scriptThey don't come to meet me, they don't even call me, they have stopped | ना मिलने आते ना ही फोन कर बतियाते, खैर-खबर लेनी भी बंद कर दी अपनों ने | Patrika News

ना मिलने आते ना ही फोन कर बतियाते, खैर-खबर लेनी भी बंद कर दी अपनों ने

locationनागौरPublished: Sep 09, 2023 08:40:05 pm

Submitted by:

Sandeep Pandey


नागौर. अपनों का इंतजार लंबा हो चला है, मिलने भी नहीं आते तो बात करने से भी बच रहे हैं। कुछ को तो जमानत पर छुड़ाने की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाड़ लिया गया है। अपराध करने के बाद जेल की सलाखों के पीछे मायूस होती जा रही कई ङ्क्षजदगी अपनों के रूठने का दर्द झेल रही हैं। और किसी से ना कोई शिकवा ना शिकायत, अपनों से अलग होती ङ्क्षजदगी का दर्द कहीं-कहीं बाहर तक दिख ही जाता है।

बात करने से भी बच रहे हैं।
अपनों का इंतजार लंबा हो चला है, मिलने भी नहीं आते तो बात करने से भी बच रहे हैं। कुछ को तो जमानत पर छुड़ाने की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाड़ लिया गया है।
सूत्रों के अनुसार नागौर के साथ परबतसर (मेड़ता जेल समेत) और डीडवाना जेल के बंदियों के ही नहीं उनके खास मित्र/जानकारों के जरिए यह दर्द सामने आया। गुपचुप में हुए एक सर्वे में भी सामने आया कि करीब दस फीसदी बंदी तो किसी अपराध में जेल जाने पर पहली बार में ही अपनों से दूर हो चले हैं। करीब बीस फीसदी आदतन अपराधी/शातिर/बंदी के घर वाले उनकी खैर-खबर लेना बंद कर देते हैं। उनके रिश्तेदार/मित्र ही उनकी जमानत करवाते हैं। किसी ना किसी आरोप में जेल आने वाले करीब चालीस फीसदी बंदी ही ऐसे हैं जिनके परिजन फोन के जरिए अथवा मुलाकात कर उन्हें संभालने के प्रति ज्यादा जिम्मेदार पाए जाते हैं। नागौर ही नहीं डीडवाना-परबतसर जेल में ऐसे बंदियों की संख्या अच्छी-खासी है। कुछ का अपराध बोध भी यह कि आखिर क्यों मिलेंगे उनसे, कौनसा अच्छा काम किया था।
सूत्र बताते हैं कि बंदियों को समय-समय पर फोन पर बातचीत का मौका मिलता रहता है। इसके लिए कुछ नंबर संबंधित जेल में बंदी को लिखवाने होते हैं। तय दिन के मुताबिक फोन आए तो उस पर वीडियो कॉङ्क्षलग कराई जाती है। यह सिलसिला पिछले तीन-चार साल से नियमित चल रहा है। इसके बाद भी कई बंदी फोन नंबर तो लिखवा देते हैं पर वे इंतजार ही करते रहते हैं पर कभी कोई इन नंबर से बात ही नहीं करता। कई बार इनमें से कुछ बंदी जेलकर्मियों तक से पूछने लगते हैं कि कोई मिलने वाला क्यों नहीं आता, मेरे घर वालों का फोन भी नहीं आता, आखिर क्यों? उनके मन को राजी रखने के लिए कई बार जेलकर्मी कुछ भी कहकर बहला देते हैं। वे भी क्या करें, जानते हैं कि गैरों के बीच अपनों से बात करने का मन किसका नहीं करता।
सूत्रों का कहना है कि मेड़ता जेल में मरम्मत का कार्य चल रहा है तो यहां के बंदी परबतसर कारागार में शिफ्ट कर दिए गए हैं। परबतसर में करीब दो सौ बंदी से अधिक हैं, इसके अलावा नागौर और डीडवाना में भी करीब सवा दो सौ हैं। यहां से काफी बंदी अजमेर-बीकानेर शिफ्ट कर दिए गए। बताया जाता है कि इन बंदियों में से करीब एक चौथाई तो पोक्सो के आरोपी हैं। इसके बाद मादक पदार्थ तस्करी के आरोपी जेल में बंद हैं।
ना जमानत
लेने वाला ना भरने वाला
कई बंदी जमानत होने के बाद भी सलाखों के पीछे हैं। किसी की हाईकोर्ट तो किसी निचली अदालत से जमानत हो गई पर घर वाले जमानत भरने को तैयार नहीं हैं। जेल प्रशासन को कई बंदियों के परिजनों की मनुहार करनी पड़ रही है। चोरी के मामले में बंद हंसराज (20) की जमानत हुए कई दिन बीत गए पर जमानत भरने वाला कोई है ही नहीं। माता-पिता हैं नहीं, ननिहाल वाले कोई इसके लिए रुचि नहीं दिखा रहा। नागौर जेल में गूदडऱाम (25) भी चोरी के मामले में कई दिनों से बंद है, उसकी जमानत कराने वाला ही कोई नहीं आ रहा ना ही फोन पर कोई बात करता है।
इनका कहना
अधिकांश परिजन जेल के बंदी से बातचीत करने अथवा मिलने आने से थोड़ा परहेज करते हैं। आदतन अपराधी की जमानत करने से भी परहेज करने लगते हैं। हालांकि जेल प्रशासन की ओर से कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है और इनके परिजनों से भी समझाइश करते हैं।
राज महेंद्र, जेलर,
नागौर जेल।
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