मंडी संचालन में सबसे बड़ी विसंगतिपूर्ण स्थिति यह बनी हुई है कि बगैर लाईसेंसधारी व्यापारी वर्ग जो गांव गांव जाकर सीधे किसानों से घर बैठे उपज खरीद लेते हैं। और बाहर ले जाकर इन्ही किसानों के नाम पर व्यापारी बाहर की मंडियों में अच्छा मुनाफा भी कमा लेते हैं। किसान जब बाहर की मंडियों में उपज बेचेगा तेंदूखेड़ा की बजाय बाहर की दुकानों से सामग्रियां खरीद लेगा तो स्वाभाविक है कि तेंदूखेड़ा का व्यवसाय भी कम हो जायेगा। यही स्थिति पिछले कई सालों से बनी हुई है। और यहां का व्यापारी टूटता चला जा रहा है। जबकि बाहर के व्यापारी उत्तरोत्तर प्रगति पर पहुंचते चले जा रहे हैं। घर बैठे उपज बिक जाने से किसान मंडी नहीं पहुंचता है और मंडी के श्ेाड खाली पड़े रहते हैं। इक्का दुक्का किसान ही एक दो बोरे आधा बोरा उपज लेकर पहुंचता है, जो सीधे व्यापारी के यहां बेचकर चला जाता है।
मंडी संचालन व्यवस्था को लेकर अभी तक का जो अनुभव सामने आया है उसमें सबसे बड़ी बात अधिकारियों की अपेक्षाओं को पूर्ण करना भी एक सबसे बड़ा कारण रहा है। मंडी प्रतिवर्ष अपनी आय का जो लक्ष्य निर्धारित किया जाता है उसे तो पूर्ण करता ही है लेकिन इसमें सबसे बड़ी विसंगति जो कच्चे और पक्के के नाम से जानी जाती है उसमें वरिष्ठ अधिकारियों की कुछ अपेक्षाएं हैं, उन्हें भी इन कर्मचारियों को पूर्ण करना मजबूरी बन जाती है। अपेक्षाओं पर खरे न उतरने की स्थिति में इन कर्मचारियों को तरह तरह की विसंगतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कर्मचारी कहीं से भी व्यवस्थाएं करने के लिए यह सब कदम उठाया करते है। यदि तत्काल प्रभाव से इन अपेक्षाओं को कम कर लिया जाये तो निश्चित तौर पर कर्मचारी मन लगाकर मंडी का संचालन ईमानदारी से करने लगेगा।
गौरतलब है कि कृषि उपज मंडी तेंदूखेड़ा में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये के काम हो रहे हैं। किसानों को पर्याप्त सुविधाएं मंडी में पूर्व से ही उपलब्ध कराई गई हैं, पेयजल के साथ विद्युत छायादार शेड पक्की सडक़ें और गोदाम रुकने को विश्राम गृह तक उपलब्ध कराये गये हैं। फिर भी मंडी न चल पाना एक जांच का विषय बना हुआ है। केवल मंडी में धार्मिक सार्वजनिक समारेाह आयोजन तक मंडी का संचालन तक सीमित है। व्यापारी वर्ग के लिए मंडी में जो शेड बने हैं, उन्हें भी व्यापारियों के लिए उपलब्ध कराया जाये। शेड उपलब्ध हो जाने से व्यापारी भी अपने अपने शेडों में बैठकर उपज खरीदने लगेगा।