यह पंचायत अपनी उत्कृष्ट व्यवस्थाओं और सामाजिक सौहार्द्र के लिए प्रदेश ही नहीं देश में जानी जाती है। इसे देश की रोल मॉडल पंचायत का दर्जा भी हासिल हुआ। पर अब वक्त के साथ इसकी रौनक फीकी पडऩे लगी है। गांव में प्रवेश करते ही रोड किनारे जमा गंदगी से सामना होता है तो अंदर जाने पर पेयजल के लिए लगे हैंडपंपों के पास ही गंदगी का अंबार नजर आता है। ग्रामीण खाद बनाने के लिए गोबर व अन्य अवशिष्ट हैंडपंप के पास ही जमा कर रहे हैं। जिससे पानी प्रदूषित होने और संक्रामक बीमारियों का खतरा बना हुआ है। गांव के रास्तों में भी कीचड़ देखने को मिलता है। यहां सरपंच रहे सुरेंद्र सिंह चौहान सेठ भैया पंचायत के सबसे सम्मानीय और आदरणीय व्यक्ति रहे हैं उन्हें सरकार द्वारा ब्रांड एम्बेसडर घोषित किया गया था। यही वजह है कि पंचायत के लोगों ने उनकी स्मृति के तौर पर पंचायत भवन परिसर में उनकी मूर्ति लगाई थी पर उनकी मूर्ति के छत्र पर लगाई गई लाइटें तक क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंचायत को लेकर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि अब किस तरह उदासीनता बरत रहे हैं।
इस पंचायत की यह विशेषता है कि १९५२ में पंचायत के गठन से लेकर यहां हमेशा सर्वसम्मति से सरपंच चुने जाते रहे हैं। पिछली बार पहली बार चुनाव हुआ जिसमें पंचायत की बात न मानने वाले प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। गांव में छोटे बड़े ऊंच नीच का कोई भेद नहीं। सभी वर्ग और जातियों के लोग मिलजुल कर सभी त्योहार मनाते हैं और एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होते हैं। यह पहली ऐसी पंचायत है जहां नालियों में गंदा पानी बहता नजर नहीं आता क्योंकि पूरे गांव में अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया है। १९७७ में इस पंचायत में २० रुपए वेतन पर अंशकालिक सचिव की नौकरी शुरू कर पंचायत निरीक्षक से रिटायर हुए हरकिशन तिवारी कहते हैं यह पंचायत बेमिसाल रही है और गांव में लगाए कर से रोड का निर्माण व अन्य कार्य किए गए।