जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल की ट्रामा यूनिट के लिए इस एंबुलेंस को करीब तीन वर्ष पूर्व जिला अस्पताल को प्रशासन द्वारा उपलब्ध करवाया गया था। एंबुलेंस के लिए पैरामेडिकल स्टॉफ उपलब्ध न होने के कारण अस्पताल प्रबंधन ने इसे बाहर निकलना भी ठीक नहीं समझा। बीते तीन वर्ष में अफसर और जनप्रतिनिधि मिलकर भी एंबुलेंस के लिए पर्याप्त स्टॉफ की व्यवस्था नहीं कर सके हैं। आलम यह है कि एंबुलेंस का संस्पेंशन खराब हो चुका है और वह अब धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील होती जा रही है। बताया गया है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा हाइवे की बजाय इस एंबुलेंस का उपयोग कुछ समय के लिए वीआइपी डय्टी में किया गया। इसके बाद जब ऑडिट हुआ तो वीआइपी ड्यूटी में उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इसे खड़ा कर दिया गया।
स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की मानें ने यह एंबुलेंस एक ऑपरेशन थियेटर की तरह सर्वसुविधा से युक्त है। इसी कीमत में अन्य एंबुलेंस की अपेछा 10 लाख अधिक हैं। इसके लिए वेटिंलेटर, इसीजी मशीन सहित जरूरी संसाधन मौजूद हैं। इसमें लगी स्ट्रेचर से हादसे में शिकायत व्यक्ति के बिखरे अंगों को भी व्यवस्थित किया जा सकता है। हादसे में गंभीर व्यक्ति को ट्रामा सेंटर तक पहुंचाने में यह एंबुलेंस बिना खतरे के कारगर साबित होती है।
इनका कहना
यह बात सही है कि ट्रामा सेंटर की सर्वसुविधा युक्त एंबुलेंस का उपयोग नहीं किया जा सका है। एंबुलेंस के लिए निर्धारित मापदंडों के अनुसार स्टाफ नहीं है। वरिष्ठ अधिकारियों से इसके उपयोग को लेकर मार्गदर्शन मांगा गया है। जल्द ही इसे उपयोग में लाया जाएगा।
डॉ. अनीता अग्रवाल, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल