जिला परिषद – पुरुष – महिला – कुल मतदान
बांसवाड़ा – 38.82 – 37.14 – 37.98
बाड़मेर – 69.92 -71.33 – 70.58
भीलवाड़ा – 65.72 – 62.14 – 63.95
बीकानेर – 38.73 – 33.92 – 36.48
बूंदी – 62.34 – 53.18 – 57.88
डूंगरपुर – 63.32 – 63.53 – 63.43
हनुमानगढ़ – 52.09 – 50.00 – 51.10
जालोर – 48.50 – 49.45 – 48.95
नागौर – 63.74 – 60.34 – 62.10
पाली – 46.90 -47.93 – 47.39
प्रतापगढ़ – 66.36 – 63.53 – 64.94
सीकर – 58.95 – 65.84 – 62.23
टोंक – 59.57 – 54.93 – 57.34
(स्रोत – राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट)
राजनीति में महिलाओं को आगे लाने के लिए करीब 25 वर्ष पहले 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसके बाद वर्ष 2015 के चुनाव में महिला आरक्षण को 50 प्रतिशत किया गया। अकेले पंचायतीराज में ही महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण है, इसके बावजूद बहुत कम जगह ‘पंचायती’ महिलाएं करती हैं, उनके स्थान पर पुरुष ही काम करते हैं। पिछले दिनों कुचामन पंचायत समिति में सरपंच के पति द्वारा ग्राम पंचायत भवन में सरकारी कर्मचारी से अभद्र व्यवहार का मामला सामने आने के बाद सरकार ने एक बार फिर इस सम्बन्ध में आदेश जारी किया, लेकिन धरातल पर इसका असर नहीं देखा जा रहा है।
अधिकारियों की मानें तो इस बार मतदान में महिलाओं का प्रतिशत कम होने के पीछे एक वजह शादी समारोह भी हैं। सावे अधिक होने के चलते महिलाएं उनमें व्यस्त दिखीं और बूथ तक नहीं पहुंच पाई।
पंचायती राज में वर्ष 1995 में पहली बार महिला आरक्षण लागू हुआ, जिसकी बदौलत मैं जिला प्रमुख बनी और मेरी जैसी कई महिलाएं प्रधान व सरपंच बनी। इसके बाद हमने महिलाओं में काफी जागरुकता लाने का प्रयास किया, जिसके चलते 10-15 वर्षों तक महिला मतदाताओं ने भी काफी उत्साह दिखाया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से स्थितियां बदल रही हैं। चुनाव भले ही पुरुष लड़ रहे हैं, लेकिन ‘पंचायती’ पुरुष कर रहे हैं, हाल के चुनावों को भी आप देखें तो वाट्सएप व फेसबुक पर महिला प्रत्याशी होने के बावजूद प्रचार पुरुषों के नाम से किया जा रहा है। प्रचार भी पुरुष कर रहे हैं, महिलाएं घर में बैठी हैं, इससे महिलाओं में उदासीनता का माहौल बन रहा है।
– बिन्दू चौधरी, पूर्व जिला प्रमुख, नागौर