scriptपहले अशरे में बरस रही खुदा की रहमत | Firstly, the ritual of the God being roasted in the house | Patrika News

पहले अशरे में बरस रही खुदा की रहमत

locationनरसिंहपुरPublished: May 11, 2019 06:31:37 pm

Submitted by:

ajay khare

तीन अशरों में बंटा माहे रमजान

Mahe Ramjaan

Mahe Ramjaan

गाडरवारा। मुस्लिम समुदाय का माहे रमजान मुबारक चल रहा है। जिसके पांच रोजे हो चुके हैं, रमजान के चलते मुस्लिम लोग सूर्योदय के समय के पहले सहरी कर रोजे रखकर पांच वक्त की नमाज, कुरान पाक की तिलावत, मस्जिदों में सामुहिक रोजा अफ्तार कर, तरावीह की नमाज पढ़कर खुदा की ज्यादा से ज्यादा इबादत कर रहे हैं। मुसलमानों का पाक रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए महत्वपूर्ण है। जिसमें तीस दिनों तक रोजे रख अल्लाह को खुश किया जाता है।
इस्लाम के मुताबिक पूरा रमजान माह तीन हिस्सों में बांटा है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। इस तरह रमजान के पहले पहले रोजे से 10 वें रोजे तक पहला अशरा, 11 वे रोजे से 20 वें रोजे तक दूसरा अशरा और 21 से 30 वें रोजे तक तीसरा अशरा होता है। पहला अशरा रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए है। रमजान के महीने को लेकर पैगंबर मोहम्मद ने भी फरमाया है कि रमजान की शुरुआत में रहमत है, बीच में मगफिरत यानी माफी है और इसके अंत में जहन्नुम की आग से बचाव है। रमजान महीने के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं। रोजा नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। इस अशरे में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा दान कर गरीबों की मदद कर, हर एक इंसान से प्यार और नम्रता का व्यवहार कर खुदा की रहमत पा सकता है। रमजान का दूसरा अशरा माफी का होता है इस अशरे में लोग इबादत कर के अपने गुनाहों से माफी माफी मांगता है, तो दूसरे दिनों के मुकाबले इस समय अल्लाह अपने बंदों को जल्दी माफ करता है। रमजान का तीसरा अशरा यह अशरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। तीसरे अशरे का उद्देश्य जहन्नुम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है। इस दौरान हर मुसलमान को जहन्नुम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम एहतेकाफ में बैठते हैं। जिसमें मस्जिद के कोने में 10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत की जाती है जबकि महिलाएं घर में रहकर ही इबादत करती हैं। इन तीन अशरों में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा खुदा की इबादत में जुटे रहते हंै।

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