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इस नदी को रोज जान जोखिम में डालकर पार करते हैं किसान

locationनागदाPublished: Oct 30, 2018 12:00:59 am

Submitted by:

Lalit Saxena

ग्राम खंडवासुरा एवं सारोला के 500 किसानों की 3 हजार बीघा जमीन है नदी के उस पार

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बडनग़र. तहसील मुख्यालय से करीब 14 किमी दूर ग्राम खंडवासुरा एवं सारोला के हजारों ग्रामीण पिछले करीब 10 वर्षों से चामला नदी पर पुलिया नहीं होने के कारण अपने गंाव से खेत पर आने-जाने के लिए जान को जोखिम में डालकर जुगाड़ की नाव का सहारा लेेने को मजबूर है। ग्रामीणों ने पत्रिका को बताया कि हर बार चुनाव के समय चामला नदी पर पुल बनाने का आश्वासन दिया जाता है, लेकिन चुनाव के बाद कोई हमारी सुध नहीं लेता।
खंडवासुरा एवं सारोला के किसानों ने बताया कि बडनग़र में पेयजल की आपूर्ति के लिए शासन ने करीब 10 वर्ष पूर्व चामला नदी पर लिखोदा डैम बनाया था। इस बांध के बन जाने के बाद से हमारे गांवों के करीब 500 किसानों की करीब 2500-3000 बीघा जमीन नदी के उस पार चली गई। हमें फसल बोने, लाने, कटाई कराने, जानवर को लाने-ले जाने के लिए बडनग़र होकर करीब 25 किमी का चक्कर लगाकर जाना होता है। इसके बजाय हम चामला नदी में चल रही जुगाड़ की नाव से खेत पर जाए तो चंद मिनटों व बिना किसी खर्च के पहुंच जाते है।
क्या है जुगाड़ की नाव
चामला नदी पार करने के लिए जुगाड़ की नाव ग्राम खंडवासुरा एवं सारोला के ग्रामीणों ने स्वयं ही तैयार की है। ग्रामीणों ने चार बड़े ड्रमों पर लोहे का एक पंलग रख, उसे नट बोल्ड कस कर वेल्डिंग कर दिया है। नदी के दोनो किनारों पर एक रस्सी बांध दी गई है। ग्रामीण इस नाव पर खडे होकर जैसे-जैसे रस्सी को खींचते जातेे है नाव नदी में तैरती हुई उस पार ले जाती है और कुछ ही मिनटों में व्यक्ति उस पार खेत पर पहुंच जाता है। प्रतिदिन इस नाव से सैकड़ों महिलाएं, पुरुष, बच्चे, बकरी, गायें अपनी जान जोखिम में रख आना-जाना करते है। ग्रामीणों की माने तो सुबह और शाम को नदी पार करने के लिए इतनी भीड़ रहती है कि इंतजार करना पड़ता है। बताया जाता है कि जुगाड़ की नाव पलटने से लीलाबाई निवासी ग्राम सारोला की इस हादसे में डूबने से मौत हो गई थी।
ग्रामीणों का कहना : हर बाद दावा, सुध लेने वाला कोई नहीं
कृषक फूलसिंह प्रजापत निवासी खंडवासुरा ने बताया कि में एक छोटा-सा किसान हूं। मेरे पास मात्र आठ बीघा जमीन है, जिससे में अपना जीवन यापन करता हूं। सुबह-शाम प्रतिदिन अनेक बार खेत पर आना-जाना होता है। सड़क मार्ग से जाना बहुत ही मंहगा है और समय भी अत्यधिक लगता है।
कृषक नेपालसिंह चावड़ा निवासी खंडवासुरा ने बताया कि मेरे पास नदी के पार ग्राम लोहारिया मार्ग पर 34 बीघा जमीन है। पिछले 10 वर्षों से खेत जाने-आने के लिए जुगाड़ की नाव का ही प्रयोग कर रहे है। नेता लोग हमेशा चुनाव के समय में नदी पर पुलिया बनाने का दावा करते है लेकिन उसके बाद कोई सुध नहीं लेता।
कृषक लक्ष्मणसिंह चावड़ा ने बताया कि मेरी जमीन ग्राम लोहारिया मार्ग पर है। जुगाड़ की नाव चंद मिनटों मेंं खंडवासुरा से उस पार पहुंच जाते है लेकिन सड़क मार्ग से बडनग़र शहर को जाना होता है। ग्रामीणों व किसानों की समस्या को देखते हुए पुलिया निर्माण जल्द होना चाहिए।
ग्रामीण जितेंद्र चौहान ने बताया कि रिश्तेदार ग्राम लोहारिया में रहते है। पारिवारिक कार्य से उनके घर जा रहा हूं। इस कारण जुगाड़ की नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। उस मार्ग पर किसी प्रकार की बसें या अन्य वाहन नहीं चलते है इसलिए जुगाड़ की नाव से जाने को मजबूर है।
पिछले दस वर्षों से ग्राम खंडवासुरा एवं सारोला के हजारों ग्रामीण इस समस्या से परेशान है। दो वर्ष पूर्व ग्राम सारोला में जुगाड़ की नाव पलट भी गई थी, जिसमें एक महिला की मौत हो चुकी है। गत वर्ष चामला नदी पर पुलिया बनाने को लेकर सर्वे हुआ था और इस्टीमेट भी तैयार हो गया था लेकिन जनप्रतिनिधियों का कहना है कि फाइल भोपाल में रखी है।
अर्जुनसिंह पंवार, सरपंच, खंडवासुरा

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