल्टी मानी जाएगी या नहीं, इसी पर असमंजस बना रहा। फिर जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मुकेश कुमार शर्मा ने पत्र पर पत्र लिखकर इस बाबत जल्द से जल्द कार्यवाही की गुहार की। इस पर 29 अप्रेल को हेमेन्द्र को शहीद का दर्जा देने समेत अन्य आदेश यहां पहुंचे।
पत्नी नहीं बेटा ही करेगा नौकरी सूत्रों के अनुसार हेमेन्द्र की पत्नी सीता देवी नौकरी नहीं करेगी, उसका बेटा ही भविष्य में इसका दावेदार होगा। यानी तकरीबन बारह-तेरह साल बाद, यह मौका हासिल होगा। हेमेन्द्र के तीन पुत्र हैं, जिसमें देवेन्द्र (7), नरेश (5) और नवीन (2) साल का है। इसके अतिरिक्त शहीद आश्रित को 25 लाख, जमीन नहीं लेने पर 25 यानी कुल पचास लाख रुपए की सहायता व पत्नी को पेंशन मिलेगी। बच्चों को फ्री एजुकेशन के साथ परिवार को बस पास मिलेगा। हेमेन्द्र के दो भाई मूलाराम और सुरेन्द्र हैं।
शहीद परिवार होने का गर्व भी हेमेन्द्र के पिता बाबूलाल और मां उदी देवी, सूनी आंखों से ताकते रहते हैं। हेमेन्द्र की बात करो तो यादों में या तो खो जाते हैं या फिर रुला देते हैं। बचपन से सेना में जाने की जिद और देश के प्रति उसका प्रेम, अपने ही तरीके से जीने का अंदाज था उसका। सेना में जाकर देश के लिए बहुत कुछ करना चाहता था, आगे सब ऊपर वाले की मर्जी। शहीद के पिता होने का गर्व है तो उसे खोने का दु:ख भी। खुशी इस बात की है कि बेटा देश के साथ परिवार का नाम रोशन कर गया।
सूनी आंखों की तलाश वीरांगना सीता देवी तो जानती है कि बेटों के सिर से पिता का साया उठ गया है, लेकिन बच्चों को कौन क्या समझाए। पिछले साल सितंबर को यह हादसा हुआ तो कुछ महीनों तक तो देवेन्द्र के साथ नरेश को भी बहलाया-फुसलाया गया। इनकी आंखें तब भी हेमेन्द्र के आने की तलाश में लगी रहती हैं।
इनका कहना इसके लिए अथक प्रयास किए। बैटल कैजुअल्टी मानकर अब सभी शहीद परिवार को मिलने वाली सुविधा देने की प्रक्रिया चालू की गई है। -मुकेश कुमार शर्मा, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी, नागौर।