अनाज के बदले लेते दीपक व रुई गुलाब देवी ने बताया कि आज तो दीपक व रुई बाजार जाकर रूपयों में खरीदते है। हमारे जमाने में दीपक व रूई बेचने वाले खुद गांव में घर-घर आकर अनाज के बदले घरों को रोशन करने के लिए दीपक-रुई देकर जाते थे। पहले विद्युत से जलाई जाने वाली रंग-बिरंगी लडिय़ां लोग जानते ही नहीं थे मिट्टी के दीयों से ही रोशनी करते थे। हमारे बचपन में गांवों में तो क्या नावां-सांभर जाने के लिए भी पक्की सड़क नहीं थी अधिकतर लोग बैलगाड़ी या ऊंटगाड़ी पर यात्रा करते थे। सुतली बंदी बोतल में मिट्टी का तेल लाकर घर में उजाला करने के लिए चिमनी जलाते थे। ज्यादातर कच्चे घर झूपे और छप्पर ही होते थे।
त्योहार पर मोहल्ले की महिलाएं समूह में खरीदारी के लिए परिवार सहित मंगल गीत गाते हुए बैलगाड़ी पर बैठकर जाती थी। उस समय का बैलगाड़ी में जाना मुझे आज भी याद है।