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नागौर

कहां चली गई राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की बसें

नागौर. राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की बसें हड़ताल के चलते सडक़ों पर नहीं दौड़ी। इससे करीब दस लाख के राजस्व नुकसान के साथ ही यात्रियों को भी प्राइवेट वाहन चालकों के किराए की मनमर्जी का शिकार होना पड़ा

नागौरJul 26, 2018 / 12:21 pm

Sharad Shukla

Nagaur patrika

Where the Rajasthan State Road Transport Corporation Buses

नागौर. राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की बसें बुधवार को सडक़ों पर नहीं दौड़ी। सातवां वेतन आयोग एवं 12 प्रतिशत दो साल के बकाए डीए भुगतान आदि की मांग को लेकर रोडवेज के संयुक्त श्रमिक मोर्चा की हड़ताल से बुधवार को पूरे दिन बसों का संचालन ठप रहा। इससे अकेले नागौर आगार को ही लगभग नौ से 10 लाख का राजस्व प्रभावित हो गया। प्रतिदिन 10 से 12 लाख तक मिलने वाले राजस्व की स्थिति औसतन शून्य स्तर तक पहुंच गई। हड़ताल की वजह से यात्रियों को न केवल परेशानी उठानी पड़ी, बल्कि प्राइवेट वाहन चालकों ने जमकर फायदा उठाया।
केन्द्रीय बस स्टैंड पर बसों का संचालन पूरी तरह से ठप रहा। डिपो से संचालित होने वाली बसें सुबह रवाना नहीं हुई। केन्द्रीय बस स्टैंड पर आए यात्रियों को हड़ताल के कारण वापस लौटना पड़ा। इससे यात्री परेशान हुए। इस दौरान संयुक्त श्रमिक मोर्चा की ओर से प्रदर्शन जारी रहा। रोडवेज कर्मियों के एटक इकाई के अध्यक्ष हरीराम जाजड़ा ने कहा कि सरकार की हठधर्मिता के कारण कर्मचारियों को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा। हालांकि इससे यात्रियों को मुश्किल तो हुई है, लेकिन विवशता के कारण चक्काजाम का निर्णय लेना पड़ा।
नौ से 10 लाख राजस्व घाटा
डिपो से करीब 92 बसों का संचालन होता है। हड़ताल के दौरान पहले से यात्रियों को लेकर रवाना हुई बसों का ही चालन हुआ, जबकि शेष बसें जहां-तहां रोक दी गई। यूनियन के पदाधिकारियों ने दावा किया है कि नागौर आगार से एक भी बस का चालन बुधवार को नहीं हुआ। प्रतिदिन करीब दस से पंद्रह हजार तक यात्रियों का भार रहता है। इससे निगम को 10 से 12 लाख का राजस्व मिलता था, लेकिन बुधवार को यह स्थिति शून्य रही। हड़ताल की वजह से स्थानीय डिपो प्रशासन को पूरी 86 शिड्यूल को स्थगित करने का निर्णय लेना पड़ा।
प्राइवेट संचालकों ने उठाया फायदा
रोडवेज बसों का संचालन नहीं होने का फायदा प्राइवेट संचालकों ने जमकर उठाया। यात्रियों से मनमर्जी का किराया लिए जाने के साथ ही बसों की छतों पर भी सवारियां बैठाकर यात्रा कराई। विवशता में जान-जोखिम में डालकर गंतव्यों तक पहुंचने की मजबूरी में लोगों को इस स्थिति में सफर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

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