नरसिंहपुरPublished: Mar 20, 2019 03:52:53 pm
ajay khare
20 मार्च को खाली गुजर गया विश्व गौरैया दिवस
World Sparrow Day
गाडरवारा। गांव की चौपाल से लेकर कस्बों, नगरों, शहरों तक नन्हीं मुन्नी गौरैया अब कम दिख रही है। अधिकतर बड़े शहरों में तो यह पक्षी प्राय: लुप्त हो चुका है। कभी हर घर की सदस्य सी लगने वाली गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी यह खत्म होने की कगार पर है। इनके संरक्षण के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, ताकि इनके अस्तित्व को बचाया जा सके। लेकिन नगर में अनेकों सामाजिक, पर्यावरण संस्थाएं होते हुए भी विश्व गौरैया दिवस पर भी चिडिय़ों अर्थात गौरैया की दशा पर गौर नहीं फरमाया गया। नगर में किसी प्रकार के आयोजन या उनके हित में कार्य होने की जानकारी नहीं मिली।
गौरैया मानव की मित्र
जानकारों के अनुसार गौरैया की लगातार कम होती संख्या पर्यावरण असंतुलन का प्रतीक है। कहते हैं गौरैया हमारे पर्यावरण की स्थिति को बताती है, वह घर के कीड़े.मकोड़ों को खत्म करने में मदद करती है। खेतों में भी फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कटवर्म एवं कीड़ों का यह भक्षण करती है। पर्यावरण की अनदेखी हमारे लिए भी जीवनघाती हो सकती है। इसलिए भी हमें गौरैया की सुरक्षा एवं संरक्षण जरूर करना चाहिए।
क्यों हो रही है कम गौरैयों की संख्या
गौरैयों की कम होती संख्या की कई वजहें बताई जाती है। इनमें मॉर्डन डिजाइनों वाले मकानों, इमारतों में गौरैयों को घोसला बनाने की जगह नहीं मिलती। अक्सर लोग भी उनके घोंसले उजाड़ देते हैं। लगातार बढ़ते कंक्रीट के जंगलों के कारण वृक्षों की संख्या कम हो रही है। बबूल, कनेर, बेर, नींबू, अमरूद, मेहंदी, बांस एवं अनार जैसे औसत कद के वृक्षों में गौरैया घोंसले बनाकर बच्चे पैदा करती है। लेकिन इन वृक्षों को काट दिए जाने से गौरैयों के पास घोसले बनाने अथवा अपनी प्रजातियों को आगे बढ़ाने के लिये अधिक जगह नहीं रह गई इसके अलावा गांव.शहरों में भारी संख्या में लगे मोबाइल टॉवर भी इनके कम होने का प्रमुख कारण हैं। इन टॉवरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें गौरैया एवं उसके बच्चों के लिए हानिकारक साबित होती हैं। जिससे उम्र से पहले उनकी मृत्यु हो जाती है।
ऐसे बचेगी गौरैया
जबकि हमारे थोड़े से प्रयास से ही इन्हे जीवनदान मिल सकता है। यदि लोग इनके घोंसले न उजाड़ें, इनके लिए खासकर गर्मी में दाना पानी की व्यस्था करें। प्रजनन के दौरान इनके अंडों को कौवे और दूसरे पक्षियों आदि से बचाने की कोशिश करें, हो सके तो इनके कृत्रिम घरों का निर्माण करें। यदि ऐसा किया तो हमारी आने वाली पीढिय़ों को गौरैया चहकती दिख सकती है। अन्यथा इसे भी दूसरे विलुप्त पक्षियों की भांति केवल किताबों एवं फिल्मों में ही देखेंगे।