scriptभामाशाह जुटे तो चल पड़ी शिक्षा की ट्रेन | When Bhamashah gathered, the train of education started | Patrika News

भामाशाह जुटे तो चल पड़ी शिक्षा की ट्रेन

locationनागौरPublished: Oct 15, 2021 05:34:48 pm

Submitted by:

Ravindra Mishra

सोशियल प्राइड
रवीन्द्र मिश्रानागौर . समाज हमें बहुत कुछ देता है। सक्षम होने पर व्यक्ति का दायित्व बनता है कि वे भी समाज के लिए कुछ ऐसा करें कि प्ररेणा बन जाए। इसी भावना को लेकर निकले भामाशाहों ने आज शहर के ऐसे स्कूल की तस्वीर को बदल कर रख दिया, जिसमें कभी कीचड़ जमा रहता था और कचरे के ढेर लगे थे।

भामाशाह जुटे तो चल पड़ी शिक्षा की ट्रेन

नागौर. विद्यालय में कक्षाकक्षोंं को दिया गया ट्रेन के कोच का रूप

– नागौर शहर में आकर्षण का केन्द्र बने ट्रेन कोच वाले कक्षाकक्ष
– शिक्षक ने कड़ी मेहनत से लिख दी नई ईबारत

– संत बलरामदास शास्त्री राजकीय माध्यमिक विद्यालय संख्या-2 की बदली सूरत

आवारा पशुओं की शरण स्थली बना हुआ था। हम बात कर रहे हैं शहर की व्यास कॉलोनी स्थित संत बलराम दास शास्त्री उच्च प्राथमिक संख्या -2 की। जो आज शिक्षक की कड़ी मेहनत और भामाशाहों के सहयोग से कीचड़ से कमल बनकर निखरा है।
ट्रेन के कोच में पढ़ते हैं बच्चे

यह विद्यालय नागौर शहर का पहला ऐसा विद्यालय है, जहां बच्चे ट्रेन के कोच में बैठककर पढ़ाई का आनन्द लेते हैं। विद्यालय के पांच कक्षाकक्ष को ट्रेन कोच का रूप बच्चों ने खुद श्रमदान कर दिया है। आज ये कोच बच्चों के अभिभावकों व आगन्तुकों को भी आकर्षित करते हैं। साथ ही एक लहर कक्ष बनाया गया है, जिसमें पहली कक्षा तक के बच्चे विभिन्न भित्ति चित्रों व डिजिटल माध्यम से पढ़ाई करते हैं। दीवार पर आकर्षक रूप में क,ख,ग की बारखड़ी बनाई गई है तो फल की आकृति में अंग्रेजी के एल्फाबेट को स्वरूप दिया है। एलईडी पर नन्हे बच्चे परियों की कहानी व कार्टून फिल्म के माध्यम से ज्ञानार्जन कर रहे हैं।
सेल्फीजोन भी खास
विद्यालय की चार दीवारी भी आकर्षण से कम नहीं है। इस चार दीवारी पर शिक्षिका गायत्री व शिक्षक राजेश देवड़ा की देखरेख में बच्चों ने विभिन्न रंगों से कलात्मक भित्तिचित्र बनाकर आकर्षक रूप दिया है, जो आज विद्यार्थियों का ज्ञान बढ़ाने के साथ ही विद्यालय के सौन्र्दय में चार चांद लगा रहे हैं। यहां एक सेल्फीजोन भी बनाया गया है। तितली के आकार के इस सेल्फी जोन में बच्चे तो अपनी तस्वीर लेते ही हैं बड़े भी यहां तस्वीर खिंचवाने से खुद को नहीं रोक पाते। भित्तिचित्र बनाने में स्वेच्छा से सहयोग रहा भूमिका सिखवाल, भावना भाटी, रक्षिता, सगुन, अरूण डोगीवाल, अशोक, अरविन्द डोगीवाल, स्काउट गजराज कंवर, सोनू, धीरज का, जिन्होंने गौतम सुथार व वरिष्ठ अध्यापक प्रेम परिहार की देखरेख में अपनी परिकल्पनाओं को दीवार पर साकार रूप दिया। इन भित्ति चित्रों को देख जिला कलक्टर डॉ.जितेन्द्र कुमार सोनी भी इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने सभी बच्चों को प्रशस्ति पत्र व पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
शिक्षक की मेहनत रंग लाई

‘मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां जुटता गया।’ इस शेर को सार्थक कर रहे हैं प्रधानाध्यापक धर्मपाल डोगीवाल। दो साल पहले जब वे यहां स्थानान्तरित होकर आए। उस समय विद्यालय परिसर आवारा पशुओं की शरणस्थली व कचरागाह बना हुआ था। परिसर में बने उच्च जलाशय का पाइप लीकेज होने से हर समय तालाब बना रहता था। कीचड़ जमा रहने से दुर्गन्ध उठती थी। चारदीवारी छोटी होने से शाम को समाज कंटकों का जमावड़ा रहता था। डोगीवाल ने यह सब देख इस विद्यालय का स्वरूप निखारने का लक्ष्य बनाया और जुट गए अपने मिशन पर। आज सैकड़ों भामाशाहों के सहयोग ने विद्यालय की छटा निखार दी।
यह है विद्यालय का इतिहास

डोगीवाल बताते हैं कि 1963 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय संख्या-2 के नाम से 5वीं तक का यह स्कूल घोषीनाडा में संचालित था। 1984 में स्थानीय भामाशाह बैजला कुआं निवासी मोहनलाल-भंवरलाल टांक ने तत्कालीन कलक्टर से स्कूल के लिए ढाई बीघा जमीन व्यास कॉलोनी के पास संत बलरामदास कॉलोनी में आवंटित करवाई। उस पर 5 कमरे, 1 स्टोर, 1 जलमंदिर सहित 700 फीट चारदीवारी का निर्माण करवाया। उसके बाद 1986 में विद्यालय का नामकरण संत बलरामदास शस्त्री राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय संख्या-2 किया गया।
सरकारी की योजना में गुम हुआ विद्यालय
2013 में राज्य सरकार ने विद्यालय समन्वित योजना लागू की। इस योजना के तहत आस-पास के सात विद्यालय बंद होने से इन स्कूलों का सामान यहां लाकर डाल दिया गया। विद्यालय के तीन कमरे नाकार सामग्री से भर गए। नकाश गेट के पास संचालित राजकीय उच्च प्राथमिक संख्या-2 को यहां शिफ्ट करने से दोनों स्कूल साथ चलने लगी। संयोग से प्राइमरी स्कूल और उच्च प्राथमिक स्कूल का नाम एक होने से प्राइमरी स्कूल से संत बलरामदास नाम का स्कूल गुम हो गया। बाद में 2021 में भामाशाह परिवार के चांदमल टांक के आग्रह पर प्रधानाध्यापक ने मूल नाम की फाइल तैयार कर बीकानेर भेजी, जिसे सही मानते हुए निदेशक प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय ने 24 जून 2021 को पुन: विद्यालय का नाम संत बलरामदास शास्त्री कर दिया।
भामशाहों ने जुटाए संसाधन

विद्यालय के विकास में भामाशाह चांदमल टांक ने पांच लाख की लागत से चार दीवारी की ऊंचाई ढाई फीट और बढ़ाने के साथ ही मुख्य दरवाजा बनवाया, पीछे की 400 फीट दीवार एडवोकेट कालूराम सांखला ने करीब 4 लाख की लागत से बनवाई है। सेवानिवृत्त व्याख्याता एवं शिक्षाविद् शांतिलाल सोनी ने अपने माता- पिता की स्मृति में दस लाख की लागत के दो कमरे बनवाए। हाल ही में डॉ.हापूराम चौधरी ने बच्चों के लिए फर्नीचर भेंट किया है। सैकड़ों भामाशाहों से सहयोग से बिजली-पानी की फिङ्क्षटग, शौचालय मरम्मत और फर्नीचर आदि का कार्य चल रहा है।
पर्यावरण पर विशेष ध्यान
विद्यालय परिसर में 500 ट्रोली बालू रेत डलवाकर जमीन का लेवल सही करवाने के बाद वाटिका बनाई गई है, जिसमें करीब 500 पौधे लगाए गए हैं। इनमें छायादार, फल व फूलदार के साथ सजावटी पौधे 100 ब्लैक फाइकस व 10 पोस्टल पॉम के लगे हैं। विद्यालय में एक छोटी विज्ञान लैब भी स्थापित है। 140 नामांकन वाले इस विद्यालय में लेवल -01 की तीन पोस्ट रिक्त होने से अध्यापन कार्य प्रभावित हो रहा है।
इनका कहना

विद्यालय के विकास में भामाशाह स्वैच्छा से आगे आ रहे है। बच्चों के लिए सुविधाएं जुटाने पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। विभाग से यह अपेक्षा है कि रिक्त पदों पर अध्यापक लगाए ताकि शिक्षण कार्य बाधित न हो।
धर्मपाल डोगीवाल
प्रधानाध्यापक, संत बलरामदास शस्त्री राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय संख्या-2

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