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video : नागदा की गोपाल गोशाला में धधकी आग, 50 मवेशी बंधे थे…

locationनागदाPublished: Jan 15, 2018 02:35:28 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

सोमवार सुबह नागदा की गोपाल गोशाला में अचानक धुआं और लपटें दिखीं तो लोग दौड़ पड़े। देखते-ही-देखते आग ने विकराल रूप ले लिया।

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नागदा. सोमवार सुबह नागदा की गोपाल गोशाला में अचानक धुआं और लपटें दिखीं तो लोग दौड़ पड़े। देखते-ही-देखते आग ने विकराल रूप ले लिया। इस गोशाला में लगभग 50 मवेशी बंधे हुए थे, जिन्हें रस्सी काटकर बाहर निकाला गया। लेकिन आग से करीब 15 हजार रुपए का चारा जलकर राख हो गया।


पाल्या रोड स्थित गोपाल गोशाला में सोमवार सुबह अचानक आग लग गई, जिससे गोशाला में बंधे हुए मवेशियों की जान पर बन आई। हालांकि समय रहते उन्हें रस्सी काटकर बाहर निकाल लिया गया, लेकिन यहां रखा लगभग 15 हजार का चारा जलकर खाक हो गया। बताया जा रहा है कि आग बीड़ी से लगी है।

गाय की अंतिम यात्रा बैंडबाजे के साथ निकाली
शाजापुर. शहर के किला रोड निवासी अनिल देवतवाल की गाय की रविवार को मौत हो गई। अनिल ने सहयोगियों की मदद से बैंड-बाजे के साथ पिकअप वाहन में रखकर गाय की शवयात्रा निकालकर अंतिम संस्कार किया। इस दौरान लोगों ने गाय के शव पर वस्त्र भी चढ़ाए।

चार माह में तीन हजार से ज्यादा गायें कहां गईं…गायब या मर गईं
सुसनेर. सालरिया में बने देश के पहले गो अभयारण्य में साढ़े तीन माह में ३१२७ गायें कम हुई हैं। ये मर गईं या फिर गायब हो गईं। इसे लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि जिम्मेदार गायों की संख्या कम होने के पीछे राजस्थान से आई गायों को वापस लौटाने की बात कह रहे हैं। यही नहीं, अभयारण्य में आए सुखले की गुणवत्ता खराब है इसे हटाने के लिए एक महीने पहले ही पत्र लिखा गया था लेकिन जिम्मेदारों ने कार्रवाई नहीं की।
गो अभयारण्य में पिछले दिनों ३०० गायों की मौत के पत्रिका में खुलासे के बाद अफसरों में हड़कंप मचा हुआ है। अभयारण्य में गायों को लेकर नए तथ्य सामने आए हैं। अभयारण्य में २२ सितंबर २०१७ से गायें रखना शुरू की गई थीं। सितंबर में ७५२० गायें थीं। अक्टूबर में ४१५८ तथा नवंबर में यह संख्या ४२७२ थी। १८ दिसंबर में इनकी संख्या ४३९३ पहुंच गई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इतनी बड़ी संख्या में गायें कैसे कम हो गईं। कम हुई गायों के बारे में जिम्मेदार स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। वहीं अभयारण्य के उपसंचालक की ओर से 9 नवंबर 2017 को पत्र क्रमांक 525 में सुखले की गुणवत्ता खराब बताई थी। इसमें कहा गया था कि ठेकेदार संस्कार एजेंसी द्वारा प्रदाय किया गया सोयाबीन का सुखला गुणवत्ताविहीन होकर गायों के स्वास्थ्य के लिए खराब है। बाजवूद सुखले को हटाने की कार्रवाई नहीं की गई। यही वजह कि गायों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया।
गड्ढों में गाड़ रहे १० से १५ गायें
अभयारण्य में गायों के मरने के सिलसिले के बाद रविवार पत्रिका की टीम अभयारण्य पहुंची। यहां पर कालेश्वर गोशाला के पीछे वाली भूमि पर जेसीबी से लंबा गड्ढा खोद रखा था। इसी गड्ढे में मृत गायों को गाड़ा जा रहा था। एक गड्ढे में १० से १५ गायों को गाड़ा जा रहा था। यही नहीं, यहां कालेश्वर गोशाल के समीप दो गोदामों में सड़ा हुआ सुखला भरा हुआ है। ग्रामीण ईश्वरसिंह, नारायण सिंह, दिनेश शर्मा , कमल, लालसिंह ने गोदाम पहुंचकर बताया जब से गो अभयारण्य में गायें आई हैं तभी से खराब सुखला खिलाया जा रहा है। ग्रामीणों ने भी आशंका जताई है कि खराब सूखले खाने से गायों की मौत हुई। खराब सुखले के चलते वन विभाग से वन परिक्षेत्र में उगाए गया चारा को गायों के लिए मंगवाया।

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