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VIDEO-श्रेष्ठता आंतरिक-बाहरी तौर पर पवित्र होती है

locationनागौरPublished: Oct 24, 2018 12:32:55 pm

Submitted by:

Sharad Shukla

श्रेष्ठ व्यक्ति आंतरिक एवं बाहरी तौर पर शुद्ध व पवित्र होता है। जबकि माया छल सिखाती है। इसका क्षरण करते हुए श्रेष्ठता तक पहुंचने के लिए होने वाले संघर्ष में श्रेष्ठता का रूप उभरकर सामने आता है। जैन समणी सुगमनिधि प्रवचन कर रही थी

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नागौर. श्रेष्ठ व्यक्ति आंतरिक एवं बाहरी तौर पर शुद्ध व पवित्र होता है। जबकि माया छल सिखाती है। इसका क्षरण करते हुए श्रेष्ठता तक पहुंचने के लिए होने वाले संघर्ष में श्रेष्ठता का रूप उभरकर सामने आता है। जैन समणी सुगमनिधि प्रवचन कर रही थी। वह जयमल जैन पौधशाला में अखिल भारतीय श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ की ओर से चल रहे चातुर्मास में श्रेष्ठता की महत्ता समझा रही थी। उन्होंने चार प्रकार के कषायों मे से माया के बारे में बताया। माया यानि कपटए छलपूर्ण जीवन व्यवहार। श्रेष्ठ व्यक्ति की पहचान भीतर और बाहर से एक समान होती है । माया श्रेष्ठ गति का नाश करती है। मायावी व्यक्ति धनवान बन सकते है पर संतोष नहीं मिल पाता है। धन है, लेकिन सम्मान नहीं। माया को सरलता से जीता जाता है। समणी सुधननिधि जी ने कहा कि भगवान किसी को दु:ख नही देते। सब खुद के ही क्रिया का फल है। वेदनीय कर्म को दर्शाते हुए कहा कि जो कर्म आत्मा को सुख- दु:ख का अनुभव कराता है उसी का नाम वेदनिय कर्म है । प्रवचन की प्रभावना के लाभार्थी ताराचंद, निर्मलचंद, नरपतचंद, सुशीलकुमार चौरडयि़ा परिवार व दर्शन प्रतिमा के लाभार्थी पुखराज, गौतमचंद, राजकुमार, अमितकुमार,अभिषेक बाघमार परिवार और ओली तप के लाभार्थी गौतमचंद, किशोरकुमार, ललितकुमार सुराणा परिवार था। प्रवचन के दौरान सही उत्तर देने वालों के चांदी के सिक्के प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसमें प्रकाशचंद बोहरा, निर्मलादेवी, अशोक ललवानी, सुशीला ललवानी एवं संजय पींचा आदि मौज्ूाद थे।

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