रोते-रोते रेखा यादव बोलीं-बहुत बैठ चुकी नीचे और अब हम जैसी जमीनीं महिलाओं को भी कुर्सी चाहिए। फूल के लिए जी रही हूं और फूल के लिए मर भी सकती हूं। बता दें इनके अलावा और असंतुष्ट कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर नाराजगी जता चुके हैं। पैनल एवं भोपाल स्तर तक जिनके नाम थे, उनको टिकट नहीं मिलने पर परिवारवाद के हावी होने और जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ भेदभाव किए जाने के आरोप भी लग रहे। पार्टी में असंतुष्टों की फौज बढ़ गई है।
रेखा यादव का कहना था कि पार्टी में इस बार के परिवारवाद हावी हो गया, जिसकी उम्मीद नहीं की थी। नेता और पूर्व पार्षदों की पत्नियों को टिकट बांट दिए गए, जबकि सालों से झंडा उठाने, दरी बिछाने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं खासकर महिलाओं की उपेक्षा की गई है। रेखा ने बताया कि प्रदेश में पार्टी का पहला वार्ड कार्यालय उन्होंने अपने वार्ड में खोलकर वार्डवासियों की सेवा की है। विधायक निधि सहित सरकार की योजनाओं का जरुरमंद लोगों, गरीब महिलाओं को लाभ दिलाया। जब टिकट की बारी आई तो पैनल में नाम होने और वार्ड की जनता की इच्छा को भी दरकिनार कर पूर्व पार्षद की पत्नी को टिकट दे दिया गया। रेखा का यह भी आरोप था कि जिसे टिकट दिया गया है, वह एक दिन भी वार्ड में नहीं घूमीं और उनके पति ने पिछले नपा चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम करते हुए अधिकृत प्रत्याशी प्रशांत पालीवाल को भी हराया था।
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बता दें कि इस वार्ड से पार्टी ने पूर्व पार्षद-सभापति इमरतलाल यादव उर्फ मुन्ना ग्वाला की पत्नी निर्मला यादव को टिकट दिया है। रेखा यादव ने कहा कि हम जैसी गरीब व सक्रिय महिलाओं का दुर्भाग्य है कि हमारी बड़ी बहन माया नारोलिया के महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष होते हुए भी टिकट के लिए भटकना और संघर्ष करना पड़ रहा है।