scriptपिता चाहते थे पढ़ाई करे, लेकिन गौरव की जिद थी क्रिकेट खेलूंगा | Father wanted to study, but Gaurav's insistence was to play cricket | Patrika News

पिता चाहते थे पढ़ाई करे, लेकिन गौरव की जिद थी क्रिकेट खेलूंगा

locationनर्मदापुरमPublished: Jun 27, 2022 12:43:54 pm

Submitted by:

rajendra parihar

रणजी ट्रॉफी के फाइनल में बढ़ा नर्मदापुरम का ‘गौरव’, बिसौनीकलां गांव में खुशी का माहौल, बधाई देने वालों का लगा तांता

पिता चाहते थे पढ़ाई करे, लेकिन गौरव की जिद थी क्रिकेट खेलूंगा

पिता चाहते थे पढ़ाई करे, लेकिन गौरव की जिद थी क्रिकेट खेलूंगा

नर्मदापुरम. सिवनी मालवा के बिसौनीकलां गांव के गौरव यादव ने मध्यप्रदेश को रणजी ट्रॉफी चैंपियन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मध्यप्रदेश की तरफ से खेलने वाले यादव मुंबई की पहली पारी में चार और दूसरी पारी में 2 विकेट लिए। मध्यप्रदेश की जीत और गौरव के प्रदर्शन से गांव में खुशी का माहौल है। गौरव के पिता नरेंद्र यादव ने कहा कि बेटा प्रदेश के लिए ट्रॉफी ला रहा है इससे बड़ी बात क्या होगी।
नर्मदापुरम डिवीजन से खेलते हैं यश : रणजी फाइनल की पहली पारी में शतक लगाने वाले यश दुबे भी नर्मदापुरम डिवीजन से ही खेलते हैं। वे 2018 से रणजी ट्रॉफी खेल रहे हैं। दरअसल भोपाल से चयन नहीं होने पर यश ने नर्मदापुरम संभाग ने खेलना शुरू किया था। इसके बाद नर्मदापुरम से ही उनका प्रदेश की टीम में चयन हुआ था। यश इस सीजन में सबसे ज्यादा रन बनाने वालों में देश में तीसरे नंबर पर हैं।
खिलाड़ियों ने ग्राउंड पर मनाया जीत का जश्न, आतिशबाजी भी की

टीम की जीत पर रविवार शाम गुप्ता गाउंड पर जश्न मनाया गया। इस दौरान एनडीसीए के सदस्यों ने आतिशबाजी कर जीत का जश्न मनाया। इस दौरान एसोसिएशन अध्यक्ष कपिल फौजदार, चेयरमैन रोहित फौजदार, सचिव प्रदीप सिंह तोमर, एनडीसीए कोच नंदकिशोर यादव, मनीष यादव, वर्षा पटेल सहित अन्य सदस्य व खिलाड़ी मौजूद रहे।
मम्मी से कहता था- पापा को बोलकर क्लब ज्वाइन करवा दीजिए

ऐसा रहा गौरव का क्रिकेट कॅरियर

गौरव ने मई 2012 में गुजरात के खिलाफ क्रिकेट में डेब्यू किया था, इसके बाद अब तक फर्स्ट क्लास के 20 मैचों में 67 विकेट और लिस्ट ए के 16 मैच में 34 विकेट लिए हैं।
मां सुधा ने बताया कि गौरव को क्रिकेट का जुनून इस कदर था कि उसका मन कभी पढ़ाई में नहीं लगता था। पेशे से किसान गौरव के पिता नरेंद्र यादव चाहते थे कि वह अपने दोस्त की तरह बीई करके कोई अच्छी नौकरी करे ताकि उसे खेती ना करना पड़े। इसलिए गौरव अक्सर अपनी मम्मी सुधा से कहता था मां आप पापा से बोलकर मुझे एक बार क्रिकेट क्लब ज्वाइन करा दीजिए, इसमें सफलता नहीं मिली तो मैं पापा के कहे अनुसार नौकरी कर लूंगा या फिर गांव में आकर खेती करूंगा। उसकी जिद पर हम लोगों ने पहले भोपाल में क्रिकेट खेलने के लिए भेजा। जब लगा कि गौरव में हुनर है तो उसे इंदौर में क्रिकेट क्लब ज्वाइन कराया। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मां ने बताया कि इंदौर में क्लब से आने के बाद भी गौरव घर में अभ्यास करता था। वह कांच के सामने अकेले ही गेंदबाजी का अभ्यास करता था। जब वह घर सिवनी मालवा आता था तो यहां भी यही क्रम जारी रहता था।
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