अद्भुत है सीतारेवा और शक्कर नदी का संगम रेलवे ब्रिज से नदी में छलांग लगाते थे ओशो
विरासत- जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर स्थित इमलिया गांव में सीतारेवा और शक्कर नदी का संगम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एक मनोहारी स्थल है। जिस जगह पर इन दोनों नदियों की धाराओं का मिलन होता है वह अद्भुत सौंदर्यबोध का दर्शन कराता है।

नरसिंहपुर. जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर स्थित इमलिया गांव में सीतारेवा और शक्कर नदी का संगम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एक मनोहारी स्थल है। जिस जगह पर इन दोनों नदियों की धाराओं का मिलन होता है वह अद्भुत सौंदर्यबोध का दर्शन कराता है। यहां दोनों नदियां इस तरह मिलती हैं जैसे गंगा यमुना का संगम हो रहा हो। दोनों नदियों से मिलने वाला जल इतना साफ होता है कि इसे कंचन जल कहा जा सकता है। स्थानीय लोग इसे सीधे पीने के उपयोग में लेते हैं क्योंकि यह रेत से छन कर आता है। नदियों के इस संगम का महत्व इसलिये भी और ज्यादा है क्योंकि नजदीक ही ओशो का एक भव्य आश्रम भी है जहां आचार्य रजनीश के अनुयायी शांति और ज्ञान व रजनीश के दर्शन की अनुभूति करने के लिए आते हैं। इस आश्रम को आचार्य रजनीश के दर्शन और ध्यान के अनुरूप बनाया गया है। आश्रम में प्राय: रजनीश के अनुयायियों द्वारा ध्यान आदि के शिविर आयोजित किए जाते हैं। इस संगम का भी ओशो से गहरा नाता रहा है। बताया जाता है कि बारिश के दिनों में नदी जब उफान पर होती थी जब ओशो नदी के ऊपर बने रेलवे ब्रिज से नदी में उस जगह पर छलांग लगाते थे जहां ब्रिज के पिलर के चारों ओर भंवर बनते थे। वे यह जानने के जिज्ञासु थे कि आखिर भंवर में लोग क्यों फंसते हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है। ओशो आश्रम के संचालक उदय ने बताया कि ओशो ने कई बार भंवर में छलांग लगाई और सुरक्षित बाहर निकले। बाद में उन्होंने लोगों को भंवर में फंसने पर उससे सुरक्षित बाहर निकले का तरीका भी बताया।
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