scriptये दवा की दुकानें हैं या परचून की… | These are drug shops or grocery stores .. | Patrika News

ये दवा की दुकानें हैं या परचून की…

locationनागौरPublished: Oct 07, 2018 12:03:20 pm

Submitted by:

Sharad Shukla

जिले में फार्मासिस्ट की संख्या महज डेढ़ हजार, लेकिन मेडिकल स्टोर चार हजार

Nagaur patrika

silence-on-fraud-waiting-officer-unaware-of

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ड्रग शाखा की कार्रवाई का आंकड़ा छह माह में तिहाई तक भी नहीं पहुंचा, शहर के साथ गावों की हालत भी खराब, शहर के एक नर्सिंग होम में बिना फार्मासिस्ट चार साल पूर्व एक वृद्धा की अवधिपार इंजेक्शन लगने से हो गई थी मौत, फिर भी नहीं चेता विभाग
शरद शुक्ला
नागौर. जिले में फार्मासिस्टों की संख्या बमुश्किल करीब डेढ़ हजार है, लेकिन दवाई की दुकानें करीब तीन से चार हजार…! यह आंकड़े नागौर जिले में सचांलित दवा की दुकानों के हैं। यही नहीं, इनमें से 25 से 30 प्रतिशत फार्मासिस्ट तो मार्केटिंग करने के साथ नौकरियां भी कर रहे हैं। इसके बाद भी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ड्रग शाखा की नजर में ‘आल इज वेल’ है। सूत्रों के अनुसार जिले में कई दुकानदारों के पास तो दवा बिक्री का लाइसेंस तक नहीं हैं, लेकिन सभी काम दुकानदार एवं विभाग की आपसी समझ से ये गौरखधंधा चल रहा है। यही वजह है कि विभागीय कार्रवाई के नाम पर पिछले छह माह के आंकड़ों के नाम पर औसत स्थिति दर्ज रही है।
जिले के नागौर, परबतसर, मकराना, जायल, डीडवाना, डेगाना, कुचामन, रियां, गोटन, खींवसर, मौलासर, नावां आदि क्षेत्रों में दवाई की दुकानों की पड़ताल करने पर यह चौकाने वाली स्थिति सामने आई। जिले में फार्मास्टिों की संख्या से दो गुनी दवाई की दुकानें धड़ल्ले से संचालित हो रही है। दुकानों पर दवाई देने वाले फार्मासिस्ट की जगह बिना डिप्लोमा या डिग्रीधारी कर्मचारी ही दवाई देने का काम कर रहे हैं। जिले के ब्लॉकों में दवाई देने वाले मेडिकल स्टोर की यह संख्या तीन से चार हजार तक है। इस संबंध में मेडिकल दुकानों पर दवाई देने वालों से बातचीत में पता चला कि कई जगहों पर तो फार्मासिस्ट ही नहीं है। दुकानदारों ने दुकानें खोल ली और अधिकारिक तौर पर संचालन किसी और के नाम दर्शा दिया। जानकारों का कहना है कि दवा देने वालों ने दूसरे फार्मासिस्टों के नाम दुकानें संचालित कर रखी है, जबकि संबंधित फार्मासिस्ट तो दुकान पर कभी आता ही नहीं है। यह स्थिति अकेले नागौर में नहीं, बल्कि जिले के चौदह ब्लॉकों में चल रही दुकानों की पड़ताल में सामने आई है। इसके बाद भी छह महीने में विभाग की कार्रवाई का आंकड़ा तिहाई तक भी नहीं पहुंचा । कार्रवाई का खौफ नहीं होने से दुकानों पर दवाई की बिक्री परचून की दुकानों की तरह होने लगी है।गौरतलब है कि करीब चार साल पहले नागौर शहर के एक निजी नर्सिंग होम में अवधि पार इंजेक्शन लगाने पर एक वृद्धा की मौत हो गई थी। इसके बाद भी चिकित्सा विभाग ने सबक नहीं लिया।
गांवों के हालात और ज्यादा खराब
जानकारों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों के साथ गांवों की दुकानों के पूरे आंकड़े भी चिकित्सा विभाग की ड्रग शाखा के पास नहीं हैं। मेडिकल स्टोर की न तो लंबे समय से जांच की गई और न ही विशेष अभियान चलाया। गांवों में कई जगह परचून की तरह दवाई की दुकाने खुली हुई है। ऐसे में अवधिपार दवा कई बार बिक्री कर दी जाती है। इससे लोगों जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
फिर क्या होगा जिंदगियों का…!
दवाओं की बिक्री चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के निर्धारित मापदंडों के अनुसार नहीं करने से गांव एवं शहरी क्षेत्र में हालात विकट होने लगे हैं। बिना डिग्री या डिप्लोमाधारी कर्मचारी द्वारा दवाई देने से अनहोनी पर जिम्मेदार कौन होगा।
इनका कहना है…
&दवाई की दुकानों की जांच यथासमय की जाती है। इस संबंध में अभियान भी चलता है। मापदंड का उल्लंघन होने पर विभाग कार्रवाई करता है।
डॉ. बलदेव चौधरी, ड्रग निरीक्षक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, नागौर

ट्रेंडिंग वीडियो