पत्रिका प्रतिनिधि ने शुक्रवार को जब मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत करमरी के आश्रित गावों में झोपडी में रहने वाले महिलाओं एवं पुरूष से चर्चा की तो आदिवासी ग्रामीण अपनी समस्या बताते थक गये। इस पंचायत में रहते-रहते आदिवासी ग्रामीणों को करीबन 50 साल से अधिक समय हो गया है। लेकिन ग्रामीणों को मूलभुत सुविधांए दशकों बाद भी नसीब नहीं हो पाई है। प्रदेश सरकार दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत प्रत्येक गांव, मजंरो-टोलों, पारा, गली-मोहल्ले को बिजली से रोशन करने का दावा कर रही है। लेकिन प्रदेश सरकार के दावों की जमीनी हकिकत कुछ और बंया कर रही है। सुविधाओं के लिए तरस रहे इस पंचायत को 2016 में दिनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत बिंजली से रोशन तो किया गया। लेकिन बिजली के सुचारू संचालन के लिए विभाग कोई उचित पहल करते नजर नहीं आ रहा है। इस गांव में आए दिन दिन बिजली व्यवस्था बाधित हो जाती है। इसके बाद बहाल होने के लिए महिनों का वक्त लग जाता है। इस समस्या को लेकर ग्रामीणों ने कई बार विद्युत विभाग के अधिकारियों को गुहार लगाई। लेकिन अधिकारियों के कानों में आज तक जुं तक नहीं रेंग पाई है। इससे पंचायत के ग्रामीण रोशनी खुद के लिए अभिशाप मानने लगे है।
मजबूरी में झाड़-फूंक पर विश्वास
गांव में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में ग्रामीण झाड़-फूक, जादू टोना एंव अंध विश्वास पर ज्यादा भरोसा करते है। वहीं करमरी पंचायत के गांवों में बिंजली एंव मोबाईल सेवा नहीं होने से गांव वालों को संजीवनी 108 एंव महातारी एक्सप्रेस का भी लाभ पाने के लिए कोसों दूर पैदल चलकर आना पडता है। इन पंचायत में निवासरत ग्रामीण मोबाइल कनेक्टिविटी में आने के बाद इस सेवा का लाभ ले पाते है।
आपातकालीन समय में कांवड़ का सहारा
करमरी पंचायत के आश्रित गांव से मुख्यालय पहुंचने के लिए आदिवासी ग्रामीणों को सडक के अभाव में पगडंडी वाले रास्तों से सफर तय करना पड़ता है। सडक के अभाव में गांव पहुचने के आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीणों को मिलों का सफर पैदल तय कर सुविधा पाने के लिए जदोजहद करनी पडती है। वहीं गांव में आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण आपातकालीन समय में मरीज को कावड़ में कई मिलों तक बोहकर मुख्य मार्ग तक लाने के बाद मुख्यालय पहुचना पडता है।
बारिश में करमरी बन जाता है टापू
मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित करमरी पंचायत का संपर्क मुख्यालय से बारिश के दिनों में कट जाता है। मुख्यालय से करमरी को जोडने वाली दोनों सडके कच्ची होने के साथ ही इन सडको के बीच से एक नाला बहता है। जिसमें बारिश के दिनों में ज्यादा पानी होने के कारण करमरी पंचायत के पूरे गांव टापू में तब्दील हो जाते है। इससे इन गांव में निवासरत आदिवासियों को बारिश के पहले ही अपने रोजमर्रा के लिए लगने वाले सामानों की खरीदारी करनी पडती है।
प्रशासन की पहुंच से दूर करमरी
माओवादियों से प्रभावित करमरी ग्राम पंचायत के आश्रित गांवों में आजादी के दशकों बाद भी मूलभुत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। करमरी पंचायत के ग्रामीणों ने बिजली, सडक, शिक्षा एंव पानी की समस्याओं के लिए कई बार अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई। लेकिन करमरी पंचायत के ग्रामीणों की समस्या जस के तस बनीं हुई है। जिला गठन हुए करीब 11 साल का समय बीत गया है। लेकिन मुख्यालय के नजदीक होने के बावूजद जिला गठन का लाभ करमरी के ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है।