जिले में 1724 प्राइमरी व मिडल स्कूल हैं जिनमें से 1227 प्राइमरी और 497 मिडल स्कूल हैं। जिनमें से 16 स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या शून्य है।311 स्कूलों में बच्चों की संख्या 10 से कम और408 स्कूलों में 20 से कम है जबकि 16 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं है। इन शिक्षक विहीन स्कूलों में आसपास के स्कूलों के शिक्षकों को भेजकर जिंदा रखा जा रहा है।
इन कारणों से भी कम हो रहे सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थी
सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या सरकार की तमाम कवायद और सुविधाएं मुहैया कराने के बावजूद लगातार कम हो रही है। जिसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बड़ी संख्या में कार्यरत और भूतपूर्व सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों के पुत्र पुत्रियां सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते। इसके अपवाद केवल केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय ही माने जा सकते हैं । जहां प्रवेश लेने वाले सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के सचिव सत्यप्रकाश त्यागी का कहना है कि जिले में विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी, कर्मचारी और उनके परिजन निवास करते हैं पर उनके बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। यदि शासन की ओर से शासकीय कर्मचारियों के बच्चों का दाखिला सरकारी विद्यालयों में अनिवार्य कर दिया जाए तो सरकारी स्कूलों में प्रवेश संख्या काफी तक बढ़ सकती है। इससे शिक्षकों के नए पद भी सृजित होंगे और युवाओं को नौकरी के अवसर बढ़ेंगे।