नागौर

विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे को घेरने की तैयारी में भाजपा-कांग्रेस

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नागौरSep 04, 2018 / 01:00 pm

Dharmendra gaur

पॉलिटिकल पार्टी

नागौर में बूथ लेवल पर दोनों ही पार्टियां लगा रही जोर, विधायकों को झेलना पड़ रहा लोगों का विरोध , वर्चस्व कायम रखने की होड़ बरकरार
नागौर. प्रदेश में आसन्न विधानसभा चुनाव में पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए भाजपा व कांंग्रेस दोनों ही पार्टियां बूथ स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गई है। भाजपा जहां पार्टियां कार्यकर्ताओं को एक बूथ एक यूथ का मूलमंत्र देकर सत्ता में वापसी करना चाहती है वहीं कांग्रेस भी मेरा बूथ मेरा गौैरव के जरिए भाजपा को सत्ता से बाहर करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। हालांकि भाजपा के सामने मौजूदा सीटों को बचाने की चिंता है वहीं कांगे्रस पिछले चुनाव में मामूली मतों से हार वाली सीटों पर भी फोकस कर रही है। जिले में ऐसे कई मतदान केन्द्र हैं जहां भाजपा व कांग्रेस को मिले मतों का अंतर काफी अधिक रहा।


हाथ से निकल सकती है सीट
नागौर जिले की दस विधानसभा सीटों में से नौ पर भाजपा व एक पर निर्दलीय विधायक हैं। विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस को मकराना के बोरावड़, चावण्डिया, भरनाई, संबलपुर, मेड़ता के धोलेराव कलां आदि बूथ पर एक हजार से ज्यादा मत मिले। भाजपा को नागौर के बासनी बेलिमा, डीडवाना के केराप, मकराना के गच्छीपुरा व चाण्डी में भी अच्छे मत मिले। इसी प्रकार खींवसर से निर्दलीय विधायक को बूथ नम्बर 90 पर सर्वाधिक मत मिले। कांगे्रस खुद को अचछी स्थिति में मान रही है वहीं भाजपा के लिए पिछले चुनाव में मिले वोटों को बरकरार रखने की चुनौती है। लोगों का कहना है कि सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।


विरोध का सामना कर रहे विधायक
भाजपा को नागौर के बासनी बेलिमा बूथ में सर्वाधिक वोट मिले और मौजूदा विधायक भी इसी क्षेत्र से आते हैं तथा उनका क्षेत्र से जुड़ाव भी है। इसके अलावा डीडवाना के केराप व मकराना के गच्छीपुरा व चाण्डी बूथ पर भी अच्छे मत मिले। मकराना क्षेत्र के पांच मतदान केन्द्रों के अलावा नावां व मेड़ता क्षेत्र की एक-एक बूथ पर भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। किसानों व बेरोजगारों की उपेक्षा के चलते ग्रामीण क्षेत्र के मतदान केन्द्रों पर भाजपा को पसीना बहाना पड़ सकता है वहीं कांग्रेस को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में काम नहीं होने के चलते मौजूदा विधायकों को कई जगह ग्रामीणों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है।

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