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नरसिंहपुर

दंत मंजन और शैंपू की तरह करते हैं यहां की मिट्टी का उपयोग

यहां एशिया की सबसे ज्यादा उपजाऊ भूमि है

नरसिंहपुरAug 04, 2020 / 08:18 pm

ajay khare

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नरसिंहपुर । खेत में बीज डालो और भूल जाओ। न पानी देने की झंझट और न किसी तरह की खाद डालने की जरूरत। जब फसल पके तो काटने पहुंच जाओ। यह बात किसानों के लिए केवल कल्पना ही हो सकती है पर नरसिंहपुर जिले के कलमेटा हार में यह एक सच्चाई है। किसानों के सपनों के खेत यहां देखने को मिलते हैं। यहां न केवल एशिया की सबसे ज्यादा उपजाऊ भूमि है बल्कि ऐसी अनमोल भूमि के बड़े लैंडलॉर्ड भी हैं जहां एक परिवार के पास 250 एकड़ तक जमीन है। मिट्टी की क्वालिटी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग सीधे दंत मंजन और शैंपू की तरह इस्तेमाल करते हैं।कुछ लोग यहां की मिट्टी भी बाहर बेचते हैं जिसे लोग साबुन की तरह उपयोग करते हैं।देश में सर्वाधिक कृषि उत्पादकता वाले नरसिंहपुर जिले के कलमेटा हार की करीब 350 एकड़ भूमि एशिया की सर्वाधिक उत्पादक भूमि मानी गई है। यहां सैकड़ों साल से बिना पानी और जैविक व रासायानिक खाद के प्राकृतिक खेती होती आ रही है। एशिया की ऐसी अनमोल भूमि के सबसे बड़े लैंडलॉर्ड भी इसी नरसिंहपुर जिले में रहते हैं जिसमें महाजन परिवार के पास लगभग 250 एकड़ भूमि है। यह हार जिला मुख्यालय से करीब ५५ किमी दूर राजमार्ग के पास स्थित है।
जबलपुर के सेठ गोविंददास की मालगुजारी भूमि थी कलमेटा हार
देश की आजादी से पहले जबलपुर के सेठ गोविंददास यहां के मालगुजार थे और यह कलमेटा हार उन्हीं का था। बाद में उन्होंने मालगुजारी भवानीप्रसाद महाजन को सौंप दी तभी से पीढ़ी दर पीढ़ी यह भूमि महाजन परिवार के पास है। महाजन परिवार के अखिलेश महाजन ने बताया कि करीब १०० एकड़ भूमि उनके दादा, परदादा ने दूसरे लोगों को बेच दी थी जिसके बाद अब २५० एकड़ भूमि उनके परिवार के पास बची है।
नर्मदा नदी के वरदान स्वरूप मानी जाने वाली नर्मदा कछार की इस मिट्टी की विशेषता यह है कि यहां उपचारित बीज काम नहीं करते और देसी व परंपरागत खेती ही सफल मानी गई है। तीन माह तक कलमेटा हार की कृषि भूमि पानी में डूबी रहती है। खेतों में ३ से ४ फीट तक पानी भरा रहता है। प्रमुख रूप से यहां गुलाबी चना, मसूर और बटरी की फसलें ली जाती हैं। यहां की भूमि में एक एकड़ में चना का उत्पादन १० से १५ क्विंटल, मसूर का १५ से २५ क्विंटल और बटरी का ८ से १० क्विंटल तक प्राप्त किया गया है। कंकड़ रहित इस मिट्टी का उपयोग लोग दंत मंजन बनाने में और शैंपू की तरह भी करते हैं। यहां के किसान बीज डालने से लेकर फसल पकने तक किसी तरह के रासायनिक खाद और पानी का उपयोग नहीं करते।
कलमेटा बना ब्रांड
चना, मसूर और बटरी के व्यापारियों के बीच कलमेटा एक ब्रांड बन चुका है। यहां का गुलाबी चना अपने स्वाद और गुणवत्ता के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। मसूर की क्वालिटी और अच्छे उत्पादन की वजह से कोलकाता की एक कंपनी ने कलमेटा के आसपास तीन दाल मिलें स्थापित कर दी हंै। यहां का चना, मसूर और बटरी कलमेटा ब्रांड के नाम से जाने जाते हैं।
वर्जन
नरसिंहपुर जिले का कलमेटा हार एशिया की सबसे उपजाऊ भूमि है। यहां का चना, मसूर सर्वश्रेष्ठ माना गया है। शासकीय दस्तावेजों में इस बात की पुष्टि की गई है। भूगोल की पुस्तकों में वर्षों से यह पढ़ाया जा रहा है। पहाड़ से बहकर आने वाली हब्र्स और अन्य जैविक तत्व भी इसे और उर्वरा बनाते हैं।
कैलाश सोनी, राज्यसभा सांसद

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