scriptmandi : घोष विक्रय नहीं होने से किसानो के ये हाल | Agricultural Produce Market, Farmer, Merchant, Produce, Loss, Ghosh Sa | Patrika News
नरसिंहपुर

mandi : घोष विक्रय नहीं होने से किसानो के ये हाल

नरसिंहपुर जिले की तेन्दूखेड़ा स्थित कृषि उपज मंडी का मामला

नरसिंहपुरJun 28, 2020 / 11:37 pm

Sanjay Tiwari

mandi : घोष विक्रय नहीं होने से किसानो के ये हाल

mandi : घोष विक्रय नहीं होने से किसानो के ये हाल

तेंदूखेड़ा। तहसील मुख्यालय तेंदूखेड़ा में संचालित कृषि उपज मंडी में घोष विक्रय न होकर किसानों द्वारा बाहर की मंडियों और सीधे व्यापारियों को अनाज बेचना तथा व्यापारियों द्वारा घर-घर जाकर किसानों से सीधे अनाज खरीदकर बाहर की मंडियों में अनाज बिकने से तेंदूखेड़ा का व्यापार व्यवसाय गंभीर स्थिति में पहुंचता चला जा रहा है। व्यवसाय में गति देने के लिए मंडी का नियमित संचालन आवश्यक हो गया है। गौरतलब है कि मंडी से ही समस्त व्यापार चलते हैं। किसान अपनी उपज बेचकर विभिन्न दुकानों से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते हैं। लेकिन तेंदूखेड़ा की कृषि उपज मंडी में घोष विक्रय न हो पाने के कारण यहां के व्यापार की काफी गंभीर स्थिति बनी हुई है। मंडी संचालन में केवल मंडी प्रबंधन को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि इसमें किसानों व्यापारियों प्रतिनिधियों और अधिकारी भी बराबर के दोषी हैं।
बगैर लाईसेंसधारी व्यापारियों पर सख्ती से हो कार्रवाई
मंडी संचालन में सबसे बड़ी विसंगतिपूर्ण स्थिति यह बनी हुई है कि बगैर लाईसेंसधारी व्यापारी वर्ग जो गांव गांव जाकर सीधे किसानों से घर बैठे उपज खरीद लेते हैं। और बाहर ले जाकर इन्ही किसानों के नाम पर व्यापारी बाहर की मंडियों में अच्छा मुनाफा भी कमा लेते हैं। किसान जब बाहर की मंडियों में उपज बेचेगा तेंदूखेड़ा की बजाय बाहर की दुकानों से सामग्रियां खरीद लेगा तो स्वाभाविक है कि तेंदूखेड़ा का व्यवसाय भी कम हो जायेगा। यही स्थिति पिछले कई सालों से बनी हुई है। और यहां का व्यापारी टूटता चला जा रहा है। जबकि बाहर के व्यापारी उत्तरोत्तर प्रगति पर पहुंचते चले जा रहे हैं। घर बैठे उपज बिक जाने से किसान मंडी नहीं पहुंचता है और मंडी के श्ेाड खाली पड़े रहते हैं। इक्का दुक्का किसान ही एक दो बोरे आधा बोरा उपज लेकर पहुंचता है, जो सीधे व्यापारी के यहां बेचकर चला जाता है।
अपेक्षाएं करनी होंगी कम
मंडी संचालन व्यवस्था को लेकर अभी तक का जो अनुभव सामने आया है उसमें सबसे बड़ी बात अधिकारियों की अपेक्षाओं को पूर्ण करना भी एक सबसे बड़ा कारण रहा है। मंडी प्रतिवर्ष अपनी आय का जो लक्ष्य निर्धारित किया जाता है उसे तो पूर्ण करता ही है लेकिन इसमें सबसे बड़ी विसंगति जो कच्चे और पक्के के नाम से जानी जाती है उसमें वरिष्ठ अधिकारियों की कुछ अपेक्षाएं हैं, उन्हें भी इन कर्मचारियों को पूर्ण करना मजबूरी बन जाती है। अपेक्षाओं पर खरे न उतरने की स्थिति में इन कर्मचारियों को तरह तरह की विसंगतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कर्मचारी कहीं से भी व्यवस्थाएं करने के लिए यह सब कदम उठाया करते है। यदि तत्काल प्रभाव से इन अपेक्षाओं को कम कर लिया जाये तो निश्चित तौर पर कर्मचारी मन लगाकर मंडी का संचालन ईमानदारी से करने लगेगा।
मंडी में हैं सभी सुविधाएं
गौरतलब है कि कृषि उपज मंडी तेंदूखेड़ा में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये के काम हो रहे हैं। किसानों को पर्याप्त सुविधाएं मंडी में पूर्व से ही उपलब्ध कराई गई हैं, पेयजल के साथ विद्युत छायादार शेड पक्की सडक़ें और गोदाम रुकने को विश्राम गृह तक उपलब्ध कराये गये हैं। फिर भी मंडी न चल पाना एक जांच का विषय बना हुआ है। केवल मंडी में धार्मिक सार्वजनिक समारेाह आयोजन तक मंडी का संचालन तक सीमित है। व्यापारी वर्ग के लिए मंडी में जो शेड बने हैं, उन्हें भी व्यापारियों के लिए उपलब्ध कराया जाये। शेड उपलब्ध हो जाने से व्यापारी भी अपने अपने शेडों में बैठकर उपज खरीदने लगेगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो