नागौर. उखड़ी टाइलें, जगह-जगह से गिरता प्लास्टर, उखड़-खाबड़ फर्श, गंदगी से अटे कौने और दीवारें, छत से टपकता पानी एमसीएच विंग की हकीकत बन चुकी है। कहने को यह जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल का हिस्सा है, लेकिन यहां घुसते ही बदबू से सांस लेना दूभर हो जाता है। एक तो घटिया निर्माण के चलते अस्पताल भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है और ऊपर से सफाई ठेकेदार भी नियमित रूप से सफाई नहीं करवा रहा, जिससे हालात बद से बदतर हो रहे हैं। एमसीएच भवन के हालात देखकर लगता नहीं है कि यह अस्पताल है, लेकिन हकीकत यही है कि यह अस्पताल ही है। जिला कलक्टर पीयूष समारिया ने शनिवार को निरीक्षण के दौरान मिली गंदगी व अव्यवस्था को लेकर पीएमओ तथा ठेकेदार को सफाई के निर्देश दिए, लेकिन रविवार को स्थिति में सुधार नहीं आया। पत्रिका ने कैमरे की नजर डाली तो हालात जस के तस मिले। ठेकेदार ने कलक्टर के निर्देशों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया।
नागौर. उखड़ी टाइलें, जगह-जगह से गिरता प्लास्टर, उखड़-खाबड़ फर्श, गंदगी से अटे कौने और दीवारें, छत से टपकता पानी एमसीएच विंग की हकीकत बन चुकी है। कहने को यह जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल का हिस्सा है, लेकिन यहां घुसते ही बदबू से सांस लेना दूभर हो जाता है। एक तो घटिया निर्माण के चलते अस्पताल भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है और ऊपर से सफाई ठेकेदार भी नियमित रूप से सफाई नहीं करवा रहा, जिससे हालात बद से बदतर हो रहे हैं। एमसीएच भवन के हालात देखकर लगता नहीं है कि यह अस्पताल है, लेकिन हकीकत यही है कि यह अस्पताल ही है। जिला कलक्टर पीयूष समारिया ने शनिवार को निरीक्षण के दौरान मिली गंदगी व अव्यवस्था को लेकर पीएमओ तथा ठेकेदार को सफाई के निर्देश दिए, लेकिन रविवार को स्थिति में सुधार नहीं आया। पत्रिका ने कैमरे की नजर डाली तो हालात जस के तस मिले। ठेकेदार ने कलक्टर के निर्देशों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया।