नागदाPublished: Nov 07, 2018 12:21:46 am
Lalit Saxena
चारा-पानी से लेकर खेती बाड़ी की व्यवस्था गांव के गुर्जर समाज के लोग ही संभालते है
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नागदा. देशभर में धनतेरस से ही दीपावली पर्व को लेकर उत्साह और उमंग का माहौल है, लेकिन नागदा- खाचरौद विधानसभा क्षेत्र के कई ऐसे गुर्जर बाहुल्य गांव है, जहां आज भी वर्षो पुरानी परंपराओं और रीतियों के चलते धनतेरस से लेकर अमावस्या की दोपहर यानी दीप पर्व के ढाई दिनों तक ब्राह्मण जाति के लोगों का घरों से निकलना या फिर गांव में आना वर्जित माना गया है। ऐसा ही एक गांव है सिमरौल, जहां निवास करने वाले करीब आधा दर्जन ब्राह्मण परिवारों के लिए दीपावली पर्व के यह ढाई दिन मुश्किल भरे होते है। गुर्जर समाज की पुरातन परंपरा का मान रखने के लिए इस गांव के ब्राह्मण या तो खुद को धनतेरस से लेकर दीपावली के आधे दिन तक घरों में कैद कर लेते है या फिर धनतेरस के पूर्व ही गांव छोड़कर चले जाते है।
तहसील तथा क्षेत्र में ऐसे भी कई गांव है जहां गुर्जर समाज के घरों की संख्या कम है, वहां हालात इसके उलट हो जाते है यानि गुर्जर समाज के लोग ढाई दिनों तक घरों में कैद होकर ब्राह्मण जाति के लोगों को मुंह नहीं देखने की परंपरा का निर्वहन करते है। शहर से करीब 8 किमी दूर स्थित 600 की आबादी वाले गुर्जर बाहुल्य गांव सिमरोल में ब्राह्मण परिवार खुद को घरों में कैद कर लेते है तो कुछ त्योहार बनाने किसी करीबी रिश्तेदार या परिचित के यहां चले जाते है। कुछ परिवार ऐसे भी है जिनके घरों की महिलाएं ढाई दिनों तक खुद को घरों मे कैद रहती है, पुरुष अलसुबह अंधेरे में गांव छोड़ देते है और आधी रात को जब पूरा गांव गहरी नींद में सो जाता है वापस घर लौटते है। इन ढाई दिनों के दौरान ब्राह्मण समाज के मवेशियों के रखरखाव, चारा-पानी से लेकर खेती बाड़ी की व्यवस्था गांव के गुर्जर समाज के लोग ही संभालते है।
शहर में दूध की ज्यादातर आपूर्ति गांव से ही होती हैं लेकिन परंपरा को मानने वाले कई गुर्जर ग्रामीण दीप पर्व के दौरान शहर नहीं आते है।
यह है मान्यता
इस परंपरा के पीछे की कहानी यह है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण की हत्या के लिए ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों ने दुश्मनों से हाथ मिला लिया था। इसके बाद से ही गुर्जर समाज के लोग धनतेरस से लेकर दीपावली के आधे दिन तक ब्राह्मणों का मुंह नहीं देखने की परंपरा का निर्वहन करते आए है।
इस परंपरा से दोनों समाजजन सहमत
गुर्जर भाईयों का वर्ष भर हमे सहयोग मिलता हैं। वह हमेशा हमारे सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं। रही उनकी धार्मिक परंपरा की बात तो हम लोग भी उनकी इस बात का विशेष ख्याल रखतें है कि उनकी परंपरा में कोई खलल या भंग न हो इसलिए हम स्वैच्छा से ही दीवाली के ढाई दिनों तक खुद को घरों में कैद कर लेते है या फिर गांव छोड़कर अपने रिश्तेदारों के यहां चले जाते है।
सुनील शर्मा, गांव सिमरौल
परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। हम भी ब्राह्मण समाज के लोगों का पूरा ध्यान रखते है कि उन्हें कोई तकलीफ नहीं हो इसलिए जहां तक संभव हो हम उनके मोहल्ले या घर की तरफ इन ढाई दिनों में नहीं जाते है और इसके बाद भी किसी कारण वश दोनों समाज के लोगों का आमना-सामना हो जाता है दोनों ही बिना किसी को देखे साइड से निकल जाते है, जिससे परंपरा का निर्वाह भी हो जाता हैं और ब्राह्मण भाईयों को परेशानी भी नहीं होती।
चेनसिंह गुर्जर, सरपंच प्रतिनिधि, ग्राम पंचायत सिमरौल