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राह-ए-उल्फ़त में चरागों को जलाये रखना

locationनरसिंहपुरPublished: Jan 21, 2019 01:04:46 pm

Submitted by:

ajay khare

राह-ए-उल्फ़त में चरागों को जलाये रखना
साहित्य सेवा समिति की 77 वीं मासिक काव्यगोष्ठी सम्पन्न

Keep the grazing lights in Rah-e-Ulfat

Keep the grazing lights in Rah-e-Ulfat

साहित्य सेवा समिति की 77 वीं मासिक काव्यगोष्ठी सम्पन्न

करेली-नरसिंहपुर।जिला साहित्य सेवा समिति नरसिंहपुर की 77 वीं मासिक काव्यगोष्ठी बरमान स्थित एकता विद्या निकेतन में आयोजित हुई।कल्पतरु संस्था साँईंखेड़ा के संयोजक अरविन्द राजपूत की अध्यक्षता,साँईंखेड़ा के शायर अनीश शाह के मुख्यातिथ्य एवं साहित्य निशा परिषद् बरमान के अध्यक्ष ध्यानसिंह कौरव के विशिष्टातिथ्य में रखी गई उक्त काव्यगोष्ठी की शुरुआत माँ सरस्वती के पूजन अर्चन से हुई।अतिथि स्वागत् उपरांत दक्षिण अफ्रीका में कार्यरत् साँईंखेड़ा के कवि जितेन्द्र दीक्षित को शॉल,श्रीफल व प्रशस्ति पत्र देकर प्रवासी भारतीय कवि सम्मान से विभूषित किया गया।सम्मानोपरांत प्रारंभ हुआ काव्यरस वर्षा का दौर।इमझिरा की कवयित्री अंजलि पाठक ने जहाँ अपनी भावनाएँ माँगती रही पिशाचों से एक नन्ही जान की भीख सुन के पत्थर पिघल रहे उस बच्ची की चीख रचना के माध्यम से व्यक्त कीं वहीं माल्हनवाड़ा के कवि प्रशांत शर्मा ‘सरल’ ने ब्रह्मा तप कीन्हा जहाँ नाम बरमान है देव मानव करते नित जिसका बखान है रचना पढ़कर ब्रह्माण्ड घाट की महिमा गाई।साँईंखेड़ा के कवि सुनील कुशवाहा ने माँ रेवा का पावन धाम है न्यारी यहाँ की शान है जैसी पंक्तियों से रची-बसी रचना सुनाकर माँ नर्मदा का गुणगान किया वहीं तेन्दूखेड़ा के कवि महेश खरे ‘चित्रांश’ ने आप हम साथ-साथ बैठे हैं कब ये लम्हे नसीब होते हैं कविता सुनाकर पारस्परिक मिलन की महत्ता प्रतिपादित की।कौंड़िया के कवि वृन्दावन बैरागी ‘कृष्णा’ ने जहाँ अपने ज़ज़्बात ओशो तेरी नज़र में नूर है ख़ुदा जिसे तुमने पाया उसे लोगों में बाँटा रचना के द्वारा पेश किए वहीं संचालन कर रहे गाडरवारा के कवि विवेक दीक्षित स्वतंत्र ने बची संस्कृति नाम की हैं नूतन परिधान,जितने ओछे वस्त्र हैं उतने ही इंसान रचना पढ़कर अंधी आधुनिकता की ओर इशारा किया।साँईंखेड़ा के कवि जितेन्द्र दीक्षित ने जानवर बचे जहाँ जब आदमी हलाल है क्या तुम्हें पता नहीं क्या वतन का हाल है कविता पढ़कर देश के हालात पर चिन्ता जाहिर की तो चावरपाठा के कवि दीपक चौबे अंजान ने दूरियाँ हमने बढ़ा लीं यूँ दिलों के बीच में नफ़रतें ही रह गईं रिश्ते निभाने के लिए जैसी पंक्तियों से गुंफित ग़ज़ल गुनगुनाकर नया समां बाँधा।गूजर झिरिया के कवि पोषराज मेहरा अकेला ने किया तो ये किया सब बेकार कर दिया,बदला यूँ सियासत को कि व्यापार कर दिया ग़ज़ल कहकर जहाँ आज की राजनीति की सच्चाई बयां की वहीं तेन्दूखेड़ा की कवयित्री प्रगति पटेल अंशु ने ज़मीं आकाश का मिलना कभी मुमकिन नहीं होता जले बिन आग में कोई खरा कंचन नहीं होता,ज़माना ये बदल जाए भले कितना मगर तय है बुरे हों लोग इस जग में बुरा बचपन नहीं होता रचना पढ़कर खूब वाहवाही लूटी।समिति अध्यक्ष सतीश तिवारी सरस ने ख़त लिखे जो प्यार के पहुँचा न पाया ठाँव तक,बहुत पथरीली डगर है उसके दिल के गाँव तक ग़ज़ल गुनगुनाकर गोष्ठी को लयात्मकता प्रदान की वहीं बरमान के कवि ध्यानसिंह कौरव ने ओ भागीरथ तू कहांँ गया आ लौट मेरा उद्धार तो कर गीत गाकर माँ गंगा की पीड़ा को वाणी दी।साँईंखेड़ा के शायर अनीश शाह ने तेरी शोख़ी में कुदरत के ये सारे राज़ पलते हैं,अदा तेरी जो बदली तो नज़ारे ख़ुद बदलते हैं ग़ज़ल सुनाकर खूब तालियाँ पिटवाईं वहीं अरविन्द राजपूत ने राह-ए-उल्फ़त में चरागों को जलाये रखना,आश दीदार की तुम दिल में लगाये रखना कविता सुनाकर गोष्ठी को ऊँचाई पर पहुँचाया।श्रोताओं में श्रीमती आभा साहू,सृष्टि साहू,रामकृष्ण पटेल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।कविवर प्रशांत शर्मा सरल के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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