750 रुपए पेंशन व पड़ोसियों पर निर्भर
विकलांग केलादेवी को सरकारी की ओर से हर महीने 750 रुपए विकलांगता पेंशन मिलती है। उसी के सहारे घर खर्च चल रहा है। कुछ माह से ग्रामीण भी मदद कर रहे हैं।
परिवार की दयनीय स्थिति को देख रिश्तेदारों ने भी बालिकाओं को पालने का निर्णय लिया है। केलादेवी ने बताया कि आठ वर्षीय पुत्री मोनिका को रघुनाथपुरा निवासी बुआ घिसीदेवी पाल रही है। इसके साथ ही सात वर्षीय पिंकी को ननिहाल में नानी भंवरी देवी पाल रही है। जबकि सबसे छोटी बेटी पांच साल की आचुकि , आंगनबाड़ी में पढ़ती है। लेकिन आर्थिक तंगी व पति के इलाज के कारण एक मां से पुत्रियांं दूर हो गई है।
45 डिग्री तापमान में बिना पंखे झूपे में जीवन यापन
सरकारी सुविधाओं से वंचित यह परिवार एक छप्परेनुमा कमरे में जीवन यापन कर रहा है। भीषण गर्मी में इनके पास एक पंखा तक नहीं हैं। ग्राम पंचायत या पंचायत समिति का कोई भी जनप्रतिनिधि अब तक परिवार की मदद को आगे नहीं आया है। निशुल्क चिकित्सा सुविधाओं के नाम पर वाह-वाही लूटने वाली सरकार के जिम्मेदार अधिकारी भी इन लाचारों की सुध लेने नहीं पहुंचे हैं। सरकारी सुविधाओं से बेखबर यह परिवार आज हर तरह से मोहताज है।
विकलांग केलादेवी को सरकारी की ओर से हर महीने 750 रुपए विकलांगता पेंशन मिलती है। उसी के सहारे घर खर्च चल रहा है। कुछ माह से ग्रामीण भी मदद कर रहे हैं।
परिवार की दयनीय स्थिति को देख रिश्तेदारों ने भी बालिकाओं को पालने का निर्णय लिया है। केलादेवी ने बताया कि आठ वर्षीय पुत्री मोनिका को रघुनाथपुरा निवासी बुआ घिसीदेवी पाल रही है। इसके साथ ही सात वर्षीय पिंकी को ननिहाल में नानी भंवरी देवी पाल रही है। जबकि सबसे छोटी बेटी पांच साल की आचुकि , आंगनबाड़ी में पढ़ती है। लेकिन आर्थिक तंगी व पति के इलाज के कारण एक मां से पुत्रियांं दूर हो गई है।
45 डिग्री तापमान में बिना पंखे झूपे में जीवन यापन
सरकारी सुविधाओं से वंचित यह परिवार एक छप्परेनुमा कमरे में जीवन यापन कर रहा है। भीषण गर्मी में इनके पास एक पंखा तक नहीं हैं। ग्राम पंचायत या पंचायत समिति का कोई भी जनप्रतिनिधि अब तक परिवार की मदद को आगे नहीं आया है। निशुल्क चिकित्सा सुविधाओं के नाम पर वाह-वाही लूटने वाली सरकार के जिम्मेदार अधिकारी भी इन लाचारों की सुध लेने नहीं पहुंचे हैं। सरकारी सुविधाओं से बेखबर यह परिवार आज हर तरह से मोहताज है।